शहर छोड़ने वाले मजदूरों को पीसने के लिए तैयार है गांव की जातिवादी चक्की
किताब में गाँव को पढ़ने और जानने वालों के लिए गाँव एक ‘स्वर्ग’ है। यह ‘इंद्रलोक’ के सामान है। यह “सद्भाव” और “सहयोग” का संगम है। यह भारत की “आत्मा” है। यह “पश्चिमी सभ्यता” और “मैटेरियलिज़म” का सही विकल्प है। फिर गाँव को “शांति” और “सुख” का पर्यायवाची कहा गया। यह ग़लतफ़ह़मी दरअसल उपनिवेशवादी इतिहासकारों ने फ़ैलाया। लंदन में पढ़े और फिर धोती-धारण करने वाले एक ‘फक़ीर’ ने इसे क़ौमी तह़रीक में सच बताकर प्रचारित किया। इसका इस्तेमाल देशी बनाम विदेशी और राष्ट्रीयता बनाम साम्राज्यवाद की राजनीति के तहत किया गया।
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