लेखक: अब्दुल्लाह मंसूर

बांग्लादेश में कट्टरपंथ का बढ़ता खतरा भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है। हाल के राजनीतिक परिवर्तनों, विशेष रूप से शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद, बांग्लादेश में कट्टरपंथी गतिविधियों में वृद्धि हुई है। शेख हसीना को भारत का समर्थक माना जाता था, और उनके हटने के बाद कट्टरपंथी समूहों को अधिक प्रभावी होने का अवसर मिला है।जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्टरपंथी संगठन हिंदू समुदाय को निशाना बना रहे हैं, जिससे उनकी संपत्तियों को लूटा गया और उनके घरों को आग के हवाले कर दिया गया। इस सामाजिक बहिष्कार के कारण हिंदू समुदाय की आर्थिक और सामाजिक स्थिति कमजोर हो रही है।भारत के लिए यह स्थिति चिंताजनक है क्योंकि बांग्लादेश की अस्थिरता से भारत की सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता पर प्रभाव पड़ सकता है। भारत को बांग्लादेश के साथ अपने संबंधों को बनाए रखने और क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए कूटनीतिक प्रयासों की आवश्यकता है। इस लेख में वर्तमान सत्ता परिवर्तन के बाद बांग्लादेश में कट्टरपंथ के खतरे और इसके भारत पर प्रभावों का विश्लेषण करेंगे।

छात्र आंदोलन

बांग्लादेश में छात्र आंदोलन सरकारी नौकरी के लिए कोटा प्रणाली के खिलाफ शुरू हुआ था। छात्रों का मानना था कि यह प्रणाली भेदभावपूर्ण है और इससे योग्य उम्मीदवारों को नुकसान हो रहा है। इस आंदोलन ने धीरे-धीरे व्यापक रूप ले लिया और देश के विभिन्न हिस्सों में फैल गया। छात्रों ने सड़कों पर उतरकर अपनी मांगों के समर्थन में प्रदर्शन किए।सरकार ने इन विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए सुरक्षा बलों का उपयोग किया। सुरक्षा बलों द्वारा बल का अत्यधिक और अनुचित प्रयोग किया गया, जिसके परिणामस्वरूप कई लोग मारे गए और हजारों घायल हुए। इस कठोर प्रतिक्रिया के कारण आंदोलन हिंसक हो गया और मानवाधिकारों का उल्लंघन हुआ, जिसमें प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अत्यधिक बल प्रयोग और गिरफ्तारी शामिल थी।इस आंदोलन ने बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता को और बढ़ा दिया। सरकार की प्रतिक्रिया और आंदोलन की तीव्रता ने देश में सामाजिक और राजनीतिक तनाव को बढ़ा दिया, जिससे स्थिति और जटिल हो गई। इस प्रकार, छात्र आंदोलन ने बांग्लादेश में गंभीर राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव डाले हैं, जिससे सरकार को चुनौतीपूर्ण स्थिति का सामना करना पड़ा है।

कट्टरपंथ की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

1971 में पाकिस्तान से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, बांग्लादेश का गठन हुआ। इस संघर्ष में धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान की महत्वपूर्ण भूमिका थी। संविधान में धर्मनिरपेक्षता को स्थान दिया गया, लेकिन समय के साथ धार्मिक कट्टरपंथी समूहों ने अपनी पकड़ मजबूत कर ली। 1975 में शेख मुजीबुर रहमान की हत्या के बाद सैन्य शासन के दौर ने धार्मिक कट्टरपंथ को बढ़ावा दिया।बांग्लादेश में कट्टरपंथी संगठनों का प्रभाव केवल हिंसा तक सीमित नहीं है। ये संगठन शिक्षा संस्थानों, विशेष रूप से विश्वविद्यालयों में अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं। युवा वर्ग को कट्टरपंथी विचारधारा की ओर आकर्षित करने के लिए सोशल मीडिया का बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा रहा है।

कट्टरपंथी संगठनों का उदय

1990 के दशक में जमात-ए-इस्लामी और हिज्ब-उत-तहरीर जैसे संगठनों ने धार्मिक भावनाओं का उपयोग कर लोगों को अपने पक्ष में करना शुरू किया। 2013 के शाहबाग आंदोलन के बाद, जब जमात-ए-इस्लामी के नेताओं पर युद्ध अपराधों के आरोप लगे, तो कट्टरपंथी संगठनों ने इसका लाभ उठाया।

