Category: Pasmanda Caste
क्या है मुस्लिम तुष्टिकरण का असली सच? एक विचारोत्त...
Posted by Abdullah Mansoor | Feb 11, 2025 | Casteism, Culture and Heritage, Pasmanda Caste | 0 |
उर्दू अदब का जातिवादी चरित्र...
Posted by pasmanda_admin | Feb 6, 2025 | Culture and Heritage, Education and Empowerment, Pasmanda Caste, Poetry and literature | 0 |
वो नक़्शे-कदम जो तारीख में कभी मद्धम नहीं पड़ते...
Posted by pasmanda_admin | Jan 31, 2025 | Casteism, Culture and Heritage, Education and Empowerment, Pasmanda Caste, Social Justice and Activism | 0 |
शोषक और शोषित में एकता… क्या संभव है?...
Posted by pasmanda_admin | Jan 24, 2025 | Casteism, Culture and Heritage, Education and Empowerment, Pasmanda Caste, Political, Social Justice and Activism | 0 |
बांग्लादेश में हिंदुओं की दुर्दशा:मोहम्मद यूनुस सर...
Posted by Abdullah Mansoor | Dec 15, 2024 | Political | 0 |
वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक 2024 अफवाह और सच
by pasmanda_admin | Apr 3, 2025 | Education and Empowerment, Political | 0 |
लेखक: अब्दुल्लाह मंसूर आजकल वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक 2024 को लेकर समाज में एक बड़ी गलतफहमी फैल रही...
Read Moreपसमांदा आंदोलन का संक्षिप्त इतिहास
by pasmanda_admin | Mar 12, 2025 | Culture and Heritage, Pasmanda Caste, Political, Social Justice and Activism | 0 |
पसमांदा एक उर्दू शब्द है, जिसका अर्थ “जो पीछे रह गया” होता है। यह मुस्लिम धर्मावलंबी दलित, आदिवासी और पिछड़ी जातियों के लिए प्रयोग किया जाता है। इसका इतिहास संत कबीर से जुड़ता है, जिन्होंने इस्लाम में जातिवाद का विरोध किया। बाद में, मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी ने मोमिन कॉन्फ्रेंस की स्थापना की, जो एक संगठित पसमांदा आंदोलन बना। बंगाल में हाजी शरीयतुल्लाह के फरायज़ी आंदोलन और पंजाब में अगरा सहूतरा के प्रयास भी महत्वपूर्ण रहे। महाराष्ट्र में शब्बीर अंसारी ने ओबीसी सूची में पसमांदा जातियों को शामिल कराने की लड़ाई लड़ी। असम में फैय्याजुद्दीन अहमद ने मछुआरा समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। अली अनवर, डॉ. अय्यूब राईन और अन्य पसमांदा नेताओं ने सामाजिक न्याय के लिए काम किया। आज भी कई संगठन पसमांदा अधिकारों के लिए सक्रिय हैं, और डिजिटल मीडिया के माध्यम से यह विमर्श मुख्यधारा में आ रहा है।
Read Moreदिल्ली विधानसभा चुनाव 2025: मतदाताओं की बदलती प्राथमिकताओं और उनके निर्णयों का विश्लेषण
by Abdullah Mansoor | Feb 20, 2025 | Political | 0 |
पसमांदा मुस्लिम आमतौर पर आर्थिक रूप से कमजोर होते हैं और सरकारी योजनाओं पर अधिक निर्भर रहते हैं। उच्च वर्ग के मुस्लिम अक्सर बेहतर आर्थिक स्थिति में होते हैं और उनकी प्राथमिकताएं अलग हो सकती हैं। पसमांदा मुस्लिम परिवार आर्थिक रूप से पिछड़े हैं और नौकरी की तलाश में हैं। पसमांदा मुस्लिम रोजगार, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी मुद्दों पर अधिक ध्यान देते हैं।उच्च वर्ग के मुस्लिम अक्सर व्यापक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर भी विचार करते हैं। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच की कमी एक बड़ी चुनौती है।कई पसमांदा मुस्लिम बच्चे स्कूल छोड़ देते हैं। उच्च शिक्षा में पसमांदा छात्रों का प्रतिशत कम है। मदरसों की आधुनिकीकरण की मांग भी है। बुनियादी सुविधाओं जैसे बिजली, पानी, सड़क आदि की कमी कई मुस्लिम बहुल इलाकों में है। शहरी क्षेत्रों में मुस्लिम बस्तियों का विकास एक मुद्दा है।सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच की कमी।सांप्रदायिक सद्भाव और सुरक्षा की मांग।भेदभाव और पूर्वाग्रह से मुक्ति। इसलिए, हालांकि कुछ नेता “मुस्लिम वोट बैंक” की बात करते हैं, वास्तव में ऐसा कोई एक राष्ट्रीय मुस्लिम वोट बैंक नहीं है। पसमांदा मुस्लिम मतदाता अलग-अलग तरह से सोचते हैं और अपनी मर्जी से वोट करते हैं। पसमांदा मुस्लिम अक्सर क्षेत्रीय और जाति-आधारित दलों को समर्थन देते हैं। उच्च वर्ग के मुस्लिम राष्ट्रीय दलों या मुख्यधारा के दलों को वोट देने की प्रवृत्ति रखते हैं।
Read Moreक्या है मुस्लिम तुष्टिकरण का असली सच? एक विचारोत्तेजक पड़ताल
by Abdullah Mansoor | Feb 11, 2025 | Casteism, Culture and Heritage, Pasmanda Caste | 0 |
इस नीति की चपेट में सबसे ज़्यादा वे लोग आये जिन्होंने कालांतर में किन्हीं कारणों से अपना मतांतरण करके मुस्लिम धर्म अपनाया था। जो कभी भी सत्ता और शासन के निकट नहीं रहे या रहने नहीं दिया गया, जिन्हें देशज पसमांदा मुस्लिम के नाम से जानते हैं, जिनकी ज़िन्दगियों में मतांतरण का कोई विशेष लाभ दृष्टिगोचर नहीं होता है और ये अपने पूर्ववर्ती सभ्यता, संस्कृति भाषा एवम् सामाजिक संरचनाओं से जुड़े हुए रहे।
Read Moreउर्दू अदब का जातिवादी चरित्र
by pasmanda_admin | Feb 6, 2025 | Culture and Heritage, Education and Empowerment, Pasmanda Caste, Poetry and literature | 0 |
चूँकि उर्दू अशराफ की भाषा रही है इसलिए अशराफ के सभ्यता और संस्कृति की प्रतिनिधि भी रही है। इस लेख में अशराफ के जातिवादी नज़रिये की अक्कासी करती हुई उर्दू अदब (साहित्य) से सम्बंधित कुछ प्रसिद्ध साहित्यकारों और उनकी रचना पर विवेचना करने की कोशिश की गई है।
Read Moreवो नक़्शे-कदम जो तारीख में कभी मद्धम नहीं पड़ते
by pasmanda_admin | Jan 31, 2025 | Casteism, Culture and Heritage, Education and Empowerment, Pasmanda Caste, Social Justice and Activism | 0 |
अपने ज़िन्दगी के तमाम उतार-चढाव के बावजूद दलितों पिछड़ों और पसमांदा के संघर्ष से अपना नाता नही तोड़ा. पैसे-रुपयों की कमी या घरेलू हालात अथवा परेशानियाँ भी आप को अपने मकसद से डिगा न सकी. आप ने कांशीराम और उनकी तहरीक (आन्दोलन) को उस समय गले लगाया था जब बड़े से बड़ा सामाजिक कार्यकर्ता भी उधर मुंह करके खड़ा होने से घबराता था कि कहीं अछूत न समझ लिया जाऊं।
Read Moreशोषक और शोषित में एकता… क्या संभव है?
by pasmanda_admin | Jan 24, 2025 | Casteism, Culture and Heritage, Education and Empowerment, Pasmanda Caste, Political, Social Justice and Activism | 0 |
पसमांदा शब्द के लग्वी माने जो भी हो, इस शब्द का एक पोलिटिकल meaning है. पसमांदा शब्द हमसे यह कहता है कि ‘सभी पिछड़ी जातियों एक हो जाओ और अपने मनुवादी शोषक के खिलाफ मोर्चा ले लो!’. पसमांदा शब्द अपने आप में एक revolution है, जब कि किसी जाति का नाम एक ग़ुलामी का प्रतीक, और गुलाम सभी शोषकों को पसंद हैं. पसमांदा शब्द उस आज़ादी का प्रतीक है जो जाति की बेड़ियों से मुक्त होने पर मिलती है.
Read Moreपसमांदा आंदोलन के जनक आसिम बिहारी ने कैसे पसमांदा समाज को जागरूक और सक्रिय किया
by pasmanda_admin | Jan 21, 2025 | Education and Empowerment, Pasmanda Caste, Political, Social Justice and Activism | 0 |
आसिम बिहारी ने 22 साल की उम्र में प्रौढ़ शिक्षा के लिए एक पंचवर्षीय (1912-1917) योजना शुरू की. 1914 में मात्र 24 साल की आयु में अपने वतन नालंदा में बज़्म-ए-अदब (साहित्य सभा) नामक संस्था की स्थापना की जिसके अंतर्गत एक पुस्तकालय भी संचालित किया.
