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Posted by Abdullah Mansoor | Nov 18, 2024 | Book Review | 0 |
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Posted by Abdullah Mansoor | Nov 15, 2024 | Culture and Heritage, Political | 0 |
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Posted by Abdullah Mansoor | Nov 10, 2024 | Gender Equality and Women's Rights | 0 |
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Posted by Abdullah Mansoor | Oct 22, 2024 | Movie Review | 0 |
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Posted by Abdullah Mansoor | Oct 12, 2024 | Movie Review | 0 |
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Popularपुस्तक समीक्षा: इस्लाम का जन्म और विकास
by Arif Aziz | May 1, 2024 | Book Review | 0 |
मशहूर पाकिस्तानी इतिहासकार मुबारक अली लिखते हैं कि इस्लाम से पहले की तारीख़ दरअसल अरब क़बीलों का इतिहास माना जाता था। इस में हर क़बीले की तारीख़ और इस के रस्म-ओ-रिवाज का बयान किया जाता था। जो व्यक्ति तारीख़ को महफ़ूज़ रखने और फिर इसे बयान करने का काम करते थे उन्हें रावी या अख़बारी कहा जाता था। कुछ इतिहासकार इस्लाम और मुसलमान में फ़र्क़ करते हैं।
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आडूजीविथम: द गोट लाइफ
by Abdullah Mansoor | Oct 12, 2024 | Movie Review | 0 |
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अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में सामाजिक न्याय की खोज
by Abdullah Mansoor | Nov 22, 2024 | Political, Social Justice and Activism | 0 |
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पुस्तक समीक्षा: “सच्चाई के हक़ में पसमांदा पक्ष”
by Abdullah Mansoor | Nov 18, 2024 | Book Review | 0 |
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Top Ratedफिल्म जो जो रैबिट: नाज़ी प्रोपेगेंडा की ताकत और बाल मनोविज्ञान
by Abdullah Mansoor | Jul 17, 2024 | Movie Review, Reviews | 0 |
जोजो रैबिट (Roman Griffin Davis) 10 साल का एक लड़का है। यह तानाशाह के शासनकाल (Totalitarian regime) में पैदा हुआ है। इसलिए जोजो के लिए स्वतंत्रता, समानता, अधिकार जैसे शब्द कोई मायने नहीं रखते क्योंकि उसने कभी इन शब्दों का अनुभव ही नहीं किया है। जोजो सरकार द्वारा स्थापित हर झूठ को सत्य मानता है। सरकार न सिर्फ डंडे के ज़ोर से अपनी बात मनवाती है बल्कि वह व्यक्तियों के विचारों के परिवर्तन से भी अपने आदेशों का पालन करना सिखाती है। आदेशों को मानने का प्रशिक्षण स्कूलों से दिया जाता है। स्कूल किसी भी विचारधारा को फैलाने के सबसे बड़े माध्यम हैं। हिटलर ने स्कूल के पाठ्यक्रम को अपनी विचारधारा के अनुरूप बदलवा दिया था। वह बच्चों के सैन्य प्रशिक्षण के पक्ष में था, इसके लिए वह बच्चों और युवाओं का कैंप लगवाता था। जर्मन सेना की किसी भी कार्रवाई पर सवाल करना देशद्रोह था। सेना का महिमामंडन किया जाता था ताकि जर्मन सेना द्वारा किए जा रहे अत्याचार किसी को दिखाई न दे। बच्चों के अंदर अंधराष्ट्रवाद को फैलाया जाता था। इसी तरह जोजो भी खुद को हिटलर का सबसे वफादार सिपाही बनाना चाहता है
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वक़्फ़-बोर्ड का काला सच
by Abdullah Mansoor | Sep 19, 2024 | Culture and Heritage, Political | 0 |
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Prophet Muhammad: A Life of Leadership and Teaching
by Azeem Ahmed | Oct 6, 2024 | Biography | 0 |
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Latestअलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में सामाजिक न्याय की खोज
by Abdullah Mansoor | Nov 22, 2024 | Political, Social Justice and Activism | 0 |
