आज जब हम कंसंट्रेशन कैंप, अलग से पहचान पत्र ,आर्थिक बहिष्कार,नागरिकता संशोधन, भीड़ द्वारा हत्या, नस्लीय शुद्धता,अंधराष्ट्रवाद, युद्ध का महिमामंडन आदि शब्द सुनते हैं तो हमें अपने आसपास हिटलर नज़र आने लगता हैं। हिटलर होने का अर्थ क्या है ? नफरत किसी समुदाय , किसी देश के साथ आप के साथ क्या कर सकती है ? इस बात को समझने के लिए हमें बार-बार होलोकास्ट (यहूदियों का जनसंहार) का और हिटलर के उदय का अध्ययन …
Category: Movie Review

जोजो रैबिट फ़िल्म के साथ एक बहस भी चल रही है कि क्या त्रासदी पर कॉमेडी बनाई जा सकती है। मेरा जवाब है आपको किसी भी रचना को इस तरह देखना होगा कि उसका End result क्या है! क्या जोजो रैबिट हम को सिर्फ़ हंसाती है या वह हंसाते हुए हम को विषय की गम्भीरता से परिचित भी करवाती है! फ़िल्म हमें 10 साल के बच्चे के ज़रिए हमें नाज़ी विचारधारा को समझने और समझाने …

'होटल रवांडा' फ़िल्म इसी रेडियों की आवाज़ से शुरू होती है। रेडियों हुतू समुदाय की भावनाओं को भड़काने के लिए झूठा प्रोपोगेंडा चलाते हैं। उनसे कहा जाता है कि तुत्सी राजतन्त्र कायम करने की कोशिश कर रहे हैं जिसमें हुतू लोगों को गुलाम बनाकर रखा जाएगा। इन रेडियों स्टेशनों ने हुतू और तुत्सी समुदाय के बीच किसी भी बातचीत या शांति समझौते का खुलकर विरोध किया, शांति के प्रयासों के खिलाफ अभियान चलाया, हुतू मिलिशिया …

जब सरकार चुनाव सिर्फ इसलिए कराए ताकि ये दिखा सके कि किसी क्षेत्र विशेष पर अब उसका अधिकार है तब ऐसे में मन में एक सवाल उभरता है कि लोकतंत्र क्या है फिर ? क्या चुनाव , मंत्री , विधायिका , संसद ही लोकतंत्र है या स्वतंत्रता , समानता , न्याय , गरिमा , विरोध/असहमति का अधिकार जैसे आदर्श लोकतंत्र है . इसी बात की पड़ताल करती हुई फिल्म है “न्यूटन” जो इस बात को …
पी.के. फिल्म धर्मान्धता और अन्धविश्वास पर कड़ा प्रहार करती दिखाई देती है. आलोचनात्मक सोच अपने उफान पर होने का बोध कराती है. प्रतीत होता है कि ज़्यादातर समाज को ये ‘हिट’ फिल्म खूब सुहाई, खास तौर पर पढलिख गया ऊंची जाति का तबका इसे एक ‘सुधारवादी’ फिल्म के तौर पर देखता है. …

‘मसान’ (श्मशान घाट) जितनी आपको दिखती है उसकी गहराई उससे ज़्यादा है। फ़िल्म में निर्देशक नीरज घेवन इशारों-इशारों में बहुत कुछ कह जाते हैं। फिल्म में कई कहानियां एक साथ चल रही होती हैं। …
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