Category: Culture and Heritage
इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद: फिलिस्तीन के खिलाफ नरसंहार का आरोप
by Abdullah Mansoor | Jun 30, 2024 | Culture and Heritage, Political | 0 |
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के अध्यक्ष जोन ई. डोनॉग्यू ने कहा, “अदालत इस क्षेत्र में सामने आ रही मानवीय त्रासदी की सीमा से भली-भांति परिचित है और जीवन की निरंतर हानि और मानवीय पीड़ा के बारे में गहराई से चिंतित है।” दक्षिण अफ्रीका ने अदालत से कहा था कि वह इज़राइल से “गाजा में और उसके खिलाफ अपने सैन्य अभियानों को तुरंत निलंबित करने के लिए कहे।” हालांकि, अदालत ने दक्षिण अफ्रीका की याचिका को अस्वीकार कर दिया और युद्धविराम को लेकर कोई आदेश नहीं दिया। दक्षिण अफ्रीका ने ICJ से मांगा है कि ‘अनंतिम उपायों’ (provisional measures) का इस्तेमाल करके इज़राइल को गाज़ा पट्टी में अपराध से रोकने के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं। उनका तर्क है कि ‘जेनोसाइड कन्वेंशन’ के तहत फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए अनंतिम उपाय आवश्यक है।
यहां यह समझना महत्वपूर्ण है कि यहूदी विशेषकर इज़रायल राष्ट्र खुद को जनसंहार का विक्टिम बताते आया है, लेकिन अब उस पर जनसंहार करने का आरोप लगा है। भले ही इज़रायल अमेरिकी और अन्य यूरोपीय दोस्तों द्वारा बचा लिया जाए, फिर भी यह उसकी विक्टिमहुड की छवि को पूरी तरह बदल देगा।
Read Moreउर्दू ज़ुबान का पसमांदा अदब कहाँ है?
by Abdullah Mansoor | Jun 23, 2024 | Culture and Heritage, Poetry and literature | 0 |
अशराफ वर्ग पसमांदा समाज को अहल-ए-जबान में शामिल नहीं करते थे। इसका असर भी उर्दू अदब में नजर आता है। 85 प्रतिशत पसमांदा समाज को, उनकी समस्याओं को और उनकी संस्कृति को सिरे से खारिज कर दिया गया है।
उर्दू अदब में प्रगतिशील आंदोलन का भी एक दौर चला है, पर उनकी सारी प्रगतिशीलता अपनी जाति पर आकर खत्म हो गई। इन्होंने खुदा की जात को तो आड़े हाथों लिया, पर अपनी जात पर कुछ नहीं लिखा। यह बताना आवश्यक नहीं है कि प्रगतिशील आंदोलन के शुरुआती दौर में लिखने वाले सभी लोग उच्च जाति के थे।चूंकि उर्दू पर अशराफ लोगों का वर्चस्व है और इन्हीं के पास तमाम संसाधन हैं। इसीलिए यही तय करते हैं कि गजल के मौजू (मुद्दे) क्या हों! अगर पसमांदा शायर और लेखक कुछ लिखते हैं, तो उसे अदब के स्तर का ना मानकर खारिज कर दिया जाता है।यही वजह है कि पसमांदा शायर अपने लूम, साड़ी, कपड़े, बानी, खेती-किसानी, अपने मवेशी, कपड़े और अपने समाज की परेशानी वगैरह पर शेर न लिखकर अशराफों की तरह औरतों की कमर और उनकी जुल्फों पर शायरी करते नजर आ जाते हैं।
Read Moreपसमांदा आंदोलन का संक्षिप्त इतिहास
by Arif Aziz | May 10, 2024 | Culture and Heritage, Miscellaneous, Movie Review, Pasmanda Caste, Social Justice and Activism | 0 |
बहुत सालों बाद बाबा कबीर की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी (1890-1953) ने बाजाब्ता सांगठनिक रूप में एकअंतरराष्ट्रीय संगठन (जमीयतुल मोमिनीन/ मोमिन कांफ्रेंस) की स्थापना किया जो भारत के अलावा नेपाल, श्रीलंका और वर्मा तक फैला हुआ था।
Read Moreशहर छोड़ने वाले मजदूरों को पीसने के लिए तैयार है गांव की जातिवादी चक्की
by pasmanda_admin | Apr 19, 2024 | Culture and Heritage, Social Justice and Activism | 0 |
किताब में गाँव को पढ़ने और जानने वालों के लिए गाँव एक ‘स्वर्ग’ है। यह ‘इंद्रलोक’ के सामान है। यह “सद्भाव” और “सहयोग” का संगम है। यह भारत की “आत्मा” है। यह “पश्चिमी सभ्यता” और “मैटेरियलिज़म” का सही विकल्प है। फिर गाँव को “शांति” और “सुख” का पर्यायवाची कहा गया। यह ग़लतफ़ह़मी दरअसल उपनिवेशवादी इतिहासकारों ने फ़ैलाया। लंदन में पढ़े और फिर धोती-धारण करने वाले एक ‘फक़ीर’ ने इसे क़ौमी तह़रीक में सच बताकर प्रचारित किया। इसका इस्तेमाल देशी बनाम विदेशी और राष्ट्रीयता बनाम साम्राज्यवाद की राजनीति के तहत किया गया।
Read Moreहर सवाल का सवाल ही जवाब हो
by Abdullah Mansoor | Apr 12, 2022 | Culture and Heritage, Education and Empowerment, Pasmanda Caste | 0 |
अशराफ अक्सर पसमांदा आंदोलन पर मुस्लिम समाज को बांटने का आरोप लगाकर पसमंदा आंदोलन को कमज़ोर करने की कोशिश करता है। जिसके भ्रम में अक्सर पसमांदा आ भी जाते हैं। जबकि पसमांदा आंदोलन वंचित समाज को मुख्यधारा में लाने की चेष्टा, सामाजिक न्याय का संघर्ष, हक़ अधिकार की प्राप्ती का प्रयत्न है। जिसका किसी भी धर्म से कोई सीधा टकराव नही है। इतिहास साक्षी है कि अशराफ, हमेशा से धर्म का इस्तेमाल अपनी सत्ता और वर्चस्व के लिए करता आ रहा है, और इसमें सफल भी रहा है। अतः उसके लिए यह आरोप लगाना बहुत आसान है। पसमांदा की तरक़्क़ी में सबसे बड़ी बाधा अशराफ ही बना हुआ है जो पसमांदा को धार्मिक और भावनात्मक बातो में उलझा कर उसको उसकी असल समस्यों, रोज़ी रोटी, समाजी बराबरी और सत्ता में हिस्सेदारी से दूर रखते हुए स्वयं को सत्ता के निकट रखना सुनिश्चित किये हुए है। इसलिए पसमांदा को इस धोखे से बाहर निकल कर सामाजिक न्याय की इस लड़ाई में अशराफ के विरुद्ध कमर कसकर खड़ा होना होगा।
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