Read Moreबांग्लादेश में हिंदुओं की दुर्दशा:मोहम्मद यूनुस सरकार की निष्क्रियता का नतीजा
by Abdullah Mansoor | Dec 15, 2024 | Political | 0 |
कट्टरपंथी गुटों का प्रशासन और न्यायपालिका में बढ़ता प्रभाव चिंताजनक है। यूनुस सरकार के कार्यकाल में जमात-ए-इस्लामी के समर्थकों को प्रमुख पदों पर नियुक्त किया गया है। विश्वविद्यालयों में कट्टरपंथी विचारधारा का प्रसार तेज हो गया है। हिंदू समुदाय, जो पहले से ही असुरक्षित महसूस कर रहा था, अब और अधिक निशाने पर है। मंदिरों पर हमले, हिंदू महिलाओं का अपहरण और जबरन धर्मांतरण जैसी घटनाएं आम हो गई हैं। यूनुस सरकार ने इन घटनाओं को रोकने के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए हैं। आलोचक यह भी मानते हैं कि सरकार की निष्क्रियता ने कट्टरपंथी ताकतों को बढ़ावा दिया है।
Read Moreअलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में सामाजिक न्याय की खोज
by Abdullah Mansoor | Nov 22, 2024 | Political, Social Justice and Activism | 0 |
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के अल्पसंख्यक दर्जे पर सुप्रीम कोर्ट का 8 नवंबर 2024 का फैसला एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। सात न्यायाधीशों की पीठ ने 4:3 के बहुमत से 1967 के एस. अजीज बाशा बनाम भारत संघ मामले में दिए गए फैसले को पलट दिया। इस पुराने फैसले में कहा गया था कि AMU को अल्पसंख्यक संस्था नहीं माना जा सकता। नए फैसले में स्पष्ट किया गया कि किसी संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा उसकी स्थापना के आधार पर निर्धारित होता है। यदि किसी अल्पसंख्यक समुदाय ने संस्थान की स्थापना की है, तो वह संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक दर्जे का दावा कर सकता है। इस निर्णय से AMU को अल्पसंख्यक दर्जा प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त हुआ है, लेकिन यह मामला अब तीन न्यायाधीशों की नियमित पीठ को सौंपा गया है, जो इस नए फैसले में निर्धारित सिद्धांतों के आधार पर निर्णय करेगी।पसमांदा आंदोलन का आरोप है कि अल्पसंख्यक संस्थान जैसे AMU केवल अशरफ वर्ग के हितों की पूर्ति करते हैं और पसमांदा समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करते। यह लेख इस मुद्दे का विश्लेषण करेगा और देखेगा कि कैसे AMU अपने जन्म से ही मुस्लिम समाज में सामाजिक न्याय के खिलाफ खड़ा रहा है।
Read MoreBlasphemy Laws in Islam: Balancing Faith, Freedom, and Justice
by Abdullah Mansoor | Nov 15, 2024 | Culture and Heritage, Political | 0 |
Historically, the concept of blasphemy in Islam is linked to the consolidation of political power. Blasphemy, defined broadly as any action or speech that offends Islamic beliefs, was viewed as a serious offense because it was seen as a threat to the stability of the early Islamic empires. Instances of severe punishments were often tied to cases where political rebellion was involved, as in the Ridda Wars (Wars of Apostasy) following the Prophet Muhammad’s death. This association between blasphemy and rebellion is further supported by the writings of influential scholars like Ibn Taymiyya, who argued that insults against the Prophet Muhammad were destabilizing, warranting harsh penalties to preserve the unity of the Islamic state.
Read Moreवक़्फ़-बोर्ड का काला सच
by Abdullah Mansoor | Sep 19, 2024 | Culture and Heritage, Political | 0 |
वक्फ बोर्ड भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है, जिसका अंदाजा इसके कुछ भयावह भूमि घोटालों से लगाया जा सकता है, जैसे कि महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड, जिसने मुकेश अंबानी को मुंबई में स्थित उनके 27 माला अपार्टमेंट ‘इंटालिया’ के लिए 4,535 वर्ग मीटर मुफ्त में प्रदान किया था जो मुम्बई के व्यस्त बाज़ार ‘अल्टा माउंट रोड’ पर स्थित है। इसी तरह बेंगलुरु में 600 करोड़ रुपये से ज्यादा मूल्य का ‘विंडसर होटल’ 12,000 रुपये प्रति माह पर लीज पर दिया गया है। अब अंदाजा लगाया जा सकता है कि 600 करोड़ रुपये से ज्यादा की जमीन महज 12000 रुपये प्रति माह में लीज पर दे दी गई। 12000 तो सिर्फ कागजी कार्रवाई में है। जबकि वक्फ बोर्ड के सदस्यों को इसका कई गुना मासिक काला धन या रिश्वत के रूप में मिलता होगा और ये सभी भ्रष्टाचार अल्लाह के नाम पर किए जाते हैं।
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