जब मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी ने पूछा कि क्या आप ने ख़िलाफ़त आंदोलन, जमियत-उल-उलेमा, मजलिस-ए-अहरार और मुस्लिम लीग जैसे अन्य दूसरे संगठनों से आवेदन पत्र लिया था? अगर हाँ तो वह आवेदन पत्र दिखलायें। उस सवाल पर नवाब साहब आंय-बांय करने लगे। फिर भी मौलाना के बहुत असरार पर नवाब साहब ने इन पसमांदा संगठनों (जमियत-उल-मोमिनीन और जमियत-उल-क़ुरैश) को मुस्लिम कॉन्फ्रेंस में शामिल करने या ना करने के फ़ैसले को एक सब-कमेटी गठित करके …
Month: June 2020
मुझको पहचान ले! मैं वही हूं के जिसने तुझे सेब खाने प उकसाया था। फिर भी तूने नहीं सेब तो जानेमन मैंने ही खाया था। और फिर कितनी चालाकी से तेरे सर मंढ दिया मैंने अपना गुनाह। …

जिस प्रकार हिन्दू समाज मे छोटी ज़ाति की महिलाओं को स्तन ढकने पर केरल में स्तन टैक्स देना पड़ता था। उसी प्रकार मुस्लिम समाज मे भी ज़ाति आधारित टैक्स तक लगाए जाते थे जैसे धोबियों से लिया जाने वाला प्रजौटी टैक्स। इसी प्रकार गोरखपुर के जमींदार पसमांदा (अजलाफ/अरज़ाल) मुसलमानों से रेज़ालत टेक्स वसूल करते थे क्योंकि उनका मानना था कि ये रज़ील(कमीना, नीच।) हैं। …

भारत-चीन सीमा विवाद के एक बीच एक पसमांदा व्यक्तित्व केन्द्रीय भूमिका में उभर कर सामने आया है जिस के नाम पर चर्चित वैली का नाम गलवान घाटी पड़ा। वाक़्या यह है कि एक बार एक खोज-यात्री लेह के इलाक़े में फंस गया था और बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था ऐसे में रसूल गलवान नाम के एक अल्प आयु (लगभग 14 वर्षीय) बालक ने एक नदी से होते हुए रास्ता सुझाया और …

अक्सर सुन्नत और हदीस दोनों शब्दों को पर्यायवाची या एक ही चीज़ समझा जाता है, लेकिन दोनों की प्रामाणिकता प्रमाणिकता (सच्चाई) और विषय-वस्तु (मौज़ू) में बहुत अंतर है। रसूलुल्लाह (स.अ.व.) के कथन (क़ौल), कार्य (फ़ेअल) और स्वीकृति एवं पुष्टि (इजाज़त और तस्दीक़) की रिवायतों (लिखित परंपरा) या ख़बरों को इस्लामी परिभाषा में ‘हदीस’ कहा जाता है। यह हदीसें इस्लाम के असल दो स्रोत (माखज़) यानी क़ुरआन और सुन्नत से मिलने वाले दीन में कुछ घटाती …

समय के साथ हिन्दू समाज का पसमांदा वर्ग (पिछड़े और दलित) आंदोलित और मुखर हो कर ख़ुद को स्थापित करता है लेकिन यहाँ भी अशराफ़ वर्ग 'धर्म और धार्मिक एकता की नीति' को आगे बढ़ाते हुए पूरे मुस्लिम समाज की ओर से स्वयं को ही प्रतिनिधि मनवा लेता है और यह आंदोलन भी मुस्लिम समाज के जातिगत विभेद को नकारते हुए मुसलमान के नाम पर अशराफ़ का उसी तरह तुष्टिकरण करना प्रारम्भ करते हैं जैसा …

सैयद व आले रसूल शब्दों का प्रयोग अजमी (ईरानी और गैर-अरबी) विशेषकर भारतीय उपमहाद्वीप के विद्वानों द्वारा जिस अर्थ में किया जाता है उसका अपने शाब्दिक अर्थ व इस्लामिक मान्यताओं से कोई सम्बन्ध नही है। अधिकांश अजमी विद्वानों द्वारा अपने लेखो,पुस्तको व भाषणों में “सैयद व आले रसूल” शब्द का प्रयोग हजरत मोहम्मद सल्ल0 के तथाकथित वंशजो के लिए किया जाता है, और दोनों शब्दों को एक दूसरे का पर्यायवाची बना दिया गया है। हालाँकि …

मुस्लिम आरक्षण की माँग का उद्देश्य मुस्लिम हित नहीं बल्कि यह माँग अपनी (अशराफ़) लीडरशिप को क़ायम रखने व पसमांदा मुसलमानों को (आरक्षण के द्वारा) मिल रहे संवैधानिक लाभों से वंचित कर ख़ुद उस को प्राप्त करने का बेहतरीन हथियार/ज़रिया मात्र है क्योंकि तथाकथित मुस्लिम लीडरशिप (दरअसल अशराफ़ लीडरशिप) पसमांदा समाज में फैल रही जागरूकता व उन में उभर रही लीडरशिप की योग्यता में अपनी चौधराहट (एकछत्र राज) लिए ख़तरा महसूस कर रही है, जो …

पसमांदा उर्दू/फ़ारसी भाषा का शब्द है जिस का अर्थ होता है “जो पीछे रह गया है”। पसमांदा शब्द मुस्लिम धर्मावलंबी आदिवासी, दलित और पिछड़े लोगों के लिए बोला जाता है। पसमांदा अन्दोलन का इतिहास बाबा कबीर से शुरू होता है।बहुत सालों बाद बाबा कबीर की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी (1890-1953) ने बाज़ाब्ता सांगठनिक रूप में एक अंतरराष्ट्रीय संगठन (जमीयतुल मोमिनीन/ मोमिन कांफ्रेंस) तैयार किया …

One tragic consequence of efforts to seek to wrongly legitimise the philosophy of caste division in Islam has been that when vast numbers of people who were oppressed by the Indian caste system embraced Islam, attracted by its teachings of equality and human unity, they had to face the same sort of filth and oppression here, too. After converting to Islam, they found that they still remained Bhangis, Chamars, Kunjaras, Qasais and Julahas, and were …

The central government is neither following its own policy of 27% reserved seats for OBCs nor the state government mandates regarding OBC reservation in the allocation of seats. This has resulted in OBCs being robbed off of 10,000 seats in the last three years. …

किताब में गाँव को पढ़ने और जानने वालों के लिए गाँव एक ‘स्वर्ग’ है। यह ‘इंद्रलोक’ के सामान है। यह “सद्भाव” और “सहयोग” का संगम है। यह भारत की “आत्मा” है। यह “पश्चिमी सभ्यता” और “मैटेरियलिज़म” का सही विकल्प है। फिर गाँव को “शांति” और “सुख” का पर्यायवाची कहा गया। यह ग़लतफ़ह़मी दरअसल उपनिवेशवादी इतिहासकारों ने फ़ैलाया। लंदन में पढ़े और फिर धोती-धारण करने वाले एक ‘फक़ीर’ ने इसे क़ौमी तह़रीक में सच बताकर प्रचारित …
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