हम यह जानते हैं कि पसमांदा मुसलमानों का न कोई राज्य रहा है और न कोई राजा। क़ौम के बनाए ढांचें में पसमांदा मुसलमान तब तक फिट नहीं हुए जब तक लोकतंत्र में प्रत्येक वोट का महत्व नहीं बढ़ा। विदेशी नस्ल के मुस्लिम सुल्तानों और बादशाहों ने भारतीय पसमांदा समाज को कभी अपने बराबर नहीं समझा और यही हाल विदेशी नस्ल के उलेमा का भी रहा। कई प्रमुख मध्यकालीन उलेमा न सिर्फ़ भारतीय हिंदुओं के …
Tag: caste basted discrimination among Indian muslims
पसमांदा विमर्श ने जम्हूरियत के सवाल को मुस्लिम राजनीति का केन्द्रीय प्रश्न बना दिया है और अम्बेडकर की तर्ज़ पर यह ऐलान कर दिया है कि मुसलमानों के अंदर भी जाति का सवाल केवल सामाजिक सुधार के सहारे नहीं बल्कि राजनीतिक आंदोलन के ज़रिये भी हल होगा। पसमांदा का नामकरण हो चुका है और अब यह आंदोलन तेज़ी से फैल रहा है …

The purpose of this article is to tell the world, for once and all, that my introduction to the caste system among Muslims is not because of JNU. The silencing, exclusion and discrimination practised against the lower caste for centuries were not taught to me by any scholar of modern English education system. Mohammad Hashim, my abbaji (paternal grandfather), an Islamic scholar, was the person who introduced me to this dark reality where my whole …

अशराफ अक्सर पसमांदा आंदोलन पर मुस्लिम समाज को बांटने का आरोप लगाकर पसमंदा आंदोलन को कमज़ोर करने की कोशिश करता है। जिसके भ्रम में अक्सर पसमांदा आ भी जाते हैं। जबकि पसमांदा आंदोलन वंचित समाज को मुख्यधारा में लाने की चेष्टा, सामाजिक न्याय का संघर्ष, हक़ अधिकार की प्राप्ती का प्रयत्न है। जिसका किसी भी धर्म से कोई सीधा टकराव नही है। इतिहास साक्षी है कि अशराफ, हमेशा से धर्म का इस्तेमाल अपनी सत्ता और …

यह मुस्लिम समाज का दुर्भाग्य ही है कि जो वर्ग मुस्लिम समाज को धार्मिक व राजनैतिक रूप से संचालित कर रहा है वह मुस्लिम समाज की सबसे बड़ी समस्या जाति के वजूद को ही स्वीकार करने को तैयार नहीं है। ऐसा नहीं है कि यह वर्ग इस हक़ीक़त से अनभिज्ञ है बल्कि सच यह है कि वह इस तथ्य को भली भांति जानता है लेकिन यह इनकार मात्र इस लिए कर रहा है क्योंकि यदि …

आजकल यह एक नया फित्ना (गुमराही, फसाद, बग़ावत) शुरू हुआ है कि शर्फ़ नसब (जातीय बड़प्पन) को ही अस्वीकार करने लगे, कहते हैं यह कोई चीज़ नही लेकिन इसके ख्वास (विशेष/विशेषताएँ) और आसार (प्रभावों) अक्सर कुल्ली (पूरी तरह) नही तो अक्सरी (अधिकतर) तो ज़रूर है और अनुभव में है। और एक बात अजीब है कि यह लोग एक तरफ तो कहते हैं कि हसब नसब कोई चीज़ नही, दूसरी तरफ अपने लिए इसकी कोशिश है, …

मौलना, शादी-विवाह के मामले में इस्लाम की अशराफ व्याख्या करते हुए जातीय बन्धन को इस्लाम बता रहे हैं,(इस्लाम की पसमांदा व्याख्या के अनुसार इस्लाम में शादी के लिए कोई जातीय बन्धन नही है) यहाँ यह बात भी स्पष्ट समझ में आती है कि अशराफ जातियों के ऊँच-नीच को मान्यता तो देते है लेकिन शादी विवाह को वर्जित नही माना है। वहीं पसमांदा जातियों में सीढीं-दार जातिवाद की मान्यता दिया है। स्पष्ट हो रहा है कि …

जिस प्रकार हिन्दू समाज मे छोटी ज़ाति की महिलाओं को स्तन ढकने पर केरल में स्तन टैक्स देना पड़ता था। उसी प्रकार मुस्लिम समाज मे भी ज़ाति आधारित टैक्स तक लगाए जाते थे जैसे धोबियों से लिया जाने वाला प्रजौटी टैक्स। इसी प्रकार गोरखपुर के जमींदार पसमांदा (अजलाफ/अरज़ाल) मुसलमानों से रेज़ालत टेक्स वसूल करते थे क्योंकि उनका मानना था कि ये रज़ील(कमीना, नीच।) हैं। …

With its philosophy of human equality Islam would have rapidly spread across India but this was not to be tolerated by the upholders of Brahminism or Manuvad. With the conversion of vast numbers of oppressed caste people to Islam they saw their hegemony, built on the caste system and untouchability, rapidly crumbling. They realized that if they did not modify Hinduism and if they did not halt the spread of Islam, Hinduism would be destroyed …
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