~डॉ कहकशां

‘आडूजीविथम’ एक मलयालम फिल्म है, जिसका निर्देशन ब्लेस्सी ने किया है। यह फिल्म 2024 में रिलीज़ हुई और बेन्यामिन के उपन्यास पर आधारित है। मुख्य भूमिका में पृथ्वीराज सुकुमारन हैं, जो नजीब नामक एक गरीब भारतीय मजदूर का किरदार निभा रहे हैं। अन्य कलाकारों में अमाला पॉल और विनीत श्रीनिवासन भी शामिल हैं। फिल्म का निर्माण अरुण कुमार के केवी एंटरप्राइजेज के तहत हुआ है, और संगीत ए.आर. रहमान ने दिया है।


फिल्म के सिनेमैटोग्राफर के.यू. मोहनन हैं, जिन्होंने खाड़ी के बंजर रेगिस्तानों की कठिनाइयों और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों को बेहतरीन तरीके से कैप्चर किया है। रेगिस्तान के दृश्य बेहद यथार्थवादी हैं और नजीब के अकेलेपन को खूबसूरती से दिखाते हैं। मोहनन ने रेगिस्तान की विशालता और निर्जनता को इस तरह से चित्रित किया है कि दर्शक नजीब के अलगाव और असहायता को महसूस कर सकें। दिन के तपते सूरज और रात की ठंडी हवाओं के बीच का अंतर, रेत के टीलों की लहरें, और दूर तक फैला क्षितिज – ये सभी तत्व मिलकर एक ऐसा माहौल बनाते हैं जो नजीब के संघर्ष को और भी तीव्र बना देता है।


ए.आर. रहमान का संगीत फिल्म की गहराई और उसकी भावना को और भी ऊँचा उठाता है। फिल्म के बैकग्राउंड स्कोर में रहमान का ट्रेडमार्क संगीत सुनाई देता है, जो फिल्म के कठिन क्षणों में प्रभावी होता है। रहमान ने अरबी और भारतीय संगीत के तत्वों को मिलाकर एक ऐसा संगीत तैयार किया है जो नजीब के दो संस्कृतियों के बीच फंसे होने की स्थिति को दर्शाता है। कुछ गीत नजीब के अतीत और उसकी यादों को दर्शाते हैं, जबकि अन्य उसके वर्तमान संघर्ष और आशा की भावना को व्यक्त करते हैं। यह फिल्म प्रवासी मजदूरों की कठोर वास्तविकता, उनके संघर्ष और अस्तित्व की लड़ाई को दर्शाती है। नजीब, एक गरीब भारतीय प्रवासी, बेहतर भविष्य की तलाश में सऊदी अरब जाता है, लेकिन वहां उसे बकरियों का चरवाहा बनने पर मजबूर किया जाता है। यह फिल्म नजीब के संघर्ष और अमानवीय परिस्थितियों में अस्तित्व की कहानी बताती है। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे नजीब धीरे-धीरे अपनी मानवता खोने लगता है, जैसे-जैसे वह रेगिस्तान में अकेला रहता है और बकरियों के साथ अपना समय बिताता है। उसकी भाषा, व्यवहार और सोच में आए बदलाव उसके मानसिक संघर्ष को दर्शाते हैं।


नजीब जैसे लाखों पसमांदा बेहतर भविष्य के लिए खाड़ी देशों का रुख करते हैं। उत्तर प्रदेश के अधिकांश पसमांदा मुस्लिम खाड़ी देशों की ओर रुख करते हैं। फिल्म इस तथ्य को भी उजागर करती है कि कैसे गरीबी और बेरोजगारी लोगों को अपने देश छोड़ने और अनजान देशों में जाने के लिए मजबूर करती है। नजीब का चरित्र उन हजारों युवाओं का प्रतिनिधित्व करता है जो अपने परिवारों की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए विदेश जाते हैं। पसमांदा मुस्लिम परिवार अपने और अपने परिवार के भविष्य को सुधारने के लिए एजेंट और मिडिएटरों को पैसे देकर खाड़ी देशों का वीजा लगवाते हैं। परंतु अशिक्षा और गरीबी के कारण वह अपने घर और परिवार के गहनों को बेचकर सऊदी अरब जाने की कोशिश करते हैं। फिल्म इस प्रक्रिया के दौरान होने वाले शोषण और धोखाधड़ी को भी दिखाती है। कई बार एजेंट झूठे वादे करके लोगों को ठगते हैं, और प्रवासी मजदूर अपनी सारी जमा पूंजी खो देते हैं। सऊदी अरब में उन्हें उनकी काबिलियत या शिक्षा के अनुसार रोजगार नहीं दिया जाता। उन्हें बकरी चराने और रेगिस्तान में रहने पर विवश कर दिया जाता है। फिल्म इस असमानता और अन्याय को बखूबी दिखाती है। नजीब के माध्यम से, हम देखते हैं कि कैसे एक व्यक्ति की आकांक्षाएं और सपने धूल में मिल जाते हैं, जब उसे अपनी योग्यता से कहीं नीचे के काम करने पड़ते हैं।


खाड़ी देशों में ‘कफाला’ प्रणाली प्रवासी मजदूरों के लिए एक बड़ी समस्या है। फिल्म इस प्रणाली के दुष्प्रभावों को बारीकी से दिखाती है। नजीब के अनुभवों के माध्यम से, दर्शक समझ पाते हैं कि कैसे यह प्रणाली मजदूरों को उनके नियोक्ताओं पर पूरी तरह से निर्भर बना देती है, उन्हें उनके मौलिक अधिकारों से वंचित कर देती है। पृथ्वीराज सुकुमारन के अभिनय की विशेष रूप से प्रशंसा की जानी चाहिए। उन्होंने नजीब के चरित्र को इतनी गहराई से निभाया है कि दर्शक उसके दर्द और संघर्ष को महसूस कर सकते हैं। उनका शारीरिक परिवर्तन – वजन घटना, त्वचा का रंग बदलना, और उनकी आंखों में दिखने वाला निराशा का भाव – सभी उनके समर्पण को दर्शाते हैं।


निष्कर्ष में, ‘आडूजीविथम: द गोट लाइफ’ एक ऐसी फिल्म है जो न केवल मनोरंजन करती है, बल्कि एक महत्वपूर्ण सामाजिक मुद्दे पर ध्यान आकर्षित करती है। यह फिल्म दर्शकों को प्रवासी मजदूरों के जीवन के बारे में सोचने के लिए मजबूर करती है और उनके प्रति सहानुभूति जगाती है। यह एक ऐसी कलाकृति है जो लंबे समय तक दर्शकों के मन में रहेगी और उन्हें इस विषय पर और अधिक जानने के लिए प्रेरित करेगी।

डॉ कहकशां वर्तमान में स्वामी श्रद्धांनंद कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में अतिथि (गेस्ट) फैकल्टी के रूप में कार्यरत हैं।

email- kahkashan.hansraj@live.com