Category: Miscellaneous

मानसिक स्वास्थ्य: क्या, क्यों, कैसे

जरा सोचें कि हमारा दलित बहुजन पसमांदा समाज बिना किसी सामाजिक आर्थिक पूंजी के किस तरह मानसिक दबाव को झेल रहा होता है। शोषक वर्ग कभी भी शोषित समाज के लिए करुणा का भाव नहीं रखता। इसलिए हमारी लड़ाई दो अलग-अलग मोर्चों पर जारी है। एक तो हम समाज में अपनी पहचान की लड़ाई लड़ रहे हैं और दूसरी तरफ हम खुद के प्रति शोषण, अपमान, निरादर से हुए मानसिक आघात से लड़ रहे हैं। भारत के परिप्रेक्ष्य में, जहां जातिगत भेदभाव से जुड़ी मनोधारणा पूरे समाज में ज़हर की तरह फैली हुई है, यह और भी ज्यादा जरूरी है कि दलित बहुजन पसमांदा अपने मानसिक स्वास्थ्य के प्रति पहले से सजग रहे। इस मानसिक संघर्ष में हम अकेले न पड़ें, इसलिए हमें आपस में आंदोलन के साथ-साथ इस विषय पर भी बात करने की जरूरत है।

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पसमांदा आंदोलन का संक्षिप्त इतिहास

बहुत सालों बाद बाबा कबीर की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए  मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी (1890-1953) ने बाजाब्ता सांगठनिक रूप में एकअंतरराष्ट्रीय संगठन (जमीयतुल मोमिनीन/ मोमिन कांफ्रेंस) की स्थापना किया जो भारत के अलावा नेपाल, श्रीलंका और वर्मा तक फैला हुआ था।

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