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट का 8 नवंबर 2024 का फैसला एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। सात न्यायाधीशों की पीठ ने 4:3 के बहुमत से 1967 के एस. अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में दिए गए फैसले को पलट दिया। इस पुराने फैसले में कहा गया था कि AMU को अल्पसंख्यक संस्था नहीं माना जा सकता। नए फैसले में स्पष्ट किया गया कि किसी संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा उसकी स्थापना के आधार पर निर्धारित होता है। यदि किसी अल्पसंख्यक समुदाय ने संस्थान की स्थापना की है, तो वह संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे का दावा कर सकता है। इस निर्णय से AMU को अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त हुआ है, लेकिन यह मामला अब तीन न्यायाधीशों की नियमित पीठ को सौंपा गया है, जो इस नए फैसले में निर्धारित सिद्धांतों के आधार पर निर्णय करेगी।पसमांदा आंदोलन का आरोप है कि अल्पसंख्यक संस्थान जैसे AMU केवल अशरफ वर्ग के हितों की पूर्ति करते हैं और पसमांदा समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करते। यह लेख इस मुद्दे का विश्लेषण करेगा और देखेगा कि कैसे AMU अपने जन्म से ही मुस्लिम समाज में सामाजिक न्याय के खिलाफ खड़ा रहा है।
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पुस्तक समीक्षा: “सच्चाई के हक़ में पसमांदा पक्ष”
by Abdullah Mansoor | Nov 18, 2024 | Book Review | 0 |
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by Abdullah Mansoor | Nov 15, 2024 | Culture and Heritage, Political | 0 |
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अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में सामाजिक न्याय की खोज
by Abdullah Mansoor | Nov 22, 2024 | Political, Social Justice and Activism | 0 |
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट का 8 नवंबर 2024 का फैसला एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। सात न्यायाधीशों की पीठ ने 4:3 के बहुमत से 1967 के एस. अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में दिए गए फैसले को पलट दिया। इस पुराने फैसले में कहा गया था कि AMU को अल्पसंख्यक संस्था नहीं माना जा सकता। नए फैसले में स्पष्ट किया गया कि किसी संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा उसकी स्थापना के आधार पर निर्धारित होता है। यदि किसी अल्पसंख्यक समुदाय ने संस्थान की स्थापना की है, तो वह संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे का दावा कर सकता है। इस निर्णय से AMU को अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त हुआ है, लेकिन यह मामला अब तीन न्यायाधीशों की नियमित पीठ को सौंपा गया है, जो इस नए फैसले में निर्धारित सिद्धांतों के आधार पर निर्णय करेगी।पसमांदा आंदोलन का आरोप है कि अल्पसंख्यक संस्थान जैसे AMU केवल अशरफ वर्ग के हितों की पूर्ति करते हैं और पसमांदा समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करते। यह लेख इस मुद्दे का विश्लेषण करेगा और देखेगा कि कैसे AMU अपने जन्म से ही मुस्लिम समाज में सामाजिक न्याय के खिलाफ खड़ा रहा है।
Read Moreपुस्तक समीक्षा: “सच्चाई के हक़ में पसमांदा पक्ष”
by Abdullah Mansoor | Nov 18, 2024 | Book Review | 0 |
यह पुस्तक पसमांदा समाज के लिए न केवल एक प्रेरणा है, बल्कि उनके आंदोलन को एक नई दिशा देने में सक्षम है। इसे पढ़कर पसमांदा समाज में जागरूकता बढ़ेगी, और यह उन्हें अपने संघर्षों को दस्तावेजीकरण करने के लिए प्रोत्साहित करेगी। पुस्तक की स्पष्टता, तर्कसंगतता, और सामाजिक संदेश इसे पसमांदा आंदोलन के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन बनाते हैं। इसलिए, यह उम्मीद की जा सकती है कि पसमांदा समाज इस पुस्तक को व्यापक रूप से अपनाएगा और इसे अपने संघर्ष के दस्तावेजीकरण के रूप में देखेगा, जिससे आने वाले समय में और अधिक पसमांदा लेखन एवं विचारधारा विकसित हो सकेगी।
