डॉ. शारिद जमाल अन्सारी
भारत में भूमि की दृष्टि से वक्फ-बोर्ड की अनुमानित भूमि इतनी अधिक है कि क्षेत्रफल की दृष्टि से यह भारत में तीसरे स्थान पर है। इसकी कुल भूमि भाग लगभग चार लाख पंजीकृत भूमि होने का अनुमान है, जिसमें लगभग छः लाख एकड़ भूमि शामिल है।
राज्यसभा के पूर्व सभापति के. रहमान खान की अध्यक्षता वाली संयुक्त संसदीय समिति ने दावा किया था कि वक्फ बोर्ड संपत्तियों की संख्या और क्षेत्रफल के मामले में भारतीय रेलवे और रक्षा विभाग के बाद तीसरा सबसे बड़ा विभाग है।
रहमान खान की रिपोर्ट ने यह स्पष्ट भी कर दिया था कि वक्फ की कुल संपत्ति का लगभग सत्तर प्रतिशत भाग या तो अवैध कब्जे में है या फिर वक्फ सदस्यों के व्यक्तिगत और निजी उपयोग में हैं और बाकी संपत्तियाँ योजनाबद्ध तरीक़े से भ्रष्टाचार में लिप्त है। भ्रष्ट इकाइयों में तथाकथित मुस्लिम अभिजात (अशराफ) वर्ग, विद्वान, नेता, दरगाह, खानकाह, सज्जादा-नशीन, वक्फ बोर्ड के सदस्य भी शामिल हैं। हद तो ये है कि इन भ्रष्ट लोगों में शाही मस्जिद के इमाम अब्दुल्ला बुखारी भी शामिल हैं। भवन, इमारतें, बाज़ार, होटल, मॉल या उद्योग अविश्वसनीय रूप से कम किराए या भूमि को बेच दिया गया है। इसमें वक्फ बोर्ड के सदस्यों ने अपने रिश्तेदारों, निकट संबंधियों और लाभार्थियों को निजी फायदे के लिए बड़े औद्योगिक संगठनों और हस्तियों को दे दिया है। मुकेश अंबानी का घर ‘एंटीलिया’ इसका जीता-जागता सबूत है।
दिल्ली का लगभग सतहत्तर प्रतीशत भाग वक्फ के स्वामित्व में है, लेकिन इसकी अधिकांश संपत्तियों पर अवैध रूप से कब्जा है, जिसमें सीजीओ कॉम्प्लेक्स, जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, दिल्ली उच्च न्यायालय, दिल्ली पब्लिक स्कूल (मथुरा रोड), एंग्लो-अरबी स्कूल, बहादुर शाह पर समाचार पत्र कार्यालय भी शामिल है। जफर मार्ग, केंद्र सरकार के कई कार्यालयों आदि के अलावा, ये सभी संपत्तियां केवल इसलिए समाप्त हो गईं हैं क्योंकि वक्फ की प्रशासनिक व्यवस्था अपर्याप्त थी। इनमें दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम सैयद अब्दुल्ला बुखारी, शाही मस्जिद फ़तेहपुरी के नायब इमाम मौलाना मुअज्जम अहमद भी शामिल हैं, दिल्ली और कुछ प्रसिद्ध संगठन और व्यक्ति आदि भी इसमें शामिल हैं।
वक्फ बोर्ड भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है, जिसका अंदाजा इसके कुछ भयावह भूमि घोटालों से लगाया जा सकता है, जैसे कि महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड, जिसने मुकेश अंबानी को मुंबई में स्थित उनके 27 माला अपार्टमेंट ‘इंटालिया’ के लिए 4,535 वर्ग मीटर मुफ्त में प्रदान किया था जो मुम्बई के व्यस्त बाज़ार ‘अल्टा माउंट रोड’ पर स्थित है। इसी तरह बेंगलुरु में 600 करोड़ रुपये से ज्यादा मूल्य का ‘विंडसर होटल’ 12,000 रुपये प्रति माह पर लीज पर दिया गया है। अब अंदाजा लगाया जा सकता है कि 600 करोड़ रुपये से ज्यादा की जमीन महज 12000 रुपये प्रति माह में लीज पर दे दी गई। 12000 तो सिर्फ कागजी कार्रवाई में है। जबकि वक्फ बोर्ड के सदस्यों को इसका कई गुना मासिक काला धन या रिश्वत के रूप में मिलता होगा और ये सभी भ्रष्टाचार अल्लाह के नाम पर किए जाते हैं।
