इब्लीसी तहरीक के इमामों व विद्वानों द्वारा सूरः अहज़ाब की 33वीं आयत में प्रयोग लफ्ज़ 'अहल-ए-बैत' को जिस तरह सियाक़-ओ-सबाक़ से काट कर उस की मनमानी बल्कि इब्लीसवादी व्याख्या की गई है और जिस तरह ज़ोर-ओ-शोर से चीख़-चीख़ कर प्रोपेगण्डा फैलाया गया उस ने अन्य इस्लामिक स्कालर्स/विद्वानों को मजबूर कर दिया कि उस को रद्द किया जाए। …
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बदीन ज़िले में एक भील जाति के नौजवान की लाश को उसके क़ब्र से खोद कर बाहर निकाल कर फेंक दिया गया। यह अमानवीय कृत्य उच्चवतम पवित्रता के धार्मिक जोश में साहिबे ईमान(इस्लाम के सच्चे मानने वाले) वालो ने किया। दैनिक सिंध एक्सप्रेस में इसकी फ़ोटो और रिपोर्ट कुछ विस्तार के साथ छपी। यह कहा जा सकता है कि यह फोटो सिंध की मौजूदा धर्मनिरपेक्ष और सूफीवाद की स्थिति का सही चित्रण करता है, और …
ਆਜ਼ਾਦੀ ਘੁਲਾਟੀਏ ਅਤੇ ਪਹਿਲੇ ਪਸਮਾਂਦਾ ਅੰਦੋਲਨ ਦੇ ਜਨਕ, ਮੌਲਾਨਾ ਅਲੀ ਹੁਸੈਨ ” ਆਸਿਮ ਬਿਹਾਰੀ” ਜਨਮ 15 ਅਪ੍ਰੈਲ 1890- ਮੌਤ 6 ਦਿਸੰਬਰ 1953. ਮੌਲਾਨਾ ਅਲੀ ਹੁਸੈਨ “ਆਸਿਮ ਬਿਹਾਰੀ” ਦਾ ਜਨਮ 15 ਅਪ੍ਰੈਲ 1890 ਨੂੰ ਮੁਹੱਲਾ ਖਾਸ ਗੰਜ, ਬਿਹਾਰ ਸ਼ਰੀਫ, ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਨਾਲੰਦਾ, ਬਿਹਾਰ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਦੀਨਦਾਰ (ਧਾਰਮਿਕ) ਗਰੀਬ ਪਸਮਾਂਦਾ ਬੁਨਕਰ ਪਰਿਵਾਰ ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ ਸੀ. 1906 ਵਿੱਚ 16 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਊਸ਼ਾ ਕੰਪਨੀ ਵਿੱਚ ਨੌਕਰੀ ਕਰਨੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀ. ਨੌਕਰੀ ਦੇ ਨਾਲ਼ ਨਾਲ਼ ਅਧਿਐਨ (ਪੜ੍ਹਾਈ ਲਿਖਾਈ) ਵੀ …
مولانا علی حسین عاصم بہاری محلہ خاص گنج، بہار شریف، ضلع نالندہ ، بہار، میں ایک غریب دیندار پسماندہ گھرانہ میں پیدا ہوئے تھے۔ سال ۱۹۰٦ ء میں ١٦ سال کی عمر میں، کولکتہ کے اوشا کمپنی میں اپنا کیریئر شروع کیا۔ کام کے ساتھ مطالعہ بھی جاری رہا۔ متعدد تحریکوں میں سرگرم رہے۔ پابندی اور بچارگی والی نوکری چھوڑ دیا ،گزر بسر کے لئے بیڑی بنانے کا کام شروع کیا۔ اپنے بیڑی کارکن دوستوں …

लव जिहाद एक ऐसा मिथ है जिससे धर्म का और धर्म के अंतर्गत आने वाले पुरुषों का गठ्ठर उस धर्म की औरतों पर डाल दिया जाता है क्योंकि इज़्ज़त का बांस महिलाओं के पीठ पर ही गाड़ा जाता है जहाँ परिवार नाम का पताका लहराता है। यह सुनिश्चत किया जाता है की आप का पेट्रीआर्की के अंतर्गत मुस्लिम पुरूषों/परिवार द्वारा उत्पीड़न ना हो परंतु अगर आपके अपने धर्म के पुरुषों/परिवार द्वारा ही आप शोषित हों …
५ सीटो का फायदा जो असदुद्दीन ओवैसी को मिला वो इसलिए नहीं कि उसकी राजनीतिक विचारधारा किसी बदलाव की द्योतक है वो इसलिए क्योंकि 'हिन्दू खतरे में है'। अब जब हिन्दू खतरे में है तो मुस्लिम तो आंकड़ों में मात्र १४ प्रतिशत हैं कुल आबादी के, वो तो और भी ज्यादा खतरे में होने ही थे। मेरे पसमांदा साथी पिछले तमाम सालो से ये लिखते आ रहे की इस हिन्दू मुस्लिम राजनीति में सिर्फ सवर्णों …
पसमांदा शब्द का इस्तेमाल ओबीसी लिस्ट में शामिल ‘दलित’ और ‘पिछड़े’ मुसलमानों के लिए 1998 से हो रहा है. पिछले कुछ सालों से इस में ‘आदिवासी’ मुसलमानों को भी शामिल कर लिया गया है. यानि पसमांदा केटेगरी में दलित, आदिवासी और पिछड़े मुस्लमान तीनों आते हैं उसी तरह जैसे बहुजन केटेगरी में तथाकथित हिन्दुओं के अन्दर दलित, पिछड़े, आदिवासी आते हैं. यानि अब पसमांदा शब्द बहुजन का समानांतर शब्द है, ओबीसी का नहीं. …

While Islamic scriptures like the Quran and Hadith are often quoted to negate the existence of social stratification among Muslims, authors of genealogical texts rely on the very same scriptures to foreground and legitimise discussions on descent and lineage. In the South Asian context, several conceptions of hierarchy as practised by Muslims in north India evolved over the course of colonial rule and were deployed interchangeably by Sayyids. These were based on notions of race, …

लाल बहादुर वर्मा लिखते हैं ,आतंक से आतंकवाद का सफर लम्बा है. आदिकाल से मनुष्य आतंकित होता आ रहा है और आतंकित करता आ रहा है. मनुष्यों ने अपनी सत्ता को लेकर जो भी संस्था बनाई उसमे अक्सर आतंक को एक उपकरण के रूप में प्रयोग किया. धर्म में ईश्वर का आतंक, परिवार में पितृसत्ता का आतंक, राज्य में सर्वभौमिक्ता का आतंक अर्थात सेना, पुलिस का आतंक'. बहरहाल हम यहाँ जिस आतंक की बात कर …

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में ज़ात-पात का अत्यधिक ज़ोर एवं चलन है, इस की रोकथाम के लिए आरम्भ से ले कर अब तक कोई क़दम नहीं उठाया गया है जब कि इस की तुलना में जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी, जो कम्युनिज्म (दहरियत) का गढ़ है, में ज़ात-पात के विरुद्ध SC/ST सेल है. यदि कोई किसी को कम ज़ात या उस की जाति के नाम को घटिया तरीक़े के साथ पुकारे तो शोषित व्यक्ति उस सेल में जा …

इस लेख को लिखने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि सर सैयद अहमद ख़ाँ साहब को लेकर भारतीय समाज विशेषकर मुस्लिम समाज में बड़ी ही गलत मान्यता स्थापित है. उन्हें मुस्लिम क़ौम का हमदर्द और न जाने किन-किन अलकाबो से नवाजा गया है जबकि जहाँ तक मैंने जाना है हकीकत इससे बिल्कुल उलट दिखी. सर सैयद को जितना मैंने पढ़ा है उस बुनियाद पर अगर उनकी शख्सियत के लिए कोई एक लफ्ज़ मैं इस्तेमाल करूंगा तो …

1947 ई० का बटवारा एक ऐसी त्रासदी थी जिसकी भारी कीमत सिर्फ यहाँ के मेहनतकश(महनत करके रोज़ी रोटी कमाने वाले) वर्गों को ही चुकाना पड़ा। काँग्रेस गुप्त रूप से भारत विभाजन को स्वीकार करने का समझौता कर चुकी थी। अशराफ मुस्लिम को पश्चिमी और पूरबी राज्यो की सूरत में सत्ता भोग का परवान मिलने जा रहा था। हिन्दूओ के सत्ताधारी वर्ग(सवर्ण) को एक बड़े अल्पसंख्यक से जान छूटने की नवेद( विवाह में दिया जाने वाला …

समकालीन जनमत के नवंबर 2017 अंक में छपा लेख “सर सैयद और धर्म निरपेक्षता” पढ़ा, पढ़ कर बहुत हैरानी हुई कि जनमत जैसे कम्युनिस्ट विचारधारा की पत्रिका में सर सैयद जैसे सामंतवादी व्यक्ति का महिमा मंडन एक राष्ट्रवादी, देशभक्त, लोकतंत्र की आवाज़, हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक, इंसानियत के सच्चे अलंबरदार के रूप में किया गया है, जो बिल्कुल बेबुनियाद और झूठ पर आधारित है। मज़े की बात ये है कि यह सब बातें उनकी …
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