Tag: democracy
सामाजिक न्याय में उप-वर्गीकरण की भूमिका और विवाद...
Posted by Abdullah Mansoor | Sep 2, 2024 | Social Justice and Activism | 0 |
लोकसभा चुनाव 2024 का सबसे चर्चित मुद्दा मुस्लिम आर...
Posted by Arif Aziz | Jun 10, 2024 | Pasmanda Caste, Political, Social Justice and Activism | 0 |
पसमांदा विमर्श के मायने...
Posted by Arif Aziz | Jun 6, 2024 | Pasmanda Caste | 0 |
डॉक्टर अंबेडकर नहीं बल्कि कुछ बहुजन बुद्धिजीवी दलि...
Posted by Arif Aziz | May 16, 2024 | Movie Review, Pasmanda Caste, Social Justice and Activism | 0 |
न्यूटन:- लोकतंत्र की ग्रैविटी बताती फिल्म...
Posted by Abdullah Mansoor | May 13, 2024 | Movie Review, Reviews | 0 |
पैगंबर मोहम्मद का जीवन: मानवता के लिए एक मार्गदर्शक
by Abdullah Mansoor | Oct 8, 2024 | Biography | 0 |
इस्लाम का उदय 7वीं शताब्दी में हुआ, जब अरब प्रायद्वीप सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक रूप से अत्यंत दयनीय स्थिति में था। अरब समाज में कबीलाई संघर्ष, बहुदेववाद और नैतिक पतन व्याप्त थे। महिलाओं की स्थिति अत्यंत निम्न थी, और कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाएँ आम थीं। इसी दौर में पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का आगमन हुआ, जिन्होंने समाज में सुधार की नई लहर शुरू की। कुरान कहता है उन्होंने 40 वर्ष की आयु में इस्लाम का संदेश दिया और एकेश्वरवाद, न्याय और समानता के सिद्धांतों का प्रचार किया। उन्होंने मक्का की पृष्ठभूमि में, जहाँ बहुदेववाद और सामाजिक अन्याय ने जड़ें जमा रखी थीं, इस्लाम के रूप में एक नई धार्मिक और सामाजिक व्यवस्था की नींव रखी। उनका उद्देश्य न केवल धार्मिक सुधार था, बल्कि सामाजिक और नैतिक सुधार भी था, जो मानवता के समग्र उत्थान की दिशा में था।
Read Moreसामाजिक न्याय में उप-वर्गीकरण की भूमिका और विवाद
by Abdullah Mansoor | Sep 2, 2024 | Social Justice and Activism | 0 |
21 अगस्त के भारत बंद को उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र और राजस्थान के बुद्धिजीवियों, राजनितिक दलों और संगठनों का समर्थन मिला, जहां प्रमुख अनुसूचित जातियों का प्रभाव है। मायावती, चंद्रशेखर आजाद, चिराग पासवान, प्रकाश अंबेडकर, और रामदास अठावले जैसे नेताओं ने इस बंद का जोरदार समर्थन किया। इसके विपरीत, वाल्मीकि, मादिगा, अरुंथतियार, मान, मुसहर, हेला, बंसफोर, धानुक, डोम जैसी पिछड़ी अनुसूचित जातियां इस बंद से दूर रहीं, खासकर दक्षिण भारत (तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना) में, जहां उप-वर्गीकरण पर बहस अधिक उन्नत है। इन समूहों ने एकीकृत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति श्रेणी की अवधारणा को आंतरिक न्याय के बिना पर चुनौती दी है। वे जाति जनगणना की मांग और अन्य तर्कों को यथास्थिति बनाए रखने की रणनीति के रूप में देखते हैं।
Read MoreThe Relevance of the Pasmanda Cause in Today’s India
by Azeem Ahmed | Jun 27, 2024 | Social Justice and Activism | 0 |
~Adnan Qamar As is widely known, Varna and Jati served as the foundation for traditional Indian...
