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लोकतंत्र की पसमांदा आवाज़ें – Pasmanda Democracy

लोकतंत्र की पसमांदा आवाज़ें – Pasmanda Democracy

लोकतंत्र की पसमांदा आवाज़ें

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Month: April 2020

Muslim religious leaders in consultation
Image taken from Khilafa magazine

उलेमा का एकराम और पसमांदा तहरीक

In Caste & Religion, Pasmanda, Society & CultureApril 30, 2020Leave a comment Faiyaz Ahmad Fyzie

कुफ़ु की वजेह से हमारे जिन कालिमा गो मुस्लिमो भाईओ की इज़्ज़त आबरू ख़राब हुई है उसको दुबारा बहाल करना उन्हें इज़्ज़त देना अपने समाज में उठाना बिठाना आम तौर से शादी बियाह करना हत्ता के सारा भेदभाव मिट जाये और एक उम्मत बन जाये। यहाँ एक बात और नोट करलें की कुफू का ऐतेबार सिर्फ दीनदारी हो (किफायत फ़िद्दीन) यानि दीनदारी देख के शादी बियाह आम हो ना के हसब नसब, ऊँच नीच, शरीफ …

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इस किताब की कहानी, मेरे जैसे हज़ारों-लाखों लड़कों की कहानी है

इस किताब की कहानी, मेरे जैसे हज़ारों-लाखों लड़कों की कहानी है

In Book Review, Caste & Religion, ReviewsTags jamia millia islamia, neyaz farooquee, radicalismApril 29, 2020Leave a comment Lenin Maududi

सभी के अन्दर एक बेचैनी थी. किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था. अगले कुछ दिनों में जामिया के कुछ बच्चों की गिरफ़्तारी भी शुरू हो गई. पकड़े गए आरोपियों को मीडिया के सामने पेश किया गया. पर उनके चेहरे को काले कपड़े की जगह (जैसा आमतौर से होता है) लाल रंग के अरबी रुमाल से ढ़का गया था. जिससे आसानी से आरोपियों के धर्म का पता लगाया जा सके. …

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एक बे-हया औरत का मौलाना तारिक जमील को खत – फारुख सलहरिया

एक बे-हया औरत का मौलाना तारिक जमील को खत – फारुख सलहरिया

In Society & Culture, Women IssuesTags Maulana Tariq JamilApril 28, 2020Leave a comment Sarim Iqbal

मौलवी साहब मैं वही बे-हया औरत हूं। जो फैक्ट्री और अस्पताल में काम करती है,और जब आप को दिल का दौरा पड़ा था तो नर्स के बे-शर्म लिबास में मैंने ही आप की तीमारदारी की थी। जिस आरामदेह गाड़ी में एयर कंडीशन लगाकर आप घूमते हैं और जिस हवाई जहाज में बैठकर आप मक्का मदीने जाते हैं। …

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बे-हया औरतें

बे-हया औरतें

In Poem, Women IssuesTags Breaking patriarchy, SexismApril 28, 2020Leave a comment Sarim Iqbal

औरत की कोख से निकले, हूरों के पसतान(1) नापते मौलवी …

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कुफ़ू मान्यता और सत्यता

कुफ़ू मान्यता और सत्यता

In Caste & Religion, Pasmanda, Society & CultureApril 27, 2020Leave a comment Adv. Nurul Momin

कुफू का शाब्दिक अर्थ बराबर, मिस्ल, हमपल्ला और जोड़ होता है। इस्लामिक विद्वानों (उलेमा) द्वारा ये शब्द सामान्यतः शादी-विवाह (वर-वधू) के सम्बन्ध में प्रयोग किया जाता है, अर्थात जब ये कहा जाता है कि फला फला का कुफू है तो अर्थ ये होता है कि फला फला आपस मे बराबर है और एक दूसरे से शादी हो सकती है। कुफू निर्धारण के आधार में इस्लामिक विद्वानों में कुछ मतभेद भी है। …

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मुस्लिम समाज में ऊँच-नीच की सत्यता

मुस्लिम समाज में ऊँच-नीच की सत्यता

In Caste & Religion, PasmandaTags caste in islam, caste in muslimsApril 26, 2020Leave a comment Adv. Nurul Momin

कुछ लोग बड़े दावे से कहते है कि भारतीय मुसलमानों में व्याप्त ज़ात-पात/ ऊँच-नीच की बीमारी दूसरे शब्दों में किसी को हसब-नसब (वंश) की बिनाह पर आला (श्रेष्ठ), अदना (नीच/छोटा) समझने की विचारधारा की वजह भारतीय समाज की परम्पराएं है जो तथाकथित हिन्दू धर्म में मौजूद थी इस दावे के करने वालो का कहना है कि लोग मज़हबे-इस्लाम में दाखिल तो हुए मगर अपनी परम्पराओं (वर्ण व्यवस्था/जन्म आधारित ऊँच-नीच/ छूआ-छूत) के साथ दाखिल हुए जिससे …

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उर्दू अदब का जातिवादी चरित्र

उर्दू अदब का जातिवादी चरित्र

In Caste & Religion, Democracy, PasmandaApril 25, 2020Leave a comment Faiyaz Ahmad Fyzie

