लाल बहादुर वर्मा लिखते हैं ,आतंक से आतंकवाद का सफर लम्बा है. आदिकाल से मनुष्य आतंकित होता आ रहा है और आतंकित करता आ रहा है. मनुष्यों ने अपनी सत्ता को लेकर जो भी संस्था बनाई उसमे अक्सर आतंक को एक उपकरण के रूप में प्रयोग किया. धर्म में ईश्वर का आतंक, परिवार में पितृसत्ता का आतंक, राज्य में सर्वभौमिक्ता का आतंक अर्थात सेना, पुलिस का आतंक'. बहरहाल हम यहाँ जिस आतंक की बात कर …
Author: Lenin Maududi

सर सैयद को लेकर कई झूठ गढ़े गए हैं। जैसे- सर सैयद की वजह से मुसलामनों में आधुनिक शिक्षा आई। सब से पहले उन्होंने अंग्रेजी भाषा पढ़ाने की बात की। अंग्रेज़ी पढ़ाने की वजह उन पर कुफ़्र का फ़तवा आया। यह सच है कि हम को आज तक यही पढ़ाया गया है कि सर सैयद ने मुसलामनों के अंदर आधुनिक शिक्षा का प्रसार किया जिस की वजह से मुसलमान सरकारी नौकरी में आ सके पर …

हम यह जानते हैं कि पसमांदा मुसलमानों का न कोई राज्य रहा है और न कोई राजा। क़ौम के बनाए ढांचें में पसमांदा मुसलमान तब तक फिट नहीं हुए जब तक लोकतंत्र में प्रत्येक वोट का महत्व नहीं बढ़ा। विदेशी नस्ल के मुस्लिम सुल्तानों और बादशाहों ने भारतीय पसमांदा समाज को कभी अपने बराबर नहीं समझा और यही हाल विदेशी नस्ल के उलेमा का भी रहा। कई प्रमुख मध्यकालीन उलेमा न सिर्फ़ भारतीय हिंदुओं के …

The purpose of this article is to tell the world, for once and all, that my introduction to the caste system among Muslims is not because of JNU. The silencing, exclusion and discrimination practised against the lower caste for centuries were not taught to me by any scholar of modern English education system. Mohammad Hashim, my abbaji (paternal grandfather), an Islamic scholar, was the person who introduced me to this dark reality where my whole …

हम आज जिस किताब 'मक़ामात' की समीक्षा पढ़ रहे हैं वह दरअसल विभिन्न विषयों और रिवायतों पर कई बरसों में ग़ामदी साहब द्वारा लिखे गए लेख का संकलन है जो इन विषयों पर उन के दृष्टिकोण को दर्शाते हैं। इस किताब में बहुत से ऐसे विषय हैं जो आज भी मुस्लिम समाज में विवाद का कारण बने हुए हैं, जैसे-तलाक़, सूद, बीमा, जिहाद, इस्लामिक रियासत, ख़लीफ़ा, पर्दा, दाढ़ी, मदरसों की तालीम , बाल विवाह, औरतों …

1946 में जब संविधान सभा का गठन हुआ और 26 नवम्बर 1949 को जब यह अस्तित्व में आई, उस दौरान डा0 भीमराव अम्बेडकर तथा अन्य सदस्य हिन्दू समाज में निचली जातियों (जिन्हें दलित भी कहा गया) के उत्थान के लिए संविधान में संशोधन के प्रयत्न करते रहे। संविधान के अनुच्छेद 341 में राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया है कि वह विभिन्न जातियों और कबीलों के नाम एक सूची में शामिल कर दें। 1950 में …

Rick and Morty एक अमेरिकी एनीमेशन सीरीज़ है जिस को Justin Roiland and Dan Harmon ने बनाया है। 2013 से अब तक इसके चार सीज़न आ चुके हैं। पहली नज़र में यह सीरीज़ आप को बच्चों का कोई आम सा कार्टून नज़र आएगी पर यक़ीन करें एनिमेशन में होने के बावजूद यह सीरीज़ बच्चों के लिए क़त्तई नहीं कही जा सकती। आप को समझाने के लिए तो यह कहा जा सकता है कि Rick and …