Read Moreलोकसभा चुनाव 2024 का सबसे चर्चित मुद्दा मुस्लिम आरक्षण: तथ्य और मिथ्य
by Arif Aziz | Jun 10, 2024 | Pasmanda Caste, Political, Social Justice and Activism | 0 |
लोकसभा 2024 के चुनाव ने इस बार बहुचर्चित मुद्दा मुस्लिम आरक्षण था। कोई सारे मुसलमानों को आरक्षण देने की बात कर रहा था तो कोई सारे मुसलमानों के आरक्षण को खत्म करने की बात कर रहा था। मुस्लिम आरक्षण सदैव से एक अबूझ पहेली रही है। समाज से लेकर न्यायालायों तक में इस पर बहसें होती रहीं हैं।
सबसे पहले यह तथ्य समझ लेना चाहिए कि EWS (आर्थिक रूप से कमज़ोर) आरक्षण लागू होने के बाद ऐसा कोई मुस्लिम तबका नहीं है जो आरक्षण की परिधि से बाहर हो अर्थात लगभग सारे मुसलमान पहले से ही आरक्षण का लाभ लें रहें हैं। विदित रहे कि मज़हबी पहचान के नाम पर आरक्षण संविधान के मूल भावना के विरुद्ध है कोई भी मज़हब पिछड़ा या दलित नहीं होता है बल्कि उसके मानने वालो में गरीब, पिछड़े और दलित हो सकते हैं जिन्हें ध्यान में रखते हुए आरक्षण की EWS, ओबीसी और एसटी कैटेगरी में अन्य धर्मों के मानने वालों के साथ-साथ सारे मुसलमानों को भी समाहित किया गया।
पसमांदा विमर्श के मायने
by Arif Aziz | Jun 6, 2024 | Pasmanda Caste | 0 |
यह मात्र हाजी नेसार अंसारी की कहानी नहीं है। मुस्लिम समाज के अंदर का पच्चासी फिसदी हिस्सा रखने वाला ‘पसमांदा’ तबकें की मुसलमानों की कहानी है। जो मुस्लिम समाज में संख्या बल हाने के बावजूद इस्तेमाल किया जाता है।
Read Moreडॉक्टर अंबेडकर नहीं बल्कि कुछ बहुजन बुद्धिजीवी दलित मुस्लिमों के आरक्षण के खिलाफ हैं
by Arif Aziz | May 16, 2024 | Movie Review, Pasmanda Caste, Social Justice and Activism | 0 |
यदि संविधान कहता है कि अगर संविधान के हिसाब से सिर्फ धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता, तो सिर्फ धर्म के आधार पर आरक्षण से बाहर भी नहीं किया जा सकता। लेकिन 1950 का राष्ट्रपति आदेश बिल्कुल यही करता है, जिसमें दलित मुसलमानों और दलित ईसाइयों को केवल उनके धर्म के कारण एससी श्रेणी से बाहर रखा गया है। यह उनके मूल अधिकारों, विशेष रूप से अनुच्छेद 14 (समानता), बल्कि अनुच्छेद 15 (कोई भेदभाव नहीं), 16 (नौकरियों में कोई भेदभाव नहीं), और 25 (विवेक की स्वतंत्रता) के भी खिलाफ है।
Read Moreन्यूटन:- लोकतंत्र की ग्रैविटी बताती फिल्म
by Abdullah Mansoor | May 13, 2024 | Movie Review, Reviews | 0 |
“न्यूटन” एक फिल्म है जो एक सरकारी अधिकारी की कहानी को बताती है, जो छत्तीसगढ़ के जंगल में एक दूरस्थ मतदान केंद्र में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने का संकल्प रखता है। फिल्म की शुरुआत एक राजनेता के शर्मनाक प्रचार से होती है, जो लोगों के कंधों से ऊपर उठकर एक वाहन पर खड़ा होता है। न्यूटन के घर में टेलीविजन स्क्रीन में माओवादियों द्वारा की गई इस हिंसा की घटना की खबर से गूंज रही है। फिल्म में न्यूटन के नाम के बारे में भी बात की जाती है, जो उनकी पहचान के संदर्भ में महत्वपूर्ण होता है। इस फिल्म में दलित और प्रजाति के मुद्दे को सामने लाया गया है, जो समाज के विभिन्न पहलुओं को प्रकट करता है।
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