مولانا علي حسن عاصم بهاري ، انڊيا جي بهار صوبي جي ضلعي نالنده جي هڪ ننڍڙي شهر خاص گنج محله بهار شريف ۾ 15 اپريل 1890ع تي پيدا ٿيو. هن جو تعلق هڪ غريب پسمانده ۽ ديندار گهراڻي سان هو. 1906ع ڌاري هن 16 سالن جي ڄمار ۾ پنهنجو ڪيريئر شروع ڪيو. ڪلڪتي (هاڻوڪي ڪولڪتا) جي اوشا ڪمپني ۾ هن ملازمت اختيار ڪئي. مزدوري سان گڏ هن مطالعي ۽ سماجي و سياسي تحريڪن ۾ سرگرميون …
Category: Biography
ਆਜ਼ਾਦੀ ਘੁਲਾਟੀਏ ਅਤੇ ਪਹਿਲੇ ਪਸਮਾਂਦਾ ਅੰਦੋਲਨ ਦੇ ਜਨਕ, ਮੌਲਾਨਾ ਅਲੀ ਹੁਸੈਨ ” ਆਸਿਮ ਬਿਹਾਰੀ” ਜਨਮ 15 ਅਪ੍ਰੈਲ 1890- ਮੌਤ 6 ਦਿਸੰਬਰ 1953. ਮੌਲਾਨਾ ਅਲੀ ਹੁਸੈਨ “ਆਸਿਮ ਬਿਹਾਰੀ” ਦਾ ਜਨਮ 15 ਅਪ੍ਰੈਲ 1890 ਨੂੰ ਮੁਹੱਲਾ ਖਾਸ ਗੰਜ, ਬਿਹਾਰ ਸ਼ਰੀਫ, ਜ਼ਿਲ੍ਹਾ ਨਾਲੰਦਾ, ਬਿਹਾਰ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਦੀਨਦਾਰ (ਧਾਰਮਿਕ) ਗਰੀਬ ਪਸਮਾਂਦਾ ਬੁਨਕਰ ਪਰਿਵਾਰ ਵਿੱਚ ਹੋਇਆ ਸੀ. 1906 ਵਿੱਚ 16 ਸਾਲ ਦੀ ਉਮਰ ਵਿੱਚ ਊਸ਼ਾ ਕੰਪਨੀ ਵਿੱਚ ਨੌਕਰੀ ਕਰਨੀ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰ ਦਿੱਤੀ. ਨੌਕਰੀ ਦੇ ਨਾਲ਼ ਨਾਲ਼ ਅਧਿਐਨ (ਪੜ੍ਹਾਈ ਲਿਖਾਈ) ਵੀ …
مولانا علی حسین عاصم بہاری محلہ خاص گنج، بہار شریف، ضلع نالندہ ، بہار، میں ایک غریب دیندار پسماندہ گھرانہ میں پیدا ہوئے تھے۔ سال ۱۹۰٦ ء میں ١٦ سال کی عمر میں، کولکتہ کے اوشا کمپنی میں اپنا کیریئر شروع کیا۔ کام کے ساتھ مطالعہ بھی جاری رہا۔ متعدد تحریکوں میں سرگرم رہے۔ پابندی اور بچارگی والی نوکری چھوڑ دیا ،گزر بسر کے لئے بیڑی بنانے کا کام شروع کیا۔ اپنے بیڑی کارکن دوستوں …

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में ज़ात-पात का अत्यधिक ज़ोर एवं चलन है, इस की रोकथाम के लिए आरम्भ से ले कर अब तक कोई क़दम नहीं उठाया गया है जब कि इस की तुलना में जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी, जो कम्युनिज्म (दहरियत) का गढ़ है, में ज़ात-पात के विरुद्ध SC/ST सेल है. यदि कोई किसी को कम ज़ात या उस की जाति के नाम को घटिया तरीक़े के साथ पुकारे तो शोषित व्यक्ति उस सेल में जा …

सर सैयद को लेकर कई झूठ गढ़े गए हैं। जैसे- सर सैयद की वजह से मुसलामनों में आधुनिक शिक्षा आई। सब से पहले उन्होंने अंग्रेजी भाषा पढ़ाने की बात की। अंग्रेज़ी पढ़ाने की वजह उन पर कुफ़्र का फ़तवा आया। यह सच है कि हम को आज तक यही पढ़ाया गया है कि सर सैयद ने मुसलामनों के अंदर आधुनिक शिक्षा का प्रसार किया जिस की वजह से मुसलमान सरकारी नौकरी में आ सके पर …

