~ अब्दुल्लाह मंसूर
हम अक्सर सुपरहीरो को एक आदर्श के रूप में देखते आए हैं—निस्वार्थ, सच्चे और न्यायप्रिय। लेकिन ‘द बॉयज़’ वेब सीरीज़ इस धारणा को पूरी तरह झकझोर देती है। यह सीरीज़ न सिर्फ सुपरहीरो के मिथक को तोड़ती है बल्कि हमें यह भी दिखाती है कि कैसे ताकत, पूंजी और प्रचार के गठजोड़ से एक नई किस्म की मसीहाई पैदा की जाती है—जो दिखने में ईश्वर समान होती है लेकिन असल में बेहद खतरनाक होती है। यह एक ऐसी कथा है जो हमें हमारे समय की सबसे जरूरी सच्चाई से रूबरू कराती है—कि झूठ को बार-बार दोहराने से वह सत्य लगने लगता है, और आम आदमी उस झूठ में ही अपनी उम्मीदें बुनने लगता है।
‘द बॉयज़’ की कहानी में एक काल्पनिक दुनिया रची गई है, लेकिन उस दुनिया के पीछे असल में हमारा ही समाज है—जहाँ पूंजीवादी कंपनियाँ, मीडिया और राजनीति मिलकर ऐसे चेहरे बनाती हैं जिन पर जनता आंख मूंदकर विश्वास करती है। ‘Vought’ नाम की एक बहुराष्ट्रीय कंपनी सुपरहीरो को केवल इंसान नहीं, एक बिकाऊ ब्रांड बना देती है। इन ब्रांड्स का मूल्य उनकी नैतिकता या ज़िम्मेदारी से तय नहीं होता, बल्कि उनकी लोकप्रियता, बिक्री और प्रचार क्षमता से होता है। यहीं से शुरू होता है एक ऐसा खेल, जहाँ अच्छाई सिर्फ दिखावे में होती है और सच्चाई को दबा दिया जाता है।
इस दुनिया का सबसे चर्चित चेहरा है होमलैंडर—एक ऐसा सुपरहीरो जो बाहर से ताकतवर, देशभक्त और करिश्माई लगता है लेकिन भीतर से डरपोक, असुरक्षित और मानसिक रूप से विक्षिप्त है। वह अपनी ताकत का इस्तेमाल दूसरों को डराने, कुचलने और अपने लिए प्यार खरीदने में करता है। उसकी हर गलती को मीडिया और कंपनी इस तरह मैनेज करती है कि वह भगवान नज़र आने लगे। वह व्यक्ति नहीं, एक ब्रांड है, और यह ब्रांड तभी तक जीवित है जब तक लोग उसमें आस्था रखते हैं। यह हमें याद दिलाता है कि कैसे हमारे समाज में नेता, अभिनेता या धर्मगुरु अपनी असलियत से ज़्यादा अपनी छवि के दम पर पूजे जाते हैं।

लेकिन इस छवि के खिलाफ खड़ा होता है एक आम इंसान—ह्यूई। उसकी प्रेमिका की मौत एक सुपरहीरो की लापरवाही से होती है और वह टूट जाता है। लेकिन इस टूटन से जन्म लेती है एक लड़ाई। ह्यूई की मुलाकात बिली बुचर से होती है, जो पहले से ही इस झूठी सुपरहीरो दुनिया के खिलाफ लड़ रहा होता है। दोनों मिलकर कुछ और साथियों के साथ ‘द बॉयज़’ नाम की टीम बनाते हैं। वे खुद सुपरहीरो नहीं हैं, उनके पास कोई ताकत नहीं है, लेकिन उनके पास है—सच, साहस और इंसानियत। यह टीम हमें बताती है कि लड़ाई ताकत से नहीं, संकल्प से लड़ी जाती है।
तीनों सीजन इस लड़ाई को और गहरा बनाते हैं। पहले सीजन में हमें पता चलता है कि सुपरहीरो कोई चमत्कार नहीं, बल्कि ‘कंपाउंड वी’ नाम की एक दवा से बने प्रयोग हैं। यह रहस्य जनता से छुपाया जाता है, ताकि कंपनी का बिजनेस चलता रहे। यह दिखाता है कि कैसे आज सच्चाई को ढककर झूठ को गढ़ा जाता है, और लोग एक सुंदर धोखे को सच मानकर जीने लगते हैं। दूसरे सीजन में स्टॉर्मफ्रंट नाम की एक नई सुपरहीरो आती है, जो सोशल मीडिया के ज़रिए नफरत और नस्लवाद फैलाती है। वह बताती है कि आज का प्रचार तंत्र कैसे लोगों की भावनाओं को भड़का कर सत्ता की सीढ़ियाँ बनाता है। वह ‘देशभक्ति’ के नाम पर नफरत को बेचती है और दर्शकों को यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या सच में आज का सबसे बड़ा सुपरपावर ‘सच’ है या ‘प्रचार’?