वक़्फ की अधिकांश संपत्तियाँ वक़्फ सदस्यों, प्रबंधकों के कार्यालयों, व्यावसायिक इकाइयों और यहाँ तक कि वक़्फ की भूमि पर आवासीय घर बने हुए हैं अब इनके वारिस लोग इसे पुश्तैनी बना लिया है। जैसा कि एंग्लो-अरबिक स्कूल, अजमेरी गेट, दिल्ली की हैरिटेज साइट पर दरगाह ख्वाजा सादुल्लाह नक़्शबंदी के मामले में हुआ था। इसे 1994 में डी. डी. ए. ने इसे हेरिटेज स्थल घोषित किया था और वादी द्वारा दायर जनहित याचिका (संख्या 8759/2004) के अनुसार, उच्च न्यायालय ने अतिक्रमणकारियों के लगभग 51 परिवारों को संपत्ति से हटाने का आदेश दिया था। हालाँकि, बिल्डर, प्रॉपर्टी-डीलर, स्वार्थी राजनेता और स्थानीय दिग्गज फिर से कब्ज़ा हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।
फ़तेहपुरी मस्जिद में एक चश्मे की दुकान इसका स्पष्ट प्रमाण है। दुकान मालिक ने दिल्ली वक्फ-बोर्ड और केयरटेकर की मिली-भगत से वक्फ की जमीन पर अपनी दुकान की मरम्मत के नाम पर एक रसीद प्राप्त की, जिससे उसे दुकान का कब्जा मिल जाए और यह उसकी निजी संपत्ति बन जाए। जब इसकी जानकारी एक स्थानीय सामाजिक संगठन को हुई तो उसके कुछ सदस्यों ने दुकान पर हंगामा कर दिया और फिर वक्फ-बोर्ड के दफ्तर जाकर मामले की तह तक जाने के बजाय इन लोगों ने दुकानदार से रिश्वत लेकर मामले को रफा-दफा किया। यहाँ यह बात स्पष्ट करते चलें कि वक़्फ़-बोर्ड की वर्तमान व्यवस्था ने मुस्लिम समाज में केवल भ्रष्टाचार और लूट-खसूट को बढ़ावा दिया है और कोई सामाजिक कार्य इससे संचालित होता हुआ तो अभी नहीं दिख रहा है।
अज़ीज़ बर्नी के अनुसार: “यह राजनेताओं, पुलिस विभाग, नौकरशाहों और भू-माफियाओं के बीच एक सांठगांठ है, जो हमेशा वक्फ भूमि पर नज़र रखते हैं, जब इसे बेचा नहीं जा सकता है और इसका निजी उपयोग कानूनी रूप से नहीं हो सकता है, वक़्फ़ के पदाधिकारियों के निजी ख़ज़ाने भरने हेतु वक़्फ की सम्पत्तियों को लीज़ पर दिया जाता है.”
भारत में मुस्लिम समय में भी वक्फ संपत्तियों के रखरखाव के लिए कोई केंद्रीय संस्था नहीं थी। ब्रिटिश समय में मुस्लिम और गैर-मुस्लिम दोनों तरह की संपत्तियों के सभी बंदोबस्ती का प्रबंधन राज्य सरकारों द्वारा किया जाता था। आजादी के बाद वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन पहली बार केंद्रीय वक्फ परिषद के गठन के माध्यम से किया गया। सर्वेक्षणों और पूछताछ से पता चला कि यह संगठित लूट-खसूत, घोटाला और दुर्भावना का अड्डा बन गया था। इसका उदाहरण अजमेर दरगाह ख्वाजा साहब कमेटी के फंड का गबन है।
सच्चर समिति की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि वक्फ बोर्ड में व्यापक बदलाव और सुधार की आवश्यकता है क्योंकि सरकार को अधिकांश राज्यों में उपयुक्त अधिकारी नहीं मिल पा रहे हैं, इसका एक कारण वक्फ परिषद है, जो अपने उच्च और निम्न पदों नियुक्तियाँ केवल सिफारिशें पर करते हैं और जो हैं वे या तो उस पद पर अतिरिक्त प्रभार के तौर पर काम कर रहे हैं या फिर इसके लिए योग्य नहीं हैं.
इसके लिए एक केंद्रीय चयन समीति सेवा होनी चाहिए जो कानून के दायरे में जाति और पंथ भेद के बिना पदों पर नियुक्ति करे और चयन करे। सच्चर समिति द्वारा यह पाया गया कि उत्तर प्रदेश राज्य में, वक़्फ सी.ई.ओ के पद पर एक यूनानी चिकित्सा से संबंध रखने वाले व्यक्ति का चयन किया था जबकि सीलांग में इसी पद के लिए ऐसे व्यक्ती की नियुक्ती की गई जो दसवीं फेल था।
वर्तमान समय में परिस्थित्यों को देखते हुए समाज की मांग है कि मौजूदा बोर्डों को भंग कर शिक्षा समिति, कल्याण समिति, चिकित्सा समिति, मस्जिद समिति, दरगाह समिति आदि जैसी उप-समितियों पर आधारित एक नया निकाय बनाया जाए। संख्या और गणना के अनुसार भागीदारी सुनिश्चित की जाए।
यह लेखक के निजी विचार हैं