लेखक : अब्दुल्लाह मंसूर
हम सबने कभी न कभी यह सोचा है कि एक ही घटना सब लोगों पर अलग-अलग असर क्यों डालती है। जैसे कोई हादसा हो जाए, तो कुछ लोग डर के मारे सुन्न हो जाते हैं, कुछ चुपचाप खड़े रह जाते हैं, तो कुछ लोग बिना डरे मदद करने दौड़ पड़ते हैं। आखिर ऐसा क्यों होता है? इसका सीधा-सा कारण है — हर इंसान का दिमाग अलग तरह से काम करता है। हर किसी के जीवन के अनुभव अलग होते हैं। हम जिस माहौल में पले-बढ़े हैं, जैसी परवरिश मिली है, जैसी तकलीफ़ें देखी हैं — उन सबका असर हमारी सोच और व्यवहार पर पड़ता है।
कई बार हम बचपन में ऐसी परिस्थितियों से गुजरते हैं, जो हमारे मन और सोच को गहराई से प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, अगर किसी ने बचपन में तंगी देखी है, पैसों की किल्लत झेली है, तो वो बड़ा होने पर महंगाई को सिर्फ अखबारों की खबर या सरकारी आंकड़ा नहीं समझेगा, बल्कि उसे वो अपनी जेब पर सीधा असर करता हुआ महसूस करेगा। दूध के दाम दो रुपए बढ़ जाएं या किराया थोड़ा बढ़ जाए — ये छोटी-छोटी बातें भी उसके लिए बड़ी चिंता का सबब बन जाती हैं। वहीं, जिन लोगों ने ऐसी दिक्कतें नहीं देखी होतीं, उनके लिए ये चीज़ें ज़्यादा मायने नहीं रखतीं। वो थोड़ी देर बुरा मानेंगे, लेकिन फिर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो जाएंगे।
यही फर्क है अनुभव का। हमारे देखे-सुने और भोगे हुए अनुभव हमारी सोच को आकार देते हैं। दुनिया में हर व्यक्ति अपने-अपने अनुभवों के चश्मे से चीजों को देखता है। इस बात को समझाने के लिए एक बहुत सुंदर उदाहरण दिया जाता है — जब किसी युद्धग्रस्त इलाके के बच्चे ड्राइंग बनाते हैं, तो उनके कागज़ पर बम, टैंक और बंदूकें दिखाई देती हैं। वहीं, किसी शांतिपूर्ण गाँव या शहर के बच्चों की ड्राइंग में सूरज, फूल, बादल और पेड़-पौधे नजर आते हैं। यह बताता है कि हमारे आसपास का माहौल हमारी सोच, हमारे विचारों और हमारी भावनाओं को कितनी गहराई से गढ़ता है।
ऐसा ही एक और उदाहरण है — मशहूर कहानी जिसमें छह अंधे लोग एक हाथी को छूकर उसकी कल्पना करते हैं। हर कोई हाथी के अलग-अलग हिस्से को छूता है — कोई पूंछ पकड़ता है, कोई सूंड, कोई कान। फिर सभी उसे अपनी सोच और अनुभव के आधार पर बयान करते हैं। कोई कहता है, “हाथी तो रस्सी जैसा है,” कोई कहता है, “हाथी तो दीवार जैसा है।” हर किसी की बात अपने हिस्से की जानकारी पर आधारित होती है, लेकिन असल सच्चाई सबके बयान से बड़ी और जटिल होती है।
ठीक यही बात हमारे जीवन पर भी लागू होती है। एक ही दुख, एक ही परेशानी या एक ही खुशी सबके लिए एक जैसा असर नहीं छोड़ती। किसी बड़ी तकलीफ का सामना करने के तरीके भी सबके अलग-अलग होते हैं। उदाहरण के तौर पर, फिल्म ‘3 इडियट्स’ के एक किरदार वायरस साहब को याद कीजिए। अपने बेटे के गुजर जाने के बाद भी वो ऑफिस लौट आते हैं और काम में लग जाते हैं। वहीं मशहूर गायक जगजीत सिंह और चित्रा सिंह के बेटे विवेक की मौत के बाद चित्रा सिंह ने हमेशा के लिए गाना छोड़ दिया था। दोनों घटनाएँ दुखद हैं, लेकिन प्रतिक्रिया अलग-अलग। क्यों? क्योंकि दोनों के अनुभव, सोच और भावनाओं की गहराई अलग थी।
इसीलिए यह समझना बहुत जरूरी है कि दुनिया में जितने लोग हैं, उतनी ही सोचें, उतने ही नजरिए हैं। एक ही परिस्थिति में हर व्यक्ति अलग प्रतिक्रिया देता है। कोई ग़म में डूब जाता है, कोई काम में मन लगाता है, कोई दोस्तों से बात कर सुकून पाता है, तो कोई अकेले बैठकर सोचता है। कोई तनाव में योग करता है, तो कोई म्यूजिक सुनकर या फिल्म देखकर मन हल्का करता है। किसी के लिए सबसे अच्छा तरीका हो सकता है बात करना, जबकि किसी के लिए खामोश रहना ही सुकूनदायक हो सकता है। इसलिए यह उम्मीद करना कि एक ही उपाय सब पर काम करेगा, सही नहीं है। हर व्यक्ति का दिमाग, दिल और भावनाएँ अलग तरह से काम करते हैं। अगर हम इस बात को समझ जाएं तो हम दूसरों को जज करने की बजाय उन्हें समझने की कोशिश करेंगे। उनकी भावनाओं की इज्ज़त करेंगे।
हमारे शरीर में हार्मोन भी हमारी सोच और भावनाओं पर बड़ा असर डालते हैं। डोपामाइन, सेरोटोनिन, कॉर्टिसोल — ये सब हार्मोन हमारे मूड और व्यवहार को नियंत्रित करते हैं। किसी में इनका स्तर कम होता है, तो किसी में ज्यादा। इसी वजह से भी हर व्यक्ति की प्रतिक्रिया एक जैसी नहीं होती। इसके अलावा, परवरिश और माहौल भी बहुत मायने रखते हैं। अगर कोई बचपन से ही मुश्किलों से लड़ना सीखता है, तो बड़े होकर वो जरा भी घबराता नहीं। वहीं, जिसे कभी तकलीफ का सामना करना नहीं पड़ा, वो छोटी सी परेशानी में भी टूट सकता है। यही बात समझाने के लिए जर्मन दार्शनिक नीत्शे का एक बहुत प्यारा विचार है — “हमारे विचार, हमारी भावनाओं की परछाईं हैं। ये हमेशा गहरे, खाली और सरल होते हैं।”
जब हम किसी भावना को शब्दों में बयां करते हैं, तो उसमें बहुत कुछ छूट जाता है। असली एहसास शब्दों से कहीं ज्यादा जटिल और गहरा होता है। जैसे प्यार। जब आप किसी से सच्चा प्यार करते हैं, तो वो सिर्फ एक शब्द नहीं होता। उसमें कई तरह की भावनाएँ एक साथ चलती हैं — खुशी, डर, उम्मीद, सुरक्षा, बेचैनी, उत्साह। लेकिन जब आप इसे बयान करते हैं, तो बस कहते हैं, “मैं तुमसे प्यार करता हूँ।” इस छोटे से वाक्य में वो सारी जटिल भावनाएँ कहीं खो जाती हैं।इसलिए अगली बार जब आप अपनी किसी भावना को समझने की कोशिश करें, तो याद रखिए कि जो आप सोच रहे हैं, वो सिर्फ ऊपरी परत है। उसके नीचे एक गहरा समुंदर है जो आपके पूरे अनुभव और भावनाओं से भरा हुआ है। यह बात जानना और समझना इसलिए ज़रूरी है ताकि हम खुद को बेहतर समझ सकें और दूसरों की भावनाओं का भी सम्मान कर सकें।
एक बात और जब हमारी सोच और मन किसी हालात या स्थिति के हिसाब से बदलती है, तो इसका मतलब है हम हालात के गुलाम हैं। जैसे अगर कोई परेशानी आ जाए और हम घबरा जाएँ, दुखी हो जाएँ, गुस्सा करने लगें, तो हमारी मनःस्थिति उस परिस्थिति के अनुसार चल रही है। मतलब हालात हमें कंट्रोल कर रहे हैं, हम आज़ाद नहीं हैं। इसे ही परतंत्रता कहते हैं लेकिन जब हमारा मन मज़बूत होता है और हम सोच-समझकर हालात को संभालते हैं, तो हम परिस्थिति को कंट्रोल करते हैं। जैसे ही कोई परेशानी आए, हम घबराने की जगह शांति से हल निकालने की कोशिश करें, तो हमारी मनःस्थिति परिस्थिति पर हावी होती है। यह असली आज़ादी है, इसे ही स्वतंत्रता कहते हैं। असल में ज़िंदगी में हालात तो हमेशा बदलते रहेंगे — अच्छे भी आएंगे, बुरे भी। लेकिन जो इंसान अपने मन को मज़बूत रखता है, वह हालात को संभाल सकता है। जो हालात के हिसाब से अपने आप को बदल लेता है, उसका जीवन दूसरों के हाथ में होता है। इसलिए कोशिश करें कि मन को मज़बूत बनाएं, ताकि हालात चाहे जैसे हों, आप खुद अपने फ़ैसले ले सकें। यही असली आज़ादी है।