Tag: Politics
पुस्तक समीक्षा: “सच्चाई के हक़ में पसमांदा प...
Posted by Abdullah Mansoor | Nov 18, 2024 | Book Review | 0 |
ज़ाकिर नाइक के औरतों के बारे में विचारों की एक नार...
Posted by Abdullah Mansoor | Nov 10, 2024 | Gender Equality and Women's Rights | 0 |
A Feminist Critique of Zakir Naik’s Views on...
Posted by Abdullah Mansoor | Oct 22, 2024 | Movie Review | 0 |
Islamic Feminism and Its Role in Gender Justice in...
Posted by Abdullah Mansoor | Oct 18, 2024 | Miscellaneous | 0 |
लोकसभा चुनाव 2024 का सबसे चर्चित मुद्दा मुस्लिम आर...
Posted by Arif Aziz | Jun 10, 2024 | Pasmanda Caste, Political, Social Justice and Activism | 0 |
बांग्लादेश में हिंदुओं की दुर्दशा:मोहम्मद यूनुस सरकार की निष्क्रियता का नतीजा
by Abdullah Mansoor | Dec 15, 2024 | Political | 0 |
कट्टरपंथी गुटों का प्रशासन और न्यायपालिका में बढ़ता प्रभाव चिंताजनक है। यूनुस सरकार के कार्यकाल में जमात-ए-इस्लामी के समर्थकों को प्रमुख पदों पर नियुक्त किया गया है। विश्वविद्यालयों में कट्टरपंथी विचारधारा का प्रसार तेज हो गया है। हिंदू समुदाय, जो पहले से ही असुरक्षित महसूस कर रहा था, अब और अधिक निशाने पर है। मंदिरों पर हमले, हिंदू महिलाओं का अपहरण और जबरन धर्मांतरण जैसी घटनाएं आम हो गई हैं। यूनुस सरकार ने इन घटनाओं को रोकने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए हैं। आलोचक यह भी मानते हैं कि सरकार की निष्क्रियता ने कट्टरपंथी ताकतों को बढ़ावा दिया है।
Read Moreपुस्तक समीक्षा: “सच्चाई के हक़ में पसमांदा पक्ष”
by Abdullah Mansoor | Nov 18, 2024 | Book Review | 0 |
यह पुस्तक पसमांदा समाज के लिए न केवल एक प्रेरणा है, बल्कि उनके आंदोलन को एक नई दिशा देने में सक्षम है। इसे पढ़कर पसमांदा समाज में जागरूकता बढ़ेगी, और यह उन्हें अपने संघर्षों को दस्तावेजीकरण करने के लिए प्रोत्साहित करेगी। पुस्तक की स्पष्टता, तर्कसंगतता, और सामाजिक संदेश इसे पसमांदा आंदोलन के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन बनाते हैं। इसलिए, यह उम्मीद की जा सकती है कि पसमांदा समाज इस पुस्तक को व्यापक रूप से अपनाएगा और इसे अपने संघर्ष के दस्तावेजीकरण के रूप में देखेगा, जिससे आने वाले समय में और अधिक पसमांदा लेखन एवं विचारधारा विकसित हो सकेगी।
Read Moreज़ाकिर नाइक के औरतों के बारे में विचारों की एक नारीवादी तनकीद
by Abdullah Mansoor | Nov 10, 2024 | Gender Equality and Women's Rights | 0 |
नाइक के बयान एक तंग, मर्दवादी नज़रिए को दर्शाते हैं जो मुस्लिम औरतों के मुख्तलिफ तजुर्बों और जिन्सी इंसाफ के कुरआनी पैगाम को नज़रअंदाज़ करता है। खुली बहस और बातचीत को हौसला देकर, इस्लामी नारीवादी इस्लाम के बराबरी के जज़्बे को दोबारा हासिल करने और यह यकीनी बनाने की कोशिश करते हैं कि औरतों के हुकूक कुरआन के इंसाफ के उसूलों के मुताबिक बरकरार रहें।
Read MoreA Feminist Critique of Zakir Naik’s Views on Women Through an Islamic Lens
by Abdullah Mansoor | Oct 22, 2024 | Movie Review | 0 |
Naik’s visit was further marred by additional controversies, including his refusal to present awards to orphaned girls and his demand for VIP treatment regarding luggage allowance. The incident has led to debates about religious interpretation, women’s rights, and the appropriateness of hosting controversial figures as state guests in Pakistan.This controversy highlights the ongoing tensions between conservative religious views and more progressive attitudes towards women’s rights and social issues in the country. It also underscores the challenges faced by Muslim women, particularly in India, where they often struggle with issues like conservative societal norms, limited access to education, and economic disadvantages.This article provides a feminist critique of Zakir Naik’s controversial views on women from an Islamic perspective.The article concludes by calling for constructive dialogue within the Muslim community to challenge regressive interpretations and promote a more inclusive understanding of Islam that upholds women’s rights in accordance with Quranic principles