उर्दू मुख्यतः अशराफ की भाषा रही है। जिसे वो अपने राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि के लिए पूरे मुसलमानों की भाषा बना कर प्रस्तुत करता है, जबकि पसमांदा की भाषा क्षेत्र विशेष की अपभ्रंश भाषाएं एवं बोलियाँ रही हैं। अशराफ अपनी इस नीति में कामयाब भी रहा है और आज भी पसमांदा की एक बड़ी आबादी उर्दू से अनभिज्ञ होने के बाद भी उर्दू को ही अपने क़ौम की भाषा मानती है. …

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तलाक़ का मामला, इस्लाम और अशराफिया सत्ता

तलाक़ का मामला, इस्लाम और अशराफिया सत्ता

In Caste & Religion, DemocracyTags triple talaqApril 24, 2020Leave a comment Lenin Maududi

हमारी अशराफिया मुस्लिम कयादत एड़ी चोटी का जोर लगा कर इस घटिया व्यवस्था को इस्लाम धर्म का “essentiality test” के नाम पे बचा के रखना चाहती है. तो ये सवाल उठता है की वो ऐसा क्यों चाहती है? दरसल ये अशराफिया मुस्लिम कयादत हर उस बदलाव के खिलाफ है जिससे इनकी सत्ता कमज़ोर पड़ने का खतरा होता. …

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जन-संहार के माध्यम के रूप में मीडिया

जन-संहार के माध्यम के रूप में मीडिया

In Caste & Religion, Democracy, Movie Review, ReviewsTags hotel rwanda movie review, identity and violence, media as perpetrator of hatred, rwanda genocideApril 23, 2020Leave a comment Lenin Maududi

'होटल रवांडा' फ़िल्म इसी रेडियों की आवाज़ से शुरू होती है। रेडियों हुतू समुदाय की भावनाओं को भड़काने के लिए झूठा प्रोपोगेंडा चलाते हैं। उनसे कहा जाता है कि तुत्सी राजतन्त्र कायम करने की कोशिश कर रहे हैं जिसमें हुतू लोगों को गुलाम बनाकर रखा जाएगा। इन रेडियों स्टेशनों ने हुतू और तुत्सी समुदाय के बीच किसी भी बातचीत या शांति समझौते का खुलकर विरोध किया, शांति के प्रयासों के खिलाफ अभियान चलाया, हुतू मिलिशिया …

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कोरोना और आर्थिक मंदी

कोरोना और आर्थिक मंदी

In EconomyTags आर्थिक मंदी, कोरोनावायरस का अर्थवयव्सथा पर सीधा असरApril 22, 2020Leave a comment Anuj Sangwan

आर्थिक नरमी एक सामान्य प्रोसेस है। कोरोना के कहर से पूर्व समूचे विश्व मे यही हो रहा था। वायरस ने विश्व को रोक दिया है। कारखाने बन्द हैं, ट्रैन बन्द हैं, जहाज, पानी के जहाज, होटल-ढाबे, सिनेमा घर, स्कूल-कॉलेज हर जगह मुर्दाघर जैसी शांति है। ऐसे में ये समझना बहुत आसान है कि कुछ हो नही रहा तो वृद्धि नही होगी। ऐसे में वृद्धि दर नकारात्मक होगी। …

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पीड़ित की भाषा अभद्र और कड़वी क्यो?

पीड़ित की भाषा अभद्र और कड़वी क्यो?

In Caste & Religion, Democracy, PasmandaApril 21, 2020Leave a comment Faiyaz Ahmad Fyzie

अक्सर पसमांदा अन्दोलन और उससे जुड़े लोगों पर यह आरोप लगाया जाता है कि पसमांदा अपने दमनकारी/उत्पीड़क अशराफ की आलोचना करने में बहुत ही अभद्र और कड़वी भाषा का इस्तेमाल करता है, जो गुफ्तगू के आदाब (वार्तालाप के शिष्टाचार) के खिलाफ है और सभ्यता और शालीनता की दृष्टी से उचित नहीं है। …

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सुपर हीरो की दुनिया में नस्लवाद: ‘वॉचमेन’ की समीक्षा

सुपर हीरो की दुनिया में नस्लवाद: ‘वॉचमेन’ की समीक्षा

In Reviews, Web Series ReviewApril 20, 2020Leave a comment Lenin Maududi

हम ‘वॉचमैन’ (Watchmen) की कहानी पर आते है. यहाँ सबसे पहले इस बात को समझ लें कि "समानांतर ब्रह्माण्ड" के सिद्धांत की खोज हो चुकी है. अब मानव जाति इस बात से अवगत है कि हर संभावना का अपना एक भविष्य होता है और हर सम्भावना अलग-अलग ब्रह्माण्ड में घटित होती हैं. …

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उर्दू अदब में जातिवाद

उर्दू अदब में जातिवाद

In Caste & Religion, Pasmanda, Society & CultureApril 19, 2020Leave a comment Jay Prakash Faqir

हम ये पाते हैं कि पसमांदा पहचान और पसमांदा समस्या को उर्दू अदब में एक सिरे से नकारा गया है. जब कार्ल मार्क्स की किताब छपी 'The Eighteenth Brumaire of Louis Bonaparte', तो किसी ने उसकी समीक्षा नहीं लिखी. इसपे एंगल्स ने कहाँ कि ये killing by silence है अर्थात आप चुप रह कर किसी की पहचान या उसकी समस्या को नकार दो. इसी प्रकार पसमांदा समाज की दैनिक समस्याओं का उर्दू अदब में कहीं …

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