क्यों आवश्यक है वक़्फ़ बोर्ड में संशोधन ?...
Posted by Abdullah Mansoor | Sep 2, 2024 | Political, Social Justice and Activism | 0 |
सामाजिक न्याय में उप-वर्गीकरण की भूमिका और विवाद...
Posted by Abdullah Mansoor | Sep 2, 2024 | Social Justice and Activism | 0 |
बांग्लादेश में इस्लामिक कट्टरपंथ का प्रभाव और भारत...
Posted by Abdullah Mansoor | Aug 29, 2024 | Political | 0 |
उर्दू ज़ुबान में पसमांदा अदब क्यों नहीं है ?...
Posted by Abdullah Mansoor | Aug 15, 2024 | Education and Empowerment, Poetry and literature | 0 |
आधा गाँव: एक पसमांदा समीक्षा...
Posted by Abdullah Mansoor | Aug 11, 2024 | Book Review, Reviews | 0 |
All
Popularपुस्तक समीक्षा: इस्लाम का जन्म और विकास
by Arif Aziz | May 1, 2024 | Book Review | 0 |
मशहूर पाकिस्तानी इतिहासकार मुबारक अली लिखते हैं कि इस्लाम से पहले की तारीख़ दरअसल अरब क़बीलों का इतिहास माना जाता था। इस में हर क़बीले की तारीख़ और इस के रस्म-ओ-रिवाज का बयान किया जाता था। जो व्यक्ति तारीख़ को महफ़ूज़ रखने और फिर इसे बयान करने का काम करते थे उन्हें रावी या अख़बारी कहा जाता था। कुछ इतिहासकार इस्लाम और मुसलमान में फ़र्क़ करते हैं।
-
आडूजीविथम: द गोट लाइफ
by Azeem Ahmed | Oct 12, 2024 | Movie Review | 0 |
-
पैगंबर मोहम्मद का जीवन: मानवता के लिए एक मार्गदर्शक
by Azeem Ahmed | Oct 8, 2024 | Biography | 0 |
-
Prophet Muhammad: A Life of Leadership and Teaching
by Azeem Ahmed | Oct 6, 2024 | Biography | 0 |
All
Top Ratedफिल्म जो जो रैबिट: नाज़ी प्रोपेगेंडा की ताकत और बाल मनोविज्ञान
by Abdullah Mansoor | Jul 17, 2024 | Movie Review, Reviews | 0 |
जोजो रैबिट (Roman Griffin Davis) 10 साल का एक लड़का है। यह तानाशाह के शासनकाल (Totalitarian regime) में पैदा हुआ है। इसलिए जोजो के लिए स्वतंत्रता, समानता, अधिकार जैसे शब्द कोई मायने नहीं रखते क्योंकि उसने कभी इन शब्दों का अनुभव ही नहीं किया है। जोजो सरकार द्वारा स्थापित हर झूठ को सत्य मानता है। सरकार न सिर्फ डंडे के ज़ोर से अपनी बात मनवाती है बल्कि वह व्यक्तियों के विचारों के परिवर्तन से भी अपने आदेशों का पालन करना सिखाती है। आदेशों को मानने का प्रशिक्षण स्कूलों से दिया जाता है। स्कूल किसी भी विचारधारा को फैलाने के सबसे बड़े माध्यम हैं। हिटलर ने स्कूल के पाठ्यक्रम को अपनी विचारधारा के अनुरूप बदलवा दिया था। वह बच्चों के सैन्य प्रशिक्षण के पक्ष में था, इसके लिए वह बच्चों और युवाओं का कैंप लगवाता था। जर्मन सेना की किसी भी कार्रवाई पर सवाल करना देशद्रोह था। सेना का महिमामंडन किया जाता था ताकि जर्मन सेना द्वारा किए जा रहे अत्याचार किसी को दिखाई न दे। बच्चों के अंदर अंधराष्ट्रवाद को फैलाया जाता था। इसी तरह जोजो भी खुद को हिटलर का सबसे वफादार सिपाही बनाना चाहता है
-
वक़्फ़-बोर्ड का काला सच
by Abdullah Mansoor | Sep 19, 2024 | Culture and Heritage, Political | 0 |
-
Prophet Muhammad: A Life of Leadership and Teaching
by Azeem Ahmed | Oct 6, 2024 | Biography | 0 |
-
All
Latestआडूजीविथम: द गोट लाइफ
by Azeem Ahmed | Oct 12, 2024 | Movie Review | 0 |
~डॉ कहकशां ‘आडूजीविथम’ एक मलयालम फिल्म है, जिसका निर्देशन ब्लेस्सी ने किया है। यह...