Read MoreIslamic Feminism and Its Role in Gender Justice in India
by Abdullah Mansoor | Oct 18, 2024 | Miscellaneous | 0 |
Today, Islamic feminism builds on this legacy, engaging with both classical Islamic scholarship and modern feminist theory. Unlike secular feminists who sometimes view Islam as inherently patriarchal, Islamic feminists work within the religious tradition to question and reform oppressive interpretations. They argue that many misogynistic interpretations of Islamic law are not inherent to Islam but are byproducts of patriarchal readings of the Qur’an.
Read MoreProphet Muhammad: A Life of Leadership and Teaching
by Azeem Ahmed | Oct 6, 2024 | Biography | 0 |
~ Dr. Uzma KhatoonDepartment of Islamic Study, A.M.U Before the birth of Prophet Muhammad, the...
Read MoreBook Review : Basic Problems of OBC and Dalit Muslims by Ashfaq Husain Ansari
by Azeem Ahmed | Sep 14, 2024 | Book Review | 0 |
Book Review by Dr. Ausaf Ahmad Social stratification of Indian Muslims along caste lines, is by...
Read Moreवक़्फ़ संशोधन बिल और हमारी ज़िम्मेदारी
by Abdullah Mansoor | Sep 9, 2024 | Culture and Heritage, Political | 0 |
वक़्फ़ की ज़मीन पर जो इक्का-दुक्का निर्माण कार्य किए भी गए हैं तो वह या तो मदरसे हैं या फिर मस्जिद, और वह भी सिर्फ़ पसमांदा (ओबीसी) मुसलमानों को भ्रमित करने के लिए। वास्तव में, यह आम मुसलमानों को भावनात्मक रूप से बेवकूफ़ बनाए रखने की पुरानी अशराफ़िया चाल के अलावा और कुछ नहीं है ताकि पसमांदा मुसलमान शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, समान प्रतिनिधित्व और असमानता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर उन से सवाल न कर सकें क्यों कि मुसलमानों के नाम पर जितने भी संगठन बने हैं, चाहे वह वक़्फ़ बोर्ड हो, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड हो, जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद हो या कोई अन्य संगठन हो, उन पर विदेशी मूल के अशराफ़ मुसलमानों का ही नियंत्रण है। यहां तक कि देश के 21 विश्वविद्यालयों के विभिन्न पदों पर 90% से अधिक इन्ही अशराफ़ मुसलमानों का ही क़ब्ज़ा है।
विदेशी मूल के यह अशराफ़ लोग पसमांदा मुसलमानों को फिर से मूर्ख बनाने के लिए वक़्फ़ की ज़मीन को अल्लाह की ज़मीन बतला रहे हैं ताकि वह अल्लाह के नाम पर अपनी दुकान चलाते रहें और आप सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक इन का बचाव करते रहें। भले ही आप उन अशराफ़ के इस दावे को मान भी लें कि वक़्फ़ की ज़मीन अल्लाह की ज़मीन है तो इस संदर्भ में यह भी देखें कि कुरान कहता है कि पूरी धरती ही अल्लाह ने बनाई है। इस नज़रिए के अनुसार, अशराफ़ वर्ग को पूरी पृथ्वी पर हीअपना दावा कर देना चाहिए, लेकिन नहीं…उन को दूसरों से संबंध भी तो निभाने हैं ताकि दोनों हाथों में लड्डू रहे।
Read MoreThe Relevance of the Pasmanda Cause in Today’s India
by Azeem Ahmed | Jun 27, 2024 | Social Justice and Activism | 0 |
~Adnan Qamar As is widely known, Varna and Jati served as the foundation for traditional Indian...
