The purpose of this article is to tell the world, for once and all, that my introduction to the caste system among Muslims is not because of JNU. The silencing, exclusion and discrimination practised against the lower caste for centuries were not taught to me by any scholar of modern English education system. Mohammad Hashim, my abbaji (paternal grandfather), an Islamic scholar, was the person who introduced me to this dark reality where my whole …
Category: Caste & Religion

संविधान निर्माताओं को शायद इस बात का खूब आभास था कि कुछ लोग भारत को हिन्दुस्तान (हिन्दुओं का स्थान) बनाना चाहते है, सम्भवतः इसीलिए संविधान निर्माताओं ने पूरे संविधान (जो कि अंग्रेज़ी में लिखा गया है) में किसी भी शब्द के स्पष्टीकरण अथवा अनुवाद की आवश्यकता महसूस नहीं की लेकिन जब संविधान में देश का नाम लिखना हुआ तो मात्र “इण्डिया” लिखकर उनको सन्तोष नहीं हुआ क्योंकि उनके सामने इण्डिया को हिन्दुस्तान बनाने की नापाक …

1946 में जब संविधान सभा का गठन हुआ और 26 नवम्बर 1949 को जब यह अस्तित्व में आई, उस दौरान डा0 भीमराव अम्बेडकर तथा अन्य सदस्य हिन्दू समाज में निचली जातियों (जिन्हें दलित भी कहा गया) के उत्थान के लिए संविधान में संशोधन के प्रयत्न करते रहे। संविधान के अनुच्छेद 341 में राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया है कि वह विभिन्न जातियों और कबीलों के नाम एक सूची में शामिल कर दें। 1950 में …

अशराफ अक्सर पसमांदा आंदोलन पर मुस्लिम समाज को बांटने का आरोप लगाकर पसमंदा आंदोलन को कमज़ोर करने की कोशिश करता है। जिसके भ्रम में अक्सर पसमांदा आ भी जाते हैं। जबकि पसमांदा आंदोलन वंचित समाज को मुख्यधारा में लाने की चेष्टा, सामाजिक न्याय का संघर्ष, हक़ अधिकार की प्राप्ती का प्रयत्न है। जिसका किसी भी धर्म से कोई सीधा टकराव नही है। इतिहास साक्षी है कि अशराफ, हमेशा से धर्म का इस्तेमाल अपनी सत्ता और …

यह मुस्लिम समाज का दुर्भाग्य ही है कि जो वर्ग मुस्लिम समाज को धार्मिक व राजनैतिक रूप से संचालित कर रहा है वह मुस्लिम समाज की सबसे बड़ी समस्या जाति के वजूद को ही स्वीकार करने को तैयार नहीं है। ऐसा नहीं है कि यह वर्ग इस हक़ीक़त से अनभिज्ञ है बल्कि सच यह है कि वह इस तथ्य को भली भांति जानता है लेकिन यह इनकार मात्र इस लिए कर रहा है क्योंकि यदि …

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अपने स्थापना से लेकर आजतक ये दावा करता आया है कि वह इस देश में बसने वाले सबसे बड़े अल्पसंख्यक समाज की एक अकेली प्रतिनिधि संस्था है, जो उनके व्यक्तिगत एवम् सामाजिक मूल्यों को, जो इस्लामी शरीयत कानून द्वारा निर्धारित किये गए हैं, देखने भालने का कार्य सम्पादित करती है। इसके अतिरिक्त बोर्ड मुस्लिमो की तरफ से देश के वाह्य एवम् आतंरिक मामलो में ना सिर्फ अपनी राय रखता है बल्कि …

सदियों से दबी-कुचली मोमिन बिरादरी में यह एक नए इन्क़लाब का आग़ाज़ था। पहले अन्जुमन इस्लाह-बिल-फ़लाह फिर जमीयत-उल-मोमिनीन के नाम से यह तहरीक आगे बढ़ती रही जो 1928 ई० में ऑल इण्डिया मोमिन कॉन्फ्रेंस में तब्दील (बदल) हो गई। अब्दुल क़य्यूम अंसारी अपनी सियासी ज़िन्दगी के आग़ाज़ से ही कांग्रेस, ख़िलाफ़त तहरीक और मोमिन तहरीक से वाबस्ता (जुड़े) थे लेकिन जब अपने वसीअ तर (बड़े) नस्ब-उल-ऐन (मक़सद) के साथ मोमिन तहरीक के क़ायद (नेता) बने …