आज जब हम कंसंट्रेशन कैंप, अलग से पहचान पत्र ,आर्थिक बहिष्कार,नागरिकता संशोधन, भीड़ द्वारा हत्या, नस्लीय शुद्धता,अंधराष्ट्रवाद, युद्ध का महिमामंडन आदि शब्द सुनते हैं तो हमें अपने आसपास हिटलर नज़र आने लगता हैं। हिटलर होने का अर्थ क्या है ? नफरत किसी समुदाय , किसी देश के साथ आप के साथ क्या कर सकती है ? इस बात को समझने के लिए हमें बार-बार होलोकास्ट (यहूदियों का जनसंहार) का और हिटलर के उदय का अध्ययन …

अक्सर सुन्नत और हदीस दोनों शब्दों को पर्यायवाची या एक ही चीज़ समझा जाता है, लेकिन दोनों की प्रामाणिकता प्रमाणिकता (सच्चाई) और विषय-वस्तु (मौज़ू) में बहुत अंतर है। रसूलुल्लाह (स.अ.व.) के कथन (क़ौल), कार्य (फ़ेअल) और स्वीकृति एवं पुष्टि (इजाज़त और तस्दीक़) की रिवायतों (लिखित परंपरा) या ख़बरों को इस्लामी परिभाषा में ‘हदीस’ कहा जाता है। यह हदीसें इस्लाम के असल दो स्रोत (माखज़) यानी क़ुरआन और सुन्नत से मिलने वाले दीन में कुछ घटाती …

The central government is neither following its own policy of 27% reserved seats for OBCs nor the state government mandates regarding OBC reservation in the allocation of seats. This has resulted in OBCs being robbed off of 10,000 seats in the last three years. …

जोजो रैबिट फ़िल्म के साथ एक बहस भी चल रही है कि क्या त्रासदी पर कॉमेडी बनाई जा सकती है। मेरा जवाब है आपको किसी भी रचना को इस तरह देखना होगा कि उसका End result क्या है! क्या जोजो रैबिट हम को सिर्फ़ हंसाती है या वह हंसाते हुए हम को विषय की गम्भीरता से परिचित भी करवाती है! फ़िल्म हमें 10 साल के बच्चे के ज़रिए हमें नाज़ी विचारधारा को समझने और समझाने …
हिंदी फिल्मों में मुस्लिम पहचान दरसल अशराफ़ मुसलमानों की पहचान है. मुग़ले आज़म, महबूब की मेंहदी, पाकीज़ा, उमराव जान, डेढ़ इश्क़िया जैसी फिल्में इस श्रेणी में रख सकते हैं जिसका ज़्यादातर मुसलमानों यानी पसमांदा मुसलमानों से कोई तआल्लुक़ नहीं है. इसमें अशराफ़ जातियों के तौर-तरीके और भाषा को 'मुस्लिम संस्कृति' के रूप में दिखाया गया हैं. …

दो साल पहले बुलंदशहर में इस्लामी धार्मिक महासम्मेलन (इज्तेमा) के लिए करोड़ों मुसलमान एकत्रित हुए। इस से एक बात तो साबित होती है कि मुस्लिम समाज पर आज भी उलेमाओं (आलिम का बहुवचन अर्थात मौलानाओं) की पकड़ मज़बूत है, जिनकी तक़रीरों को सुनने के लिए 1 करोड़ लोग भी आ सकते हैं लेकिन अब दूसरा और ज़रूरी सवाल यह किया जाए कि इस इज्तेमा (मुसलमानों का सम्मलेन/सत्संग) से मुस्लिम समाज को क्या लाभ हुआ? …
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