-
पैगंबर मोहम्मद का जीवन: मानवता के लिए एक मार्गदर्शक
by Azeem Ahmed | Oct 8, 2024 | Biography | 0 |
-
Prophet Muhammad: A Life of Leadership and Teaching
by Azeem Ahmed | Oct 6, 2024 | Biography | 0 |
-
वक़्फ़-बोर्ड का काला सच
by Abdullah Mansoor | Sep 19, 2024 | Culture and Heritage, Political | 0 |
आडूजीविथम: द गोट लाइफ
by Azeem Ahmed | Oct 12, 2024 | Movie Review | 0 |
~डॉ कहकशां ‘आडूजीविथम’ एक मलयालम फिल्म है, जिसका निर्देशन ब्लेस्सी ने किया है। यह...
Read Moreपैगंबर मोहम्मद का जीवन: मानवता के लिए एक मार्गदर्शक
by Azeem Ahmed | Oct 8, 2024 | Biography | 0 |
~ अब्दुल्लाह मंसूर आज पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के नाम पर जिस तरह के हिंसक कृत्य...
Read MoreProphet Muhammad: A Life of Leadership and Teaching
by Azeem Ahmed | Oct 6, 2024 | Biography | 0 |
~ Dr. Uzma KhatoonDepartment of Islamic Study, A.M.U Before the birth of Prophet Muhammad, the...
Read Moreवक़्फ़-बोर्ड का काला सच
by Abdullah Mansoor | Sep 19, 2024 | Culture and Heritage, Political | 0 |
वक्फ बोर्ड भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है, जिसका अंदाजा इसके कुछ भयावह भूमि घोटालों से लगाया जा सकता है, जैसे कि महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड, जिसने मुकेश अंबानी को मुंबई में स्थित उनके 27 माला अपार्टमेंट ‘इंटालिया’ के लिए 4,535 वर्ग मीटर मुफ्त में प्रदान किया था जो मुम्बई के व्यस्त बाज़ार ‘अल्टा माउंट रोड’ पर स्थित है। इसी तरह बेंगलुरु में 600 करोड़ रुपये से ज्यादा मूल्य का ‘विंडसर होटल’ 12,000 रुपये प्रति माह पर लीज पर दिया गया है। अब अंदाजा लगाया जा सकता है कि 600 करोड़ रुपये से ज्यादा की जमीन महज 12000 रुपये प्रति माह में लीज पर दे दी गई। 12000 तो सिर्फ कागजी कार्रवाई में है। जबकि वक्फ बोर्ड के सदस्यों को इसका कई गुना मासिक काला धन या रिश्वत के रूप में मिलता होगा और ये सभी भ्रष्टाचार अल्लाह के नाम पर किए जाते हैं।
Read Moreवक़्फ़ संशोधन बिल और हमारी ज़िम्मेदारी
by Abdullah Mansoor | Sep 9, 2024 | Culture and Heritage, Political | 0 |
वक़्फ़ की ज़मीन पर जो इक्का-दुक्का निर्माण कार्य किए भी गए हैं तो वह या तो मदरसे हैं या फिर मस्जिद, और वह भी सिर्फ़ पसमांदा (ओबीसी) मुसलमानों को भ्रमित करने के लिए। वास्तव में, यह आम मुसलमानों को भावनात्मक रूप से बेवकूफ़ बनाए रखने की पुरानी अशराफ़िया चाल के अलावा और कुछ नहीं है ताकि पसमांदा मुसलमान शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, समान प्रतिनिधित्व और असमानता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर उन से सवाल न कर सकें