तीसरे सीजन में यह सवाल और पेचीदा हो जाता है। सत्ता, पारिवारिक रिश्ते और न्याय—इन सबका मेल तब टूटने लगता है जब हमें पता चलता है कि राजनीतिक चेहरों के पीछे भी कोई न कोई अदृश्य ताकत छिपी होती है। विक्टोरिया न्यूमन जैसे किरदार हमें दिखाते हैं कि सत्ता की लड़ाई में सच और झूठ के बीच की रेखा कैसे मिट जाती है। वह बाहर से एक प्रगतिशील नेता लगती है, लेकिन असल में वह भी उन्हीं ताकतों का हिस्सा होती है जिनसे लड़ने का दावा करती है। यह हमें हमारे समय की राजनीति की असलियत से टकराने को मजबूर करता है।
अब चौथे सीजन में, कहानी और गहरी हो जाती है। बिली बुचर के पास जीने के लिए कुछ ही महीने बचे हैं, लेकिन वह होमलैंडर और विक्टोरिया न्यूमन को रोकने के लिए आखिरी दांव खेलता है। इस बार होमलैंडर, सत्ता और राजनीति का खुलकर इस्तेमाल करता है, रायन को अपने पक्ष में करने की कोशिश करता है, और न्यूमन के साथ मिलकर राष्ट्रपति सिंगर की हत्या की साजिश रचता है। ‘द बॉयज़’ टीम बिखर जाती है—हर सदस्य अपनी निजी मुश्किलों से जूझ रहा है। इस सीजन में एक खतरनाक वायरस की खोज होती है, जो सुपरहीरोज को खत्म कर सकता है। ‘द बॉयज़’ टीम के सदस्य या तो मारे जाते हैं या कैद हो जाते हैं, और अमेरिका सुपरहीरो की तानाशाही के कगार पर पहुंच जाता है।
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण सवाल यह है कि हम सुपरहीरो में इतना भरोसा क्यों करते हैं? क्या इसलिए कि हम खुद अपनी जिम्मेदारियों से भागते हैं? क्या इसलिए कि हम एक मसीहा की तलाश में रहते हैं जो हमारे दुख दूर करे, हमारी लड़ाइयाँ लड़े? ‘द बॉयज़’ हमें दिखाती है कि यह मसीहा भी एक बाज़ार का उत्पाद होता है—उसे प्रचारित किया जाता है, उसकी छवि गढ़ी जाती है और जनता को वह बेचा जाता है जैसे कोई प्रोडक्ट। यह हमें यह सोचने को मजबूर करती है कि क्या हमारी आस्था भी एक बाज़ार की चाल है?
इस पूरे नैरेटिव को और मजबूत बनाते हैं सीरीज़ के किरदार। बिली बुचर अपनी पत्नी के लिए, अपने गुस्से और दर्द के साथ, एक लड़ाई लड़ रहा है—एक ऐसी लड़ाई जिसमें वह खुद को लगातार खोता भी है और गढ़ता भी है। ह्यूई की मासूमियत और नैतिक संघर्ष हमें दर्शक के रूप में कहानी से जोड़ते हैं। किमिको की चुप्पी, मदर मिल्क की संवेदनशीलता और फ्रेंची का दिल—इन सबके ज़रिए यह सीरीज़ यह बताती है कि असली हीरो वह नहीं होता जो उड़ सकता है, बल्कि वह होता है जो ज़मीन पर खड़ा रहकर भी अन्याय से लड़ता है।

स्टारलाइट का किरदार खास तौर पर प्रेरक है। वह सिस्टम के भीतर रहते हुए बदलाव की कोशिश करती है। वह उस हर युवा की प्रतीक है जो एक गंदी व्यवस्था में फँसा है, लेकिन फिर भी सच्चाई से समझौता नहीं करता। उसकी लड़ाई बाहरी नहीं, अंदरूनी है—वह खुद को भी बचाती है और दूसरों को भी जगाती है।
‘द बॉयज़’ केवल तकनीकी रूप से बेहतरीन नहीं है, बल्कि कलात्मक रूप से भी अपने समय की सबसे धारदार रचना है। इसका निर्देशन, संपादन और अभिनय इसे एक विशिष्ट कृति बनाते हैं। हर किरदार अपने साथ एक विचार लेकर आता है, और हर एपिसोड हमें न सिर्फ भावनात्मक रूप से झकझोरता है, बल्कि बौद्धिक रूप से भी चुनौती देता है। खासकर एंटनी स्टार ने होमलैंडर के किरदार में जो असुरक्षा, हिंसा और तानाशाही का मेल दिखाया है, वह आधुनिक राजनीति का प्रतीक बन गया है।
यह सीरीज़ दरअसल एक चेतावनी है। यह हमें बताती है कि लोकतंत्र तभी सुरक्षित है जब जनता जागरूक हो, सवाल पूछे और अपने नायकों को आंख मूंदकर पूजने के बजाय उनकी जवाबदेही तय करे। लॉकडाउन, नोटबंदी, या किसी मसीहा की लोकप्रियता—इन सभी में कहीं न कहीं वही पैटर्न दिखता है, जो ‘द बॉयज़’ की कहानी में बार-बार उभरता है। जब हम किसी व्यक्ति या विचार को पूर्ण सत्य मान लेते हैं, तब हम अपने विवेक को गिरवी रख देते हैं। यह सीरीज़ हमें इस आत्मसमर्पण से बाहर आने को कहती है।

‘द बॉयज़’ सिर्फ एक वेब सीरीज़ नहीं है। यह एक आईना है—कड़वा, तीखा और चुभता हुआ। लेकिन यही आईना हमें हमारी ज़िम्मेदारियाँ याद दिलाता है। यह हमें बताता है कि अगर समाज को बदलना है, तो सुपरहीरो की ज़रूरत नहीं, बल्कि जागरूक आम नागरिकों की ज़रूरत है। यही वो असली हीरो हैं, जो बिना ताकत के भी सच के साथ खड़े रहते हैं।
लेखक पसमांदा चिंतक और Pasmanda Democracy यूट्यूब चैनल के संचालक हैं