Author: Abdullah Mansoor

Why women education is important from Islamic point of view

The Prophet also designated specific times to address women’s educational needs. When women requested dedicated instruction, he allocated a weekly session, saying, “Gather on such-and-such a day at such-and-such a place” (Sahih Bukhari 101). This institutionalized women’s access to religious and practical knowledge, showing the importance Islam places on women’s education.Furthermore, the Prophet said, “The best among you are those who learn the Quran and teach it” (Sahih al-Bukhari). This praise extends to women, exemplified by Aisha (RA), the Prophet’s wife, who taught Islamic jurisprudence to male scholars. Another Hadith states, “Whoever follows a path in pursuit of knowledge, Allah will make easy for him a path to Paradise” (Sahih Muslim). The gender-neutral language in these Hadiths underscores equal access to education for both men and women. Throughout Islamic history, there have been many educated Muslim women who made significant contributions. Aisha, the wife of Prophet Muhammad, was renowned for her vast knowledge and taught many people about Islam. Fatima al-Fihri founded the University of Al-Karaouine in 859 CE, which UNESCO recognizes as the oldest continually-running university in the world. Other notable examples include Nafisa bint al-Hassan, a respected scholar who taught Imam Shafi’i, and Lubna of Cordoba, who was well-versed in mathematics and served as the sultan’s secretary.

Read More

भारतीय स्टैंड-अप कॉमेडी: हास्य और अश्लीलता के बीच संतुलन की खोज

खासकर युवाओं पर इसका बुरा प्रभाव पड़ रहा है। अध्ययनों से पता चला है कि यौन मजाक के संपर्क में आने वाले बच्चों में मनोवैज्ञानिक समस्याएं ज्यादा होती हैं। इससे गंदी भाषा और अश्लील व्यवहार को सामान्य मानने की आदत पड़ सकती है। बच्चों में हास्य की समझ कम हो सकती है और वे अच्छे-बुरे मजाक में फर्क नहीं कर पाएंगे। इंटरनेट पर ऐसे वीडियो आसानी से मिलने से बच्चे गलत सामग्री देख सकते हैं। इससे बच्चों की जिंदगी से खुशी कम हो सकती है। नौजवानों में रोस्टिंग का चलन बढ़ गया है। मजाक के नाम पर लोग एक-दूसरे को गाली देते हैं और चुभते हुए बोल बोलते हैं। पहले ये सिर्फ मशहूर कॉमेडियन करते थे, अब हर कोई करने लगा है। इस खेल में अक्सर औरतों और कमजोर लोगों को निशाना बनाया जाता है।

दोस्तों के बीच भी ये बात आम हो गई है। इससे रिश्तों में प्यार कम हो रहा है। जवान लड़के-लड़कियां अपने दिल की बात कहने से डरने लगे हैं। उन्हें लगता है कि कहीं उनका मजाक न उड़ा दिया जाए।ये सब मिलकर समाज को बुरी तरह से बदल रहा है। लोगों के दिलों में दूसरों के लिए इज्जत कम हो रही है। औरतों को सिर्फ एक चीज की तरह देखा जा रहा है। हमें इस बारे में सोचना होगा। हालांकि, अच्छा मजाक कई तरह से फायदेमंद होता है। यह लोगों को सोचने पर मजबूर करता है और उनकी समझ बढ़ाता है। इससे अलग-अलग उम्र और संस्कृति के लोग एक-दूसरे को समझ पाते हैं। अच्छा मजाक लोगों को सिखाता भी है और उनका हौसला भी बढ़ाता है। ऐसा मजाक हमेशा याद रहता है, चाहे जमाना कितना भी बदल जाए। इससे लोगों का तनाव कम होता है और दिमागी सेहत अच्छी रहती है। लोगों की आपसी दोस्ती भी मजबूत होती है, खासकर बुजुर्गों के लिए यह बहुत जरूरी है।

Read More

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025: मतदाताओं की बदलती प्राथमिकताओं और उनके निर्णयों का विश्लेषण

पसमांदा मुस्लिम आमतौर पर आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं और सरकारी योजनाओं पर अधिक निर्भर रहते हैं। उच्च वर्ग के मुस्लिम अक्सर बेहतर आर्थिक स्थिति में होते हैं और उनकी प्राथमिकताएं अलग हो सकती हैं। पसमांदा मुस्लिम परिवार आर्थिक रूप से पिछड़े हैं और नौकरी की तलाश में हैं। पसमांदा मुस्लिम रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी मुद्दों पर अधिक ध्यान देते हैं।उच्च वर्ग के मुस्लिम अक्सर व्यापक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भी विचार करते हैं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच की कमी एक बड़ी चुनौती है।कई पसमांदा मुस्लिम बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं। उच्च शिक्षा में पसमांदा छात्रों का प्रतिशत कम है। मदरसों की आधुनिकीकरण की मांग भी है। बुनियादी सुविधाओं जैसे बिजली, पानी, सड़क आदि की कमी कई मुस्लिम बहुल इलाकों में है। शहरी क्षेत्रों में मुस्लिम बस्तियों का विकास एक मुद्दा है।सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी।सांप्रदायिक सद्भाव और सुरक्षा की मांग।भेदभाव और पूर्वाग्रह से मुक्ति। इसलिए, हालांकि कुछ नेता “मुस्लिम वोट बैंक” की बात करते हैं, वास्तव में ऐसा कोई एक राष्ट्रीय मुस्लिम वोट बैंक नहीं है। पसमांदा मुस्लिम मतदाता अलग-अलग तरह से सोचते हैं और अपनी मर्जी से वोट करते हैं। पसमांदा मुस्लिम अक्सर क्षेत्रीय और जाति-आधारित दलों को समर्थन देते हैं। उच्च वर्ग के मुस्लिम राष्ट्रीय दलों या मुख्यधारा के दलों को वोट देने की प्रवृत्ति रखते हैं।

Read More

धर्म: शोषण का औज़ार या मुक्ति का माध्यम?

मसऊद आलम फलाही जैसे विचारकों ने धार्मिक ग्रंथों की नई व्याख्या प्रस्तुत की। उन्होंने इस्लामिक शिक्षाओं से समानता और न्याय का संदेश खोजा और साबित किया कि धर्म दमनकारी नहीं बल्कि मुक्ति दिलाने वाला हो सकता है। दक्षिण अफ्रीका में अपार्थाइड विरोधी संघर्ष इसका एक उदाहरण है जहां आर्कबिशप डेसमंड टूटू ने ईसाई सिद्धांतों का उपयोग करते हुए नस्लीय समानता की वकालत की। मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने भी बाइबिल की शिक्षाओं पर आधारित आंदोलन चलाया जिससे नस्लीय भेदभाव समाप्त हुआ।

Read More

क्या है मुस्लिम तुष्टिकरण का असली सच? एक विचारोत्तेजक पड़ताल

इस नीति की चपेट में सबसे ज़्यादा वे लोग आये जिन्होंने कालांतर में किन्हीं कारणों से अपना मतांतरण करके मुस्लिम धर्म अपनाया था। जो कभी भी सत्ता और शासन के निकट नहीं रहे या रहने नहीं दिया गया, जिन्हें देशज पसमांदा मुस्लिम के नाम से जानते हैं, जिनकी ज़िन्दगियों में मतांतरण का कोई विशेष लाभ दृष्टिगोचर नहीं होता है और ये अपने पूर्ववर्ती सभ्यता, संस्कृति भाषा एवम् सामाजिक संरचनाओं से जुड़े हुए रहे।

Read More