Read Moreलोकसभा चुनाव 2024 का सबसे चर्चित मुद्दा मुस्लिम आरक्षण: तथ्य और मिथ्य
by Arif Aziz | Jun 10, 2024 | Pasmanda Caste, Political, Social Justice and Activism | 0 |
लोकसभा 2024 के चुनाव ने इस बार बहुचर्चित मुद्दा मुस्लिम आरक्षण था। कोई सारे मुसलमानों को आरक्षण देने की बात कर रहा था तो कोई सारे मुसलमानों के आरक्षण को खत्म करने की बात कर रहा था। मुस्लिम आरक्षण सदैव से एक अबूझ पहेली रही है। समाज से लेकर न्यायालायों तक में इस पर बहसें होती रहीं हैं।
सबसे पहले यह तथ्य समझ लेना चाहिए कि EWS (आर्थिक रूप से कमज़ोर) आरक्षण लागू होने के बाद ऐसा कोई मुस्लिम तबका नहीं है जो आरक्षण की परिधि से बाहर हो अर्थात लगभग सारे मुसलमान पहले से ही आरक्षण का लाभ लें रहें हैं। विदित रहे कि मज़हबी पहचान के नाम पर आरक्षण संविधान के मूल भावना के विरुद्ध है कोई भी मज़हब पिछड़ा या दलित नहीं होता है बल्कि उसके मानने वालो में गरीब, पिछड़े और दलित हो सकते हैं जिन्हें ध्यान में रखते हुए आरक्षण की EWS, ओबीसी और एसटी कैटेगरी में अन्य धर्मों के मानने वालों के साथ-साथ सारे मुसलमानों को भी समाहित किया गया।
पसमांदा विमर्श के मायने
by Arif Aziz | Jun 6, 2024 | Pasmanda Caste | 0 |
यह मात्र हाजी नेसार अंसारी की कहानी नहीं है। मुस्लिम समाज के अंदर का पच्चासी फिसदी हिस्सा रखने वाला ‘पसमांदा’ तबकें की मुसलमानों की कहानी है। जो मुस्लिम समाज में संख्या बल हाने के बावजूद इस्तेमाल किया जाता है।
Read Moreडॉक्टर अंबेडकर नहीं बल्कि कुछ बहुजन बुद्धिजीवी दलित मुस्लिमों के आरक्षण के खिलाफ हैं
by Arif Aziz | May 16, 2024 | Movie Review, Pasmanda Caste, Social Justice and Activism | 0 |
यदि संविधान कहता है कि अगर संविधान के हिसाब से सिर्फ धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता, तो सिर्फ धर्म के आधार पर आरक्षण से बाहर भी नहीं किया जा सकता। लेकिन 1950 का राष्ट्रपति आदेश बिल्कुल यही करता है, जिसमें दलित मुसलमानों और दलित ईसाइयों को केवल उनके धर्म के कारण एससी श्रेणी से बाहर रखा गया है। यह उनके मूल अधिकारों, विशेष रूप से अनुच्छेद 14 (समानता), बल्कि अनुच्छेद 15 (कोई भेदभाव नहीं), 16 (नौकरियों में कोई भेदभाव नहीं), और 25 (विवेक की स्वतंत्रता) के भी खिलाफ है।
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