लेखक: अब्दुल्लाह मंसूर

  • The Terminal List: Dark Wolf 27 अगस्त 2025 को Amazon Prime Video पर रिलीज़ हुई।
  • कहानी नेवी सील बेन एडवर्ड्स (Taylor Kitsch) पर केंद्रित है, जो सीआईए से जुड़कर युद्ध की सच्चाई से जूझता है।
  • इराक युद्ध, नागरिक मौतों और अमेरिकी हितों पर कोई आलोचनात्मक दृष्टिकोण नहीं दिया गया।
  • “मासूम बच्ची को बचाने” जैसे भावनात्मक तत्व दर्शकों को असली सवालों से भटकाते हैं।
  • विशेषज्ञ इसे मनोरंजन से ज़्यादा सांस्कृतिक प्रोपेगेंडा मानते हैं, जो दर्शकों के अवचेतन में अमेरिकी नैरेटिव बैठाता है।

The Terminal List: Dark Wolf एक अमेरिकी एक्शन थ्रिलर वेब सीरीज़ है, जो Amazon Prime Video पर 27 अगस्त 2025 को रिलीज़ हुई। यह उसी नाम की लोकप्रिय सीरीज़ The Terminal List (2022) का प्रीक्वल है। इसे लेखक जैक कार और डेविड डिगिलियो ने बनाया है। कलाकारों में टेलर किच, क्रिस प्रैट और टॉम हॉप्पर जैसे बड़े नाम शामिल हैं। कहानी का केंद्र नेवी सील बेन एडवर्ड्स (Taylor Kitsch) है, जो ऑपरेशन्स से होते हुए सीआईए से जुड़ता है और युद्ध की सच्चाई तथा उसके मानवीय परिणामों से जूझता है।

सीरीज़ की शुरुआत ही एक परिचित हॉलीवुड पैटर्न पर होती है। अमेरिकी सैनिकों को ऐसे दिखाया गया है जैसे वे मासूमियत और “बचाव” का प्रतीक हों—बंधकों को आतंकवादियों से बचाने के लिए अपनी जान दांव पर लगाते हैं। टेलर किच का किरदार उसी अंदाज़ में आता है: वर्दी में एक नायक, जो इराक़ की धरती पर मानवता का देवदूत बनकर उतरा है। लेकिन इतिहास का सच इससे बिलकुल अलग है। 2003 के बाद अमेरिका ने इराक़ पर युद्ध थोपा, जिसके चलते डेढ़ लाख से अधिक लोग मारे गए और लाखों औरतें व बच्चे तबाह हुए। इस असल त्रासदी का कोई निशान हॉलीवुड के पोस्टरों पर नहीं मिलता। वहां सिर्फ़ “अमेरिकी हीरोइज़्म” चमकता है।

यही प्रोपेगेंडा इस सीरीज़ की बुनियाद है। इतनी सफ़ाई से कहानी बुनी गई है कि दर्शक समझ ही नहीं पाते कि अमेरिका का असली मक़सद हथियारों की खपत और इराक़ी तेल पर क़ब्ज़ा करना था। ‘विनाशकारी हथियारों’ (WMD) का झूठा बहाना बाद में दुनिया के सामने खुल भी गया, मगर फ़िल्मी नरेटिव में ये सवाल कहीं नहीं आता। हॉलीवुड का फॉर्मूला वही है: एक खलनायक खोजना, उसे पूरी तरह “दूसरा” और अजनबी दिखाना, ताकि पश्चिमी सैनिक और एजेंट नायक बन जाएं।

सीरीज़ में “मासूम बच्ची” को बचाने का भावनात्मक जाल भी बुना गया है। लेकिन असली दुनिया में वही अमेरिकी बम और जहाज़ रोज़ाना इराक़, सीरिया और अफ़ग़ानिस्तान में हज़ारों बच्चों की जान ले रहे थे। इस विडंबना का ज़िक्र तक नहीं मिलता। दर्शक सिर्फ़ एक भावुक हीरो को देखता है, असली सवाल पूछना भूल जाता है।

यही बात एडवर्ड सईद ने अपनी मशहूर किताब Culture and Imperialism में कही थी। सईद बताते हैं कि साहित्य, कला और सिनेमा केवल मनोरंजन नहीं होते, बल्कि साम्राज्य की सोच और ताक़त को वैध ठहराने का साधन होते हैं। पश्चिमी रचनाओं में अक्सर यूरोप और अमेरिका को उन्नत दिखाया जाता है, जबकि एशिया, अफ़्रीका और अरब देशों को पिछड़ा, हिंसक और असभ्य बना दिया जाता है। Dark Wolf इसी परंपरा को आगे बढ़ाती है—जहां इराक, ईरान और अरब लगातार आतंकी और अराजक दिखते हैं, और अमेरिकी किरदार मानवता के रक्षक।

यह प्रोपेगेंडा सिर्फ़ कहानी तक सीमित नहीं है। इसका असर सीधा राजनीति और समाज पर पड़ता है। जब अमेरिका इराक़ पर हमला करता है, तब तक मीडिया और फ़िल्में लोगों को इस कदर तैयार कर चुकी होती हैं कि वे इसे जायज़ और नैतिक कदम मानने लगते हैं। दर्शक की चेतना में “अरब किरदार = खलनायक” का भाव बैठ जाता है। हॉलीवुड का यह सॉफ्ट पावर सिर्फ़ यूरोप या एशिया तक सीमित नहीं है, अरब देशों में भी अमेरिकी फ़िल्में और सीरीज़ खूब देखी जाती हैं। इस लिहाज़ से Dark Wolf जैसे शो केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक हथियार हैं, जिनका काम है अमेरिकी सेना और खुफ़िया एजेंसियों को “नैतिक विजेता” बनाना।

आजकल