हर कहानी अपने आप मे विशेष होती है। इस कहानी की विशेषता है कि ये आपको क्षण के सौवें हिस्से में भी सामाजिक कुरीति दिखा जाती है और आपको पता भी नही चलेगा अगर आप एक अच्छे दर्शक नही हैं तो। कहानी के मुख्य किरदार हैं इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी और उनके साथी अंसारी। कहानी की शुरुआत दिल्ली के एक पुल से होती है जहाँ सीबीआई की स्पेशल टीम के साथ डीसीपी भगत चार अपराधियों के …
Month: May 2020

“सरदार बल्लभ भाई पटेल ने बतौर चेयरमैन अल्पसंख्यक सुरक्षा कमेटी जब ड्राफ्ट कांस्टीट्यूशनल कमेटी के लिए रिजर्वेशन के मामले को ज़ेरे बहस रखा तो 7 मेम्बरों की कमेटी में से 5 ने इस के ख़िलाफ़ अपना वोट दिया। यह मेंबर थे- मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, मौलाना हिफ्ज़ुर्रहमान, बेग़म एजाज़ रसूल, हुसैनभाई लालजी, तजम्मुल हुसैन।” ज्ञात रहे कि उस समय तक 1935 के भारत सरकार एक्ट के अनुसार पसमांदा जातियों को आरक्षण का लाभ मिल रहा …

जोजो रैबिट फ़िल्म के साथ एक बहस भी चल रही है कि क्या त्रासदी पर कॉमेडी बनाई जा सकती है। मेरा जवाब है आपको किसी भी रचना को इस तरह देखना होगा कि उसका End result क्या है! क्या जोजो रैबिट हम को सिर्फ़ हंसाती है या वह हंसाते हुए हम को विषय की गम्भीरता से परिचित भी करवाती है! फ़िल्म हमें 10 साल के बच्चे के ज़रिए हमें नाज़ी विचारधारा को समझने और समझाने …

The first Muslim converts in India were a result of the influence of Arab traders. This dates back to before the first Muslim conquests of the region. These and consequent conversions must be seen in the light of the fact that by this time Brahminism had succeeded in completely extirpating Buddhism from India and in bringing back the Shudras into the Hindu fold as slaves, subjecting them to horrendously cruel forms of oppression. It is …

यह गिरोह जिस पकिस्तान आन्दोलन को पसमांदा मुस्लिमों का आन्दोलन बता रहा है उस पाकिस्तान आन्दोलन का नेतृत्व करने वाली मुस्लिम लीग का शीर्ष नेतृत्व तो दूर की बात है सम्पूर्ण भारत में उस मुस्लिम लीग में दस-बीस ज़िला अध्यक्ष और ज़िला महासचिव मुश्किल से पसमांदा रहे होंगे। पाकिस्तान आन्दोलन को तो किसी भी तरह से पसमांदा मुसलमानों का आन्दोलन कहा ही नहीं जा सकता। बल्कि अब्दुल क़य्यूम अन्सारी साहब के साथ नवाब हसन साहब …

इस पूरे संदर्भ में यह कहना उचित होगा कि धार्मिक उन्माद के इस दौर में वंचितों को उनके अधिकार दे कर ही समतावादी समाज की कल्पना को साकार किया जा सकता है। हमारा यह मानना है कि पेशागत समानताओं के आधार पर समाज के अलग अलग समूहों को चिन्हित करना और इन समाजों के समायोजन से एक तरह की ठोस पहचान बनाते हुये संविधान प्रदत्त अधिकारों की बहाली का प्रयास करना होगा। इस प्रयास से …
ज़कात इस्लाम की एक ऐसी व्यवस्था है जिसके अंतर्गत हर साहिबे नेसाब आकिल (जो पागल न हो) व बालिग़ (वयस्क) मुसलमान पर उसके बचत वाले माल पर जिस पर साल (वर्ष) गुज़र जाये ज़कात देना अनिवार्य है. साहिबे नेसाब या मालिके नेसाब उस व्यक्ति को कहते हैं जो धन की उस न्यूनतम मात्रा【2】का मालिक हो जिसपर ज़कात निकालनी अनिवार्य की गयी है. ताकि उससे गरीब, परेशान, असहाय आदि【3】लोगों की सहायता की जा सके. …
जो शख़्स यह दावा करता है कि वबाएँ (महामारी) क़ौम की इज्तेमाई (सामूहिक) बेहयाई के नतीजे में नाज़िल (अवतरित) होती हैं तो इस आपसी तअल्लुक़ (बेहयाई और वबा) को साबित करना भी उसी का काम है। यह नहीं हो सकता है कि सिर्फ़ एक दावा कर के हम बैठ जाएं और उस के बाद लोगों से उम्मीद रखें कि वह इस दावे को बग़ैर दलील और तर्क के सिर्फ़ इस लिए मान लें कि यह …
सर सय्यद अहमद खां सवर्ण मुसलमानों को समझाते रहे कि तुम सरकार के साथ स्वामीभक्ति के साथ पेश आओ और उनकी दृष्टि में स्वयं को संदेहास्पद मत बनाओ. 28 दिसम्बर 1887 में लखनऊ के अन्दर ‘मोहम्मडन एजुकेशनल कॉन्फ्रेंस’ की दूसरी सभा में उन्होंने कहा - जो निचली जाति के लोग हैं वो देश या सरकार के लिए लाभदायक नहीं हैं जबकि ऊँचे परिवार के लोग रईसों का सम्मान करते हैं साथ ही साथ अंग्रेज़ी समाज …
हिंदी फिल्मों में मुस्लिम पहचान दरसल अशराफ़ मुसलमानों की पहचान है. मुग़ले आज़म, महबूब की मेंहदी, पाकीज़ा, उमराव जान, डेढ़ इश्क़िया जैसी फिल्में इस श्रेणी में रख सकते हैं जिसका ज़्यादातर मुसलमानों यानी पसमांदा मुसलमानों से कोई तआल्लुक़ नहीं है. इसमें अशराफ़ जातियों के तौर-तरीके और भाषा को 'मुस्लिम संस्कृति' के रूप में दिखाया गया हैं. …
Gandhi was a vociferous opponent of religious conversion from Hinduism, even though this had for long been the means adopted by the Shudras to escape Brahminical slavery. He wrote and spoke extensively against such conversion, seeing in it no merit at all, in contrast to the Shudras who had used it as a means to throw off the chains of Brahminical slavery. …
It is not an exaggeration to claim that the sort of casteism and caste-based hierarchy that Syed Ahmad so fervently defended is still to be found in the AMU even today. I spent four years in that university, between 1999 and 2003, doing my graduation, and I could not help noticing how deeply-rooted caste consciousness and other such feudal attitudes still remained. Students, especially from ashraf background, tended to treat bearers, cooks and other helpers …
Sir Syed Ahmad Khan (d. 1898) is regarded as a great Indian Muslim intellectual, reformer, educationist, and Islamic modernist. He was the founder of the Muhammadan Anglo-Oriental College, which was later converted into the Aligarh Muslim University. An ardent champion of modern education, he was a passionate supporter of British colonial rule. …
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