शाहबाग आंदोलन का प्रारंभ

शाहबाग आंदोलन की शुरुआत 5 फरवरी 2013 को हुई जब हजारों युवा लोग ढाका के शाहबाग मोर (चौराहा) पर एकत्रित हुए। यह प्रदर्शन बांग्लादेश ऑनलाइन एक्टिविस्ट नेटवर्क (BOAN) के एक्टिविस्ट-ब्लॉगरों के आह्वान पर हुआ था। आंदोलन का मुख्य उद्देश्य 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान युद्ध अपराधों के लिए जिम्मेदार लोगों को न्याय दिलाना था। विशेष रूप से, यह आंदोलन तब शुरू हुआ जब अंतर्राष्ट्रीय युद्ध अपराध न्यायाधिकरण ने जमात-ए-इस्लामी के नेता अब्दुल कादर मोल्ला को आजीवन कारावास की सजा सुनाई, जबकि आंदोलनकारी मौत की सजा की मांग कर रहे थे।

शाहबाग आंदोलन ने जमात-ए-इस्लामी और अन्य कट्टरपंथी संगठनों के लिए एक बड़ा खतरा पैदा किया। जमात-ए-इस्लामी ने आंदोलन के खिलाफ प्रतिक्रिया स्वरूप अपने समर्थकों को लामबंद किया और हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू किए। इन संगठनों ने आंदोलन को इस्लाम और पैगंबर मुहम्मद (PBUH) के खिलाफ बताते हुए इसे बदनाम करने की कोशिश की। उन्होंने आंदोलनकारियों को नास्तिक और इस्लाम विरोधी के रूप में प्रस्तुत किया। शाहबाग आंदोलन ने बांग्लादेश में धर्मनिरपेक्ष और इस्लामी ताकतों के बीच गहरे विभाजन को उजागर किया। इस आंदोलन ने बांग्लादेश की युवा पीढ़ी को राजनीतिक रूप से सक्रिय किया और उन्हें कट्टरपंथ के खिलाफ खड़ा किया। आंदोलन ने यह भी दिखाया कि बांग्लादेश में लोकतांत्रिक मूल्यों और न्याय की मांग के लिए लोग कितने प्रतिबद्ध हैं।

Jamaat-E-Islami

हॉली आर्टिसन बेकरी हमला (2016)

1 जुलाई 2016 की रात को, बांग्लादेश की राजधानी ढाका के गुलशन इलाके में स्थित हॉली आर्टिसन बेकरी पर पांच सशस्त्र हमलावरों ने हमला किया। ये हमलावर असॉल्ट राइफल्स और माचेट्स से लैस थे और उन्होंने रेस्तरां में मौजूद लोगों को बंधक बना लिया। इस हमले में 22 लोग मारे गए, जिनमें से अधिकांश विदेशी थे, जिनमें नौ इटालियन, सात जापानी, एक अमेरिकी और एक भारतीय नागरिक शामिल थे। हमलावरों ने बेकरी में घुसते ही गोलियां चलानी शुरू कर दीं और वहां मौजूद लोगों को बंधक बना लिया। उन्होंने गैर-मुसलमानों की पहचान करने के लिए कुरान की आयतें सुनाने को कहा। जो लोग आयतें नहीं सुना पाए, उन्हें बेरहमी से मार दिया गया। हमले के बाद, बांग्लादेश सरकार ने कट्टरपंथी संगठनों के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान चलाया। इस दौरान 80 से अधिक संदिग्ध आतंकवादी मारे गए और 300 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया।

