५ सीटो का फायदा जो असदुद्दीन ओवैसी को मिला वो इसलिए नहीं कि उसकी राजनीतिक विचारधारा किसी बदलाव की द्योतक है वो इसलिए क्योंकि 'हिन्दू खतरे में है'। अब जब हिन्दू खतरे में है तो मुस्लिम तो आंकड़ों में मात्र १४ प्रतिशत हैं कुल आबादी के, वो तो और भी ज्यादा खतरे में होने ही थे। मेरे पसमांदा साथी पिछले तमाम सालो से ये लिखते आ रहे की इस हिन्दू मुस्लिम राजनीति में सिर्फ सवर्णों …
Category: Islam

इस लेख को लिखने की आवश्यकता इसलिए महसूस हुई क्योंकि पसमांदा आन्दोलन से सम्बन्धित व्यक्तियों, पसमांदा संगठनो के पदाधिकारियों तथा समर्थकों द्वारा इबलीसवाद, इबलीसवादी तथा इबलीसी जैसे शब्दों का प्रयोग अक्सर अपने लेखों, भाषणों, फेसबुक, व्हाट्सअप जैसी सोशल साइटों पर अपनी पोस्टों तथा बहस के दौरान अपनी टिप्पणियों में किया जाता है जिसमें वह सैयदवाद (तथाकथित सैयदवाद) को ही इबलीसवाद कहते है तथा सैयदवाद के समर्थकों को इबलीसीवादी व इबलीसी कहते है। जिसका तथाकथित सैयद …

The purpose of this article is to tell the world, for once and all, that my introduction to the caste system among Muslims is not because of JNU. The silencing, exclusion and discrimination practised against the lower caste for centuries were not taught to me by any scholar of modern English education system. Mohammad Hashim, my abbaji (paternal grandfather), an Islamic scholar, was the person who introduced me to this dark reality where my whole …

हम आज जिस किताब 'मक़ामात' की समीक्षा पढ़ रहे हैं वह दरअसल विभिन्न विषयों और रिवायतों पर कई बरसों में ग़ामदी साहब द्वारा लिखे गए लेख का संकलन है जो इन विषयों पर उन के दृष्टिकोण को दर्शाते हैं। इस किताब में बहुत से ऐसे विषय हैं जो आज भी मुस्लिम समाज में विवाद का कारण बने हुए हैं, जैसे-तलाक़, सूद, बीमा, जिहाद, इस्लामिक रियासत, ख़लीफ़ा, पर्दा, दाढ़ी, मदरसों की तालीम , बाल विवाह, औरतों …

आजकल यह एक नया फित्ना (गुमराही, फसाद, बग़ावत) शुरू हुआ है कि शर्फ़ नसब (जातीय बड़प्पन) को ही अस्वीकार करने लगे, कहते हैं यह कोई चीज़ नही लेकिन इसके ख्वास (विशेष/विशेषताएँ) और आसार (प्रभावों) अक्सर कुल्ली (पूरी तरह) नही तो अक्सरी (अधिकतर) तो ज़रूर है और अनुभव में है। और एक बात अजीब है कि यह लोग एक तरफ तो कहते हैं कि हसब नसब कोई चीज़ नही, दूसरी तरफ अपने लिए इसकी कोशिश है, …

मौलना, शादी-विवाह के मामले में इस्लाम की अशराफ व्याख्या करते हुए जातीय बन्धन को इस्लाम बता रहे हैं,(इस्लाम की पसमांदा व्याख्या के अनुसार इस्लाम में शादी के लिए कोई जातीय बन्धन नही है) यहाँ यह बात भी स्पष्ट समझ में आती है कि अशराफ जातियों के ऊँच-नीच को मान्यता तो देते है लेकिन शादी विवाह को वर्जित नही माना है। वहीं पसमांदा जातियों में सीढीं-दार जातिवाद की मान्यता दिया है। स्पष्ट हो रहा है कि …

29 मई 1453 को मोहम्मद फ़ातेह क़ुस्तुनतुनिया (अब इस्तांबुल) फ़तह करता है, शहर में मुसलमान क़त्ल-ए-आम शुरू कर देते हैं। उसी रोज़ सुल्तान आया सोफ़िया में दाख़िल होता है, अज़ान दी जाती है और ज़ोहर की नमाज़ बाजमाअत अदा की जाती है। वह मंगल का दिन था (सन्दर्भ: दौलत-ए-उस्मानिया-डॉक्टर अज़ीज़ अहमद, दार-उल-मुसन्निफ़ीन-आज़मगढ़, एडिशन 2009, प्रशंसा एवं सत्यापन: मौलाना सय्यद सुलेमान नदवी, पेज नम्बर-102) ठीक उसी वक़्त जब शहर में क़त्ल-ए-आम हो रहा हो और उसी …

Inspite of all these facts , if a person chooses to support conversion, he must not baby cry on Babri or Cordoba Mosque. In response to what Erdogan said , "Those who remain silent when Masjid Al Aqsa is attacked, trampled, its windows smashed, cannot tell us what to do about the status of Hagia Sofia" - Firstly that Our morality or course of actions is not dependent on what others have or do. A …

अक्सर सुन्नत और हदीस दोनों शब्दों को पर्यायवाची या एक ही चीज़ समझा जाता है, लेकिन दोनों की प्रामाणिकता प्रमाणिकता (सच्चाई) और विषय-वस्तु (मौज़ू) में बहुत अंतर है। रसूलुल्लाह (स.अ.व.) के कथन (क़ौल), कार्य (फ़ेअल) और स्वीकृति एवं पुष्टि (इजाज़त और तस्दीक़) की रिवायतों (लिखित परंपरा) या ख़बरों को इस्लामी परिभाषा में ‘हदीस’ कहा जाता है। यह हदीसें इस्लाम के असल दो स्रोत (माखज़) यानी क़ुरआन और सुन्नत से मिलने वाले दीन में कुछ घटाती …
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