हम आज जिस किताब 'मक़ामात' की समीक्षा पढ़ रहे हैं वह दरअसल विभिन्न विषयों और रिवायतों पर कई बरसों में ग़ामदी साहब द्वारा लिखे गए लेख का संकलन है जो इन विषयों पर उन के दृष्टिकोण को दर्शाते हैं। इस किताब में बहुत से ऐसे विषय हैं जो आज भी मुस्लिम समाज में विवाद का कारण बने हुए हैं, जैसे-तलाक़, सूद, बीमा, जिहाद, इस्लामिक रियासत, ख़लीफ़ा, पर्दा, दाढ़ी, मदरसों की तालीम , बाल विवाह, औरतों …
Category: Book Review

One tragic consequence of efforts to seek to wrongly legitimise the philosophy of caste division in Islam has been that when vast numbers of people who were oppressed by the Indian caste system embraced Islam, attracted by its teachings of equality and human unity, they had to face the same sort of filth and oppression here, too. After converting to Islam, they found that they still remained Bhangis, Chamars, Kunjaras, Qasais and Julahas, and were …

सभी के अन्दर एक बेचैनी थी. किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था. अगले कुछ दिनों में जामिया के कुछ बच्चों की गिरफ़्तारी भी शुरू हो गई. पकड़े गए आरोपियों को मीडिया के सामने पेश किया गया. पर उनके चेहरे को काले कपड़े की जगह (जैसा आमतौर से होता है) लाल रंग के अरबी रुमाल से ढ़का गया था. जिससे आसानी से आरोपियों के धर्म का पता लगाया जा सके. …
डॉक्टर अयूब राईन, ‘भारत के दलित मुसलमान’, खंड-1 में लिखते हैं कि "जब भी दलित मुसलमान अपनी माँग उठाता है तो अशराफ वर्ग चालाकी से दलित मुसलमानों की मांगों के बीच रुकावट डालने लगता है. इतना ही नहीं बल्कि दलित मुसलमान नेताओं का उपहास भी उड़ाते हैं ताकि वह अपना रास्ता बदलने पर मजबूर हो जाएँ और अशराफ़ समूह के लिए रास्ता बिलकुल साफ़ रहे.... …
विभूति नारायण राय इसी सवाल का जवाब अपनी किताब 'साम्प्रदायिक दंगे और भारतीय पुलिस' में खोजते हैं. वह हाशिमपुरा नरसंहार से इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश करते हैं. हाशिमपुरा मेरठ शहर के मध्य में बसा एक मुस्लिम बहुल इलाक़ा है, जिसमें काफी संख्या में करघों पर काम करने वाले बुनकर रहते हैं. इन बुनकरों (अंसारी/जुलाहों) में भी एक अच्छी संख्या रोज़गार की तलाश में आये बिहारी बुनकरों की है. तलाशी के दौरान मुसलामानों …
‘कुठाँव’ की मूल कहानी पर आने से पहले आप ये समझ लें कि ‘कुठाँव’ जिस्म के उस हिस्से को कहते हैं जहाँ चोट लगने से सबसे ज़्यादा तकलीफ होती है. ऐसी तकलीफ हमारे मुस्लिम समाज को तब होती है जब आप 'मुस्लिम समाज’ में मौजूद जाति व्यवस्था पर बात करते हैं. ‘कुठाँव’ न सिर्फ ये बताती है कि मुस्लिम समाज भी हिन्दू समाज की तरह सैकड़ों जातियों में बंटा हुआ है बल्कि ये भी बताती …
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