आजकल यह एक नया फित्ना (गुमराही, फसाद, बग़ावत) शुरू हुआ है कि शर्फ़ नसब (जातीय बड़प्पन) को ही अस्वीकार करने लगे, कहते हैं यह कोई चीज़ नही लेकिन इसके ख्वास (विशेष/विशेषताएँ) और आसार (प्रभावों) अक्सर कुल्ली (पूरी तरह) नही तो अक्सरी (अधिकतर) तो ज़रूर है और अनुभव में है। और एक बात अजीब है कि यह लोग एक तरफ तो कहते हैं कि हसब नसब कोई चीज़ नही, दूसरी तरफ अपने लिए इसकी कोशिश है, …
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मौलना, शादी-विवाह के मामले में इस्लाम की अशराफ व्याख्या करते हुए जातीय बन्धन को इस्लाम बता रहे हैं,(इस्लाम की पसमांदा व्याख्या के अनुसार इस्लाम में शादी के लिए कोई जातीय बन्धन नही है) यहाँ यह बात भी स्पष्ट समझ में आती है कि अशराफ जातियों के ऊँच-नीच को मान्यता तो देते है लेकिन शादी विवाह को वर्जित नही माना है। वहीं पसमांदा जातियों में सीढीं-दार जातिवाद की मान्यता दिया है। स्पष्ट हो रहा है कि …

मौलाना अशरफ अली थानवी हनफ़ी फ़िक़्ह के देवबंदी शाखा के सबसे बड़े उलेमा में से एक हैं। मौलाना न सिर्फ भारत में बल्कि पूरे इस्लामी-दुनिया में अपने इस्लामी-ज्ञान के विद्वाता के कारण एक विशिष्ट स्थान रखते हैं लेकिन उनका धुर साम्प्रदायिक, द्विराष्ट्र-सिद्धान्त का समर्थक, गाँधी विरोध, भाईचारा एवं समानता विरोध, पसमांदा विरोध आदि विचारो से स्पष्ट होता है कि वो अशराफ चरित्र के वाहक थे। …
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