क्यों कि मुसलमानों के नाम पर जितने भी संगठन बने हैं, चाहे वह वक़्फ़ बोर्ड हो, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड हो, जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद हो या कोई अन्य संगठन हो, उन पर विदेशी मूल के अशराफ़ मुसलमानों का ही नियंत्रण है। यहां तक कि देश के 21 विश्वविद्यालयों के विभिन्न पदों पर 90% से अधिक इन्ही अशराफ़ मुसलमानों का ही क़ब्ज़ा है।
विदेशी मूल के यह अशराफ़ लोग पसमांदा मुसलमानों को फिर से मूर्ख बनाने के लिए वक़्फ़ की ज़मीन को अल्लाह की ज़मीन बतला रहे हैं ताकि वह अल्लाह के नाम पर अपनी दुकान चलाते रहें और आप सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक इन का बचाव करते रहें। भले ही आप उन अशराफ़ के इस दावे को मान भी लें कि वक़्फ़ की ज़मीन अल्लाह की ज़मीन है तो इस संदर्भ में यह भी देखें कि कुरान कहता है कि पूरी धरती ही अल्लाह ने बनाई है। इस नज़रिए के अनुसार, अशराफ़ वर्ग को पूरी पृथ्वी पर हीअपना दावा कर देना चाहिए, लेकिन नहीं…उन को दूसरों से संबंध भी तो निभाने हैं ताकि दोनों हाथों में लड्डू रहे।
Read Moreराष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका: चुनौतियाँ और समाधान
by Abdullah Mansoor | Sep 7, 2024 | Education and Empowerment | 0 |
भारत में प्राथमिक शिक्षा की सार्वभौमिक पहुंच के बावजूद, शैक्षणिक गुणवत्ता और बच्चों की सीखने की क्षमता में कई चुनौतियाँ बनी हुई हैं। मुख्य समस्या यह है कि बच्चे अपेक्षित स्तर की शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाते हैं। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, भारतीय स्कूलों की कठोर संरचना बच्चों के पिछड़ने का कारण बनती है। शिक्षकों से अपेक्षा की जाती है कि वे प्रत्येक कक्षा के पाठ्यक्रम और पाठ्यपुस्तकों का कड़ाई से पालन करें। इस कठोर संरचना के कारण, शिक्षक उन बच्चों पर पर्याप्त समय नहीं दे पाते जो कक्षा के स्तर से पीछे हैं। हाल तक, प्रारंभिक कक्षाओं में छात्रों के मूल्यांकन की कोई व्यवस्थित प्रणाली नहीं थी जो पिछड़े हुए बच्चों की पहचान कर सके। स्कूल प्रणाली (सरकारी या निजी) में पिछड़े हुए बच्चों की मदद के लिए कोई संगठित या व्यवस्थित उपचारात्मक प्रयास नहीं किए जाते। यदि कोई बच्चा शुरुआती वर्षों में बुनियादी कौशल नहीं सीखता है, तो बाद के स्कूली वर्षों में उनके इन कौशलों को प्राप्त करने की संभावना कम होती है। इस कठोर संरचना के परिणामस्वरूप, कई बच्चे पाठ्यक्रम के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते और धीरे-धीरे पीछे रह जाते हैं। यह स्थिति विशेष रूप से उन बच्चों के लिए चुनौतीपूर्ण है जिनके माता-पिता कम शिक्षित हैं और घर पर पर्याप्त शैक्षणिक सहायता प्रदान नहीं कर सकते।
Read More