इस लेख को लिखने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि सर सैयद अहमद ख़ाँ साहब को लेकर भारतीय समाज विशेषकर मुस्लिम समाज में बड़ी ही गलत मान्यता स्थापित है. उन्हें मुस्लिम क़ौम का हमदर्द और न जाने किन-किन अलकाबो से नवाजा गया है जबकि जहाँ तक मैंने जाना है हकीकत इससे बिल्कुल उलट दिखी. सर सैयद को जितना मैंने पढ़ा है उस बुनियाद पर अगर उनकी शख्सियत के लिए कोई एक लफ्ज़ मैं इस्तेमाल करूंगा तो …

समकालीन जनमत के नवंबर 2017 अंक में छपा लेख “सर सैयद और धर्म निरपेक्षता” पढ़ा, पढ़ कर बहुत हैरानी हुई कि जनमत जैसे कम्युनिस्ट विचारधारा की पत्रिका में सर सैयद जैसे सामंतवादी व्यक्ति का महिमा मंडन एक राष्ट्रवादी, देशभक्त, लोकतंत्र की आवाज़, हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक, इंसानियत के सच्चे अलंबरदार के रूप में किया गया है, जो बिल्कुल बेबुनियाद और झूठ पर आधारित है। मज़े की बात ये है कि यह सब बातें उनकी …

सर सैयद के समय शिक्षा को शासन, प्रशासन और सरकारी नौकरी में जाने का साधन समझा जाता था, और उस समय की औरतों में विरले ही इस तरह की नौकरियों के लिए अभिरुचि थी। इसलिए ऐसा माना जाता है कि ऐसी स्तिथि में पुरुष शिक्षा को वरीयता दिये जाने को सर सैयद द्वारा उचित समझना हितकर था, आज उनके द्वारा स्थापित किया गया, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से ना जाने कितने लोग शिक्षा हासिल कर अपनी …

In the midst of India China border dispute a new Pasmanda figure has emerged out in a central position, the spotlighted Galwan valley is named after him. The story is as, once an explorer was entrapped in the Leh region and there seemed to be no way out, in this situation the fourteen year old boy helped the explorer out through a river. The explorer was amazed and influenced by the sense of bravery shown …

In these constant struggles and travels, he had to face many troubles as well as financial difficulties. Many of the times had to deal with hunger issues too. At the same time, his daughter Baarka was born in the house, but the whole family was drowning in debt and hunger for long. …

आजकल यह एक नया फित्ना (गुमराही, फसाद, बग़ावत) शुरू हुआ है कि शर्फ़ नसब (जातीय बड़प्पन) को ही अस्वीकार करने लगे, कहते हैं यह कोई चीज़ नही लेकिन इसके ख्वास (विशेष/विशेषताएँ) और आसार (प्रभावों) अक्सर कुल्ली (पूरी तरह) नही तो अक्सरी (अधिकतर) तो ज़रूर है और अनुभव में है। और एक बात अजीब है कि यह लोग एक तरफ तो कहते हैं कि हसब नसब कोई चीज़ नही, दूसरी तरफ अपने लिए इसकी कोशिश है, …

मौलना, शादी-विवाह के मामले में इस्लाम की अशराफ व्याख्या करते हुए जातीय बन्धन को इस्लाम बता रहे हैं,(इस्लाम की पसमांदा व्याख्या के अनुसार इस्लाम में शादी के लिए कोई जातीय बन्धन नही है) यहाँ यह बात भी स्पष्ट समझ में आती है कि अशराफ जातियों के ऊँच-नीच को मान्यता तो देते है लेकिन शादी विवाह को वर्जित नही माना है। वहीं पसमांदा जातियों में सीढीं-दार जातिवाद की मान्यता दिया है। स्पष्ट हो रहा है कि …

मौलाना अशरफ अली थानवी हनफ़ी फ़िक़्ह के देवबंदी शाखा के सबसे बड़े उलेमा में से एक हैं। मौलाना न सिर्फ भारत में बल्कि पूरे इस्लामी-दुनिया में अपने इस्लामी-ज्ञान के विद्वाता के कारण एक विशिष्ट स्थान रखते हैं लेकिन उनका धुर साम्प्रदायिक, द्विराष्ट्र-सिद्धान्त का समर्थक, गाँधी विरोध, भाईचारा एवं समानता विरोध, पसमांदा विरोध आदि विचारो से स्पष्ट होता है कि वो अशराफ चरित्र के वाहक थे। …
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