अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में ज़ात-पात का अत्यधिक ज़ोर एवं चलन है, इस की रोकथाम के लिए आरम्भ से ले कर अब तक कोई क़दम नहीं उठाया गया है जब कि इस की तुलना में जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी, जो कम्युनिज्म (दहरियत) का गढ़ है, में ज़ात-पात के विरुद्ध SC/ST सेल है. यदि कोई किसी को कम ज़ात या उस की जाति के नाम को घटिया तरीक़े के साथ पुकारे तो शोषित व्यक्ति उस सेल में जा …
Author: Mohammad Altamash
Mohammad Altamash
मोहम्मद अलतमश, हुनरमंदों के शहर मऊ, उत्तर प्रदेश से तअल्लुक़ रखते हैं। 'एन्टी नेशनल यूनिवर्सिटी' जेएनयू से पढ़ाई की है। पहले तबलीग़, फिर कम्युनिस्टों का झण्डा उठाया और आख़िरकार पसमांदा आंदोलन की अलख जगा रहे हैं.... मतलब कि दैर-ओ-हरम से हो कर मैख़ाने आये हैं!

29 मई 1453 को मोहम्मद फ़ातेह क़ुस्तुनतुनिया (अब इस्तांबुल) फ़तह करता है, शहर में मुसलमान क़त्ल-ए-आम शुरू कर देते हैं। उसी रोज़ सुल्तान आया सोफ़िया में दाख़िल होता है, अज़ान दी जाती है और ज़ोहर की नमाज़ बाजमाअत अदा की जाती है। वह मंगल का दिन था (सन्दर्भ: दौलत-ए-उस्मानिया-डॉक्टर अज़ीज़ अहमद, दार-उल-मुसन्निफ़ीन-आज़मगढ़, एडिशन 2009, प्रशंसा एवं सत्यापन: मौलाना सय्यद सुलेमान नदवी, पेज नम्बर-102) ठीक उसी वक़्त जब शहर में क़त्ल-ए-आम हो रहा हो और उसी …
जो शख़्स यह दावा करता है कि वबाएँ (महामारी) क़ौम की इज्तेमाई (सामूहिक) बेहयाई के नतीजे में नाज़िल (अवतरित) होती हैं तो इस आपसी तअल्लुक़ (बेहयाई और वबा) को साबित करना भी उसी का काम है। यह नहीं हो सकता है कि सिर्फ़ एक दावा कर के हम बैठ जाएं और उस के बाद लोगों से उम्मीद रखें कि वह इस दावे को बग़ैर दलील और तर्क के सिर्फ़ इस लिए मान लें कि यह …
सर सय्यद अहमद खां सवर्ण मुसलमानों को समझाते रहे कि तुम सरकार के साथ स्वामीभक्ति के साथ पेश आओ और उनकी दृष्टि में स्वयं को संदेहास्पद मत बनाओ. 28 दिसम्बर 1887 में लखनऊ के अन्दर ‘मोहम्मडन एजुकेशनल कॉन्फ्रेंस’ की दूसरी सभा में उन्होंने कहा - जो निचली जाति के लोग हैं वो देश या सरकार के लिए लाभदायक नहीं हैं जबकि ऊँचे परिवार के लोग रईसों का सम्मान करते हैं साथ ही साथ अंग्रेज़ी समाज …
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