जब मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी ने पूछा कि क्या आप ने ख़िलाफ़त आंदोलन, जमियत-उल-उलेमा, मजलिस-ए-अहरार और मुस्लिम लीग जैसे अन्य दूसरे संगठनों से आवेदन पत्र लिया था? अगर हाँ तो वह आवेदन पत्र दिखलायें। उस सवाल पर नवाब साहब आंय-बांय करने लगे। फिर भी मौलाना के बहुत असरार पर नवाब साहब ने इन पसमांदा संगठनों (जमियत-उल-मोमिनीन और जमियत-उल-क़ुरैश) को मुस्लिम कॉन्फ्रेंस में शामिल करने या ना करने के फ़ैसले को एक सब-कमेटी गठित करके …

जिस प्रकार हिन्दू समाज मे छोटी ज़ाति की महिलाओं को स्तन ढकने पर केरल में स्तन टैक्स देना पड़ता था। उसी प्रकार मुस्लिम समाज मे भी ज़ाति आधारित टैक्स तक लगाए जाते थे जैसे धोबियों से लिया जाने वाला प्रजौटी टैक्स। इसी प्रकार गोरखपुर के जमींदार पसमांदा (अजलाफ/अरज़ाल) मुसलमानों से रेज़ालत टेक्स वसूल करते थे क्योंकि उनका मानना था कि ये रज़ील(कमीना, नीच।) हैं। …

अक्सर सुन्नत और हदीस दोनों शब्दों को पर्यायवाची या एक ही चीज़ समझा जाता है, लेकिन दोनों की प्रामाणिकता प्रमाणिकता (सच्चाई) और विषय-वस्तु (मौज़ू) में बहुत अंतर है। रसूलुल्लाह (स.अ.व.) के कथन (क़ौल), कार्य (फ़ेअल) और स्वीकृति एवं पुष्टि (इजाज़त और तस्दीक़) की रिवायतों (लिखित परंपरा) या ख़बरों को इस्लामी परिभाषा में ‘हदीस’ कहा जाता है। यह हदीसें इस्लाम के असल दो स्रोत (माखज़) यानी क़ुरआन और सुन्नत से मिलने वाले दीन में कुछ घटाती …

समय के साथ हिन्दू समाज का पसमांदा वर्ग (पिछड़े और दलित) आंदोलित और मुखर हो कर ख़ुद को स्थापित करता है लेकिन यहाँ भी अशराफ़ वर्ग 'धर्म और धार्मिक एकता की नीति' को आगे बढ़ाते हुए पूरे मुस्लिम समाज की ओर से स्वयं को ही प्रतिनिधि मनवा लेता है और यह आंदोलन भी मुस्लिम समाज के जातिगत विभेद को नकारते हुए मुसलमान के नाम पर अशराफ़ का उसी तरह तुष्टिकरण करना प्रारम्भ करते हैं जैसा …

सैयद व आले रसूल शब्दों का प्रयोग अजमी (ईरानी और गैर-अरबी) विशेषकर भारतीय उपमहाद्वीप के विद्वानों द्वारा जिस अर्थ में किया जाता है उसका अपने शाब्दिक अर्थ व इस्लामिक मान्यताओं से कोई सम्बन्ध नही है। अधिकांश अजमी विद्वानों द्वारा अपने लेखो,पुस्तको व भाषणों में “सैयद व आले रसूल” शब्द का प्रयोग हजरत मोहम्मद सल्ल0 के तथाकथित वंशजो के लिए किया जाता है, और दोनों शब्दों को एक दूसरे का पर्यायवाची बना दिया गया है। हालाँकि …
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