Read MoreBlasphemy Laws in Islam: Balancing Faith, Freedom, and Justice
by Abdullah Mansoor | Nov 15, 2024 | Culture and Heritage, Political | 0 |
Historically, the concept of blasphemy in Islam is linked to the consolidation of political power. Blasphemy, defined broadly as any action or speech that offends Islamic beliefs, was viewed as a serious offense because it was seen as a threat to the stability of the early Islamic empires. Instances of severe punishments were often tied to cases where political rebellion was involved, as in the Ridda Wars (Wars of Apostasy) following the Prophet Muhammad’s death. This association between blasphemy and rebellion is further supported by the writings of influential scholars like Ibn Taymiyya, who argued that insults against the Prophet Muhammad were destabilizing, warranting harsh penalties to preserve the unity of the Islamic state.
Read Moreज़ाकिर नाइक के औरतों के बारे में विचारों की एक नारीवादी तनकीद
by Abdullah Mansoor | Nov 10, 2024 | Gender Equality and Women's Rights | 0 |
नाइक के बयान एक तंग, मर्दवादी नज़रिए को दर्शाते हैं जो मुस्लिम औरतों के मुख्तलिफ तजुर्बों और जिन्सी इंसाफ के कुरआनी पैगाम को नज़रअंदाज़ करता है। खुली बहस और बातचीत को हौसला देकर, इस्लामी नारीवादी इस्लाम के बराबरी के जज़्बे को दोबारा हासिल करने और यह यकीनी बनाने की कोशिश करते हैं कि औरतों के हुकूक कुरआन के इंसाफ के उसूलों के मुताबिक बरकरार रहें।
Read MoreA Feminist Critique of Zakir Naik’s Views on Women Through an Islamic Lens
by Abdullah Mansoor | Oct 22, 2024 | Movie Review | 0 |
Naik’s visit was further marred by additional controversies, including his refusal to present awards to orphaned girls and his demand for VIP treatment regarding luggage allowance. The incident has led to debates about religious interpretation, women’s rights, and the appropriateness of hosting controversial figures as state guests in Pakistan.This controversy highlights the ongoing tensions between conservative religious views and more progressive attitudes towards women’s rights and social issues in the country. It also underscores the challenges faced by Muslim women, particularly in India, where they often struggle with issues like conservative societal norms, limited access to education, and economic disadvantages.This article provides a feminist critique of Zakir Naik’s controversial views on women from an Islamic perspective.The article concludes by calling for constructive dialogue within the Muslim community to challenge regressive interpretations and promote a more inclusive understanding of Islam that upholds women’s rights in accordance with Quranic principles
Read Moreआडूजीविथम: द गोट लाइफ
by Abdullah Mansoor | Oct 12, 2024 | Movie Review | 0 |
‘आडूजीविथम’ एक मलयालम फिल्म है, जिसका निर्देशन ब्लेस्सी ने किया है। यह फिल्म 2024 में रिलीज़ हुई और बेन्यामिन के उपन्यास पर आधारित है। मुख्य भूमिका में पृथ्वीराज सुकुमारन हैं, जो नजीब नामक एक गरीब भारतीय मजदूर का किरदार निभा रहे हैं। अन्य कलाकारों में अमाला पॉल और विनीत श्रीनिवासन भी शामिल हैं। फिल्म का निर्माण अरुण कुमार के केवी एंटरप्राइजेज के तहत हुआ है, और संगीत ए.आर. रहमान ने दिया है।
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