शेख हसीना का कट्टरपंथी संगठनों पर कड़ा रुख

शेख हसीना की स्थिति बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता के बीच जटिल हो गई है। बांग्लादेश में सेना ने सत्ता पर कब्जा कर लिया है, जिससे शेख हसीना को भारत में शरण लेनी पड़ी। भारत ने शेख हसीना को समर्थन देने का निर्णय लिया है, उन्हें सुरक्षा प्रदान की है और उनके प्रत्यर्पण की मांगों को खारिज कर दिया है। यह निर्णय विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि शेख हसीना को भारत का एक स्थिर सहयोगी माना जाता है।कुछ गुटों ने शेख हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की है, जो भारत विरोधी भावना रखते हैं। भारत ने इन मांगों को नकारते हुए शेख हसीना को समर्थन देने का निर्णय लिया है, जो भारत और बांग्लादेश के बीच घनिष्ठ संबंधों को दर्शाता है। भारत की यह नीति इस बात को रेखांकित करती है कि वह शेख हसीना को एक महत्वपूर्ण सहयोगी के रूप में देखता है, विशेषकर ऐसे समय में जब क्षेत्र में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ रही है।शेख हसीना, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री, ने अपने 15 साल के शासनकाल में कट्टरपंथी संगठनों पर कड़ा रुख अपनाया और कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनका यह रुख बांग्लादेश की सुरक्षा और स्थिरता के लिए महत्वपूर्ण था। यहाँ हम विस्तार से देखेंगे कि शेख हसीना ने कट्टरपंथी संगठनों पर किस प्रकार कार्रवाई की और इसके क्या परिणाम हुए।

शेख हसीना ने अपने शासनकाल में बांग्लादेश में कट्टरपंथी संगठनों के खिलाफ कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनके इन कदमों ने देश में कट्टरपंथी ताकतों की गतिविधियों को काफी हद तक नियंत्रित किया और बांग्लादेश की सुरक्षा और स्थिरता को मजबूत किया।शेख हसीना की सरकार ने जमात-ए-इस्लामी और इसके छात्र संगठन इस्लामी छात्र शिबिर पर प्रतिबंध लगा दिया, इसे आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया। यह निर्णय 2009 के आतंकवाद विरोधी अधिनियम की धारा 18/1 के तहत लिया गया था। जमात-ए-इस्लामी पर यह कार्रवाई उसकी हिंसक गतिविधियों और आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता के कारण की गई थी।2016 में ढाका के हॉली आर्टिसन बेकरी पर हुए हमले के बाद, जिसमें 22 लोग मारे गए थे, शेख हसीना ने आतंकवादियों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई की। इस हमले ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बांग्लादेश की छवि को धूमिल किया और सरकार को कट्टरपंथी संगठनों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए मजबूर किया।

 इसके बाद, बांग्लादेश सरकार ने बड़े पैमाने पर आतंकवाद विरोधी अभियान चलाए, जिसमें 80 से अधिक संदिग्ध आतंकवादी मारे गए और 300 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया।शेख हसीना की सरकार ने जमात-ए-इस्लामी के कई नेताओं को 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान युद्ध अपराधों के लिए दोषी ठहराया और उन्हें फांसी दी। इन न्यायिक कार्रवाइयों ने कट्टरपंथी संगठनों के खिलाफ सरकार की प्रतिबद्धता को दर्शाया। हालांकि, इन कार्रवाइयों ने देश में विरोध प्रदर्शनों और हिंसक झड़पों को भी जन्म दिया।

2013 में, बांग्लादेश के चुनाव आयोग ने जमात-ए-इस्लामी की चुनावी पंजीकरण रद्द कर दी थी, जिससे यह पार्टी राष्ट्रीय चुनावों में भाग लेने से वंचित हो गई। इस निर्णय को बाद में उच्च न्यायालय ने भी बरकरार रखा। इस प्रतिबंध ने जमात-ए-इस्लामी की राजनीतिक गतिविधियों को सीमित कर दिया और इसे चुनावी राजनीति से बाहर कर दिया।शेख हसीना ने कट्टरपंथी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई के लिए बांग्लादेश की सुरक्षा बलों का व्यापक उपयोग किया। उन्होंने पुलिस और सेना को कट्टरपंथी गतिविधियों को रोकने और आतंकवादियों को पकड़ने के लिए तैनात किया। इस दौरान हजारों संदिग्ध आतंकवादियों को गिरफ्तार किया गया और कई आतंकवादी हमलों को विफल किया गया।शेख हसीना की कट्टरपंथी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिश्रित प्रतिक्रियाएं प्राप्त कीं। जबकि कई देशों ने उनकी कार्रवाई की सराहना की, कुछ ने मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगाए।

इसके अलावा, इन कार्रवाइयों ने देश में आंतरिक अस्थिरता को भी बढ़ावा दिया। जमात-ए-इस्लामी और अन्य कट्टरपंथी संगठनों ने सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और हिंसक झड़पें कीं।शेख हसीना ने बांग्लादेश में कट्टरपंथी संगठनों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की, जिससे देश की सुरक्षा और स्थिरता को मजबूत किया गया। हालांकि, इन कार्रवाइयों ने देश में आंतरिक अस्थिरता और अंतरराष्ट्रीय आलोचना को भी जन्म दिया। शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद, बांग्लादेश में कट्टरपंथी संगठनों का खतरा बढ़ गया है, जो भारत और अन्य पड़ोसी देशों के लिए चिंता का विषय है। भारत को इस स्थिति से निपटने के लिए अपनी सुरक्षा नीतियों को मजबूत करना होगा और बांग्लादेश के साथ कूटनीतिक संबंधों को और गहरा करना होगा।

अल्पसंख्यक हिंदुओं पर प्रभाव

  1. हिंसा और उत्पीड़न: शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद हिंदू समुदाय पर हमलों में तेजी आई है। हिंदू घरों, दुकानों और मंदिरों पर हमले हुए हैं। रिपोर्टों के अनुसार, कम से कम 97 स्थानों पर अल्पसंख्यक समुदाय के घरों और दुकानों को निशाना बनाया गया है।
  2. मंदिरों पर हमले: कम से कम 10 हिंदू मंदिरों पर हमले हुए हैं, जिनमें से कई को तोड़फोड़ और आगजनी का सामना करना पड़ा है।
  3. हत्या और हिंसा: बांग्लादेश के दक्षिणी बागेरहाट जिले में एक हिंदू व्यक्ति को पीट-पीट कर मार डाला गया।
  4. महिलाओं पर हमले: महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और हिंसा की घटनाएं भी बढ़ी हैं।

राजनीतिक और सामाजिक अस्थिरता

हिंदू समुदाय को शेख हसीना का समर्थक माना जाता है, और उनके पतन के बाद हिंदुओं को प्रतिशोध का सामना करना पड़ा है। जमात-ए-इस्लामी जैसे कट्टरपंथी संगठन हिंदुओं को निशाना बना रहे हैं। हिंदू समुदाय की संपत्तियों को लूटा गया है और उनके घरों को आग के हवाले कर दिया गया है। सामाजिक बहिष्कार के कारण उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति कमजोर हो रही है।

भारत की चिंताएं

बांग्लादेश में कट्टरपंथ के बढ़ते खतरे से भारत की सुरक्षा चिंताएं बढ़ गई हैं। भारत और बांग्लादेश के बीच लगभग 4,096 किलोमीटर लंबी सीमा है, जो अवैध गतिविधियों के लिए संवेदनशील है। कट्टरपंथी समूह इस सीमा का उपयोग आतंकवादी गतिविधियों के लिए कर सकते हैं, जिससे भारत की आंतरिक सुरक्षा को खतरा हो सकता है। इसके अलावा, बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता का सीधा असर भारत के पूर्वोत्तर राज्यों पर पड़ सकता है। बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों की संख्या में वृद्धि हो सकती है, जिससे सामाजिक और आर्थिक समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।

भारत को इस स्थिति से निपटने के लिए अपनी सीमाओं पर सुरक्षा बढ़ानी होगी और कूटनीतिक स्तर पर बांग्लादेश के साथ सहयोग को मजबूत करना होगा। इसके लिए भारत को सीमा प्रबंधन को सुदृढ़ करना होगा और अवैध गतिविधियों पर कड़ी निगरानी रखनी होगी। साथ ही, बांग्लादेश के साथ संवाद और सहयोग बढ़ाकर दोनों देशों के बीच विश्वास को मजबूत करना आवश्यक होगा, ताकि क्षेत्र में स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

आर्थिक संबंधों पर प्रभाव

भारत और बांग्लादेश के बीच गहरे आर्थिक संबंध हैं, जो दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण हैं। बांग्लादेश भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, और 2023-24 में द्विपक्षीय व्यापार 12.9 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। इन आर्थिक संबंधों की गहराई का कारण दोनों देशों के बीच वस्त्र, कृषि उत्पाद, और अन्य वस्तुओं का व्यापक व्यापार है।हालांकि, बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता और कट्टरपंथ का उदय इन संबंधों को प्रभावित कर सकता है। अगर बांग्लादेश में अस्थिरता बढ़ती है, तो यह व्यापारिक गतिविधियों को बाधित कर सकती है, जिससे दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। विशेष रूप से, भारत के पूर्वोत्तर राज्यों पर इसका सीधा असर हो सकता है, जहां से बांग्लादेश के साथ व्यापारिक मार्ग गुजरते हैं।भारत के लिए यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के बावजूद द्विपक्षीय आर्थिक संबंध प्रभावित न हों। इसके लिए भारत को बांग्लादेश के साथ कूटनीतिक संबंधों को मजबूत करना होगा और व्यापारिक नीतियों को स्थिर रखना होगा। इसके अलावा, भारत को अपनी सीमाओं पर सुरक्षा बढ़ानी होगी ताकि अवैध गतिविधियों और कट्टरपंथी तत्वों के प्रभाव को रोका जा सके।इन प्रयासों से भारत और बांग्लादेश के बीच आर्थिक संबंधों की स्थिरता बनी रह सकती है, जो दोनों देशों के विकास और समृद्धि के लिए आवश्यक है।

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने भी बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों पर चिंता व्यक्त की है। अमेरिकी दूतावास और यूरोपीय संघ के राजनयिकों ने बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों और धार्मिक स्थलों पर हो रहे हमलों की निंदा की है और सभी पक्षों से संयम बरतने की अपील की है।

अमेरिका ने बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता के बीच शेख हसीना के पद छोड़ने और देश छोड़ने के बाद की स्थिति पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। अमेरिकी अधिकारियों ने बांग्लादेश में लोकतंत्र की बहाली और स्थिरता की आवश्यकता पर जोर दिया है। हालांकि, अमेरिका ने हसीना सरकार के दौरान हुई मानवाधिकार हनन की घटनाओं पर सीधे तौर पर कोई कड़ी प्रतिक्रिया नहीं दी है, जिससे कुछ आलोचना भी हुई है।

ब्रिटेन की प्रतिक्रिया भी इसी प्रकार की रही है, जहां उन्होंने बांग्लादेश में स्थिरता और शांति की बहाली की आवश्यकता पर जोर दिया है। ब्रिटेन ने अंतरिम सरकार के गठन का स्वागत किया है और लोकतंत्र की दिशा में बांग्लादेश के प्रयासों का समर्थन किया है। हालांकि, ब्रिटेन ने भी धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा पर कोई विशेष बयान नहीं दिया है, जो कि बांग्लादेश में एक संवेदनशील मुद्दा है।

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की यह मिली-जुली प्रतिक्रिया बांग्लादेश की जटिल राजनीतिक स्थिति और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए उनके महत्व को दर्शाती है। इन प्रतिक्रियाओं से यह स्पष्ट होता है कि वैश्विक शक्तियाँ बांग्लादेश में स्थिरता और लोकतंत्र की दिशा में आगे बढ़ने के प्रयासों का समर्थन कर रही हैं, लेकिन साथ ही मानवाधिकारों के हनन और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा जैसे मुद्दों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है।

बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक ध्रुवीकरण ने भी इस्लामी आतंकवादी समूहों के लिए अनुकूल वातावरण तैयार किया है। सरकार की ओर से आतंकवाद के खिलाफ ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति अपनाई गई है, लेकिन राजनीतिक संघर्ष और सत्ता की होड़ के कारण इन प्रयासों को पूरी तरह से सफल नहीं माना जा सकता। इस्लामी चरमपंथ की वापसी न केवल बांग्लादेश के लिए बल्कि पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र के लिए एक बड़ा खतरा है। बांग्लादेश को अपनी सुरक्षा नीतियों को मजबूत करने और अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता है ताकि इस खतरे को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सके।

बांग्लादेश में कट्टरपंथ का बढ़ता खतरा और राजनीतिक अस्थिरता भारत के लिए गंभीर चिंता का विषय है। भारत को इस स्थिति से निपटने के लिए अपनी सुरक्षा नीतियों को मजबूत करना होगा और बांग्लादेश के साथ कूटनीतिक संबंधों को गहरा करना होगा। इसके अलावा, भारत को बांग्लादेश में लोकतांत्रिक संस्थाओं को समर्थन देने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ मिलकर काम करना चाहिए, ताकि क्षेत्र में स्थिरता बनी रहे और कट्टरपंथी ताकतों का प्रभाव कम हो सके।

अब्दुल्लाह मंसूर लेखक, पसमांदा एक्विस्ट तथा पेशे से शिक्षक हैं। Youtube चैनल Pasmanda DEMOcracy के संचालक भी हैं।

लेखक: अब्दुल्लाह मंसूर