अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में ज़ात-पात का अत्यधिक ज़ोर एवं चलन है, इस की रोकथाम के लिए आरम्भ से ले कर अब तक कोई क़दम नहीं उठाया गया है जब कि इस की तुलना में जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी, जो कम्युनिज्म (दहरियत) का गढ़ है, में ज़ात-पात के विरुद्ध SC/ST सेल है. यदि कोई किसी को कम ज़ात या उस की जाति के नाम को घटिया तरीक़े के साथ पुकारे तो शोषित व्यक्ति उस सेल में जा …
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सर सैयद को लेकर कई झूठ गढ़े गए हैं। जैसे- सर सैयद की वजह से मुसलामनों में आधुनिक शिक्षा आई। सब से पहले उन्होंने अंग्रेजी भाषा पढ़ाने की बात की। अंग्रेज़ी पढ़ाने की वजह उन पर कुफ़्र का फ़तवा आया। यह सच है कि हम को आज तक यही पढ़ाया गया है कि सर सैयद ने मुसलामनों के अंदर आधुनिक शिक्षा का प्रसार किया जिस की वजह से मुसलमान सरकारी नौकरी में आ सके पर …

इस लेख को लिखने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि सर सैयद अहमद ख़ाँ साहब को लेकर भारतीय समाज विशेषकर मुस्लिम समाज में बड़ी ही गलत मान्यता स्थापित है. उन्हें मुस्लिम क़ौम का हमदर्द और न जाने किन-किन अलकाबो से नवाजा गया है जबकि जहाँ तक मैंने जाना है हकीकत इससे बिल्कुल उलट दिखी. सर सैयद को जितना मैंने पढ़ा है उस बुनियाद पर अगर उनकी शख्सियत के लिए कोई एक लफ्ज़ मैं इस्तेमाल करूंगा तो …

समकालीन जनमत के नवंबर 2017 अंक में छपा लेख “सर सैयद और धर्म निरपेक्षता” पढ़ा, पढ़ कर बहुत हैरानी हुई कि जनमत जैसे कम्युनिस्ट विचारधारा की पत्रिका में सर सैयद जैसे सामंतवादी व्यक्ति का महिमा मंडन एक राष्ट्रवादी, देशभक्त, लोकतंत्र की आवाज़, हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक, इंसानियत के सच्चे अलंबरदार के रूप में किया गया है, जो बिल्कुल बेबुनियाद और झूठ पर आधारित है। मज़े की बात ये है कि यह सब बातें उनकी …

सर सैयद के समय शिक्षा को शासन, प्रशासन और सरकारी नौकरी में जाने का साधन समझा जाता था, और उस समय की औरतों में विरले ही इस तरह की नौकरियों के लिए अभिरुचि थी। इसलिए ऐसा माना जाता है कि ऐसी स्तिथि में पुरुष शिक्षा को वरीयता दिये जाने को सर सैयद द्वारा उचित समझना हितकर था, आज उनके द्वारा स्थापित किया गया, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से ना जाने कितने लोग शिक्षा हासिल कर अपनी …
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