हम यह जानते हैं कि पसमांदा मुसलमानों का न कोई राज्य रहा है और न कोई राजा। क़ौम के बनाए ढांचें में पसमांदा मुसलमान तब तक फिट नहीं हुए जब तक लोकतंत्र में प्रत्येक वोट का महत्व नहीं बढ़ा। विदेशी नस्ल के मुस्लिम सुल्तानों और बादशाहों ने भारतीय पसमांदा समाज को कभी अपने बराबर नहीं समझा और यही हाल विदेशी नस्ल के उलेमा का भी रहा। कई प्रमुख मध्यकालीन उलेमा न सिर्फ़ भारतीय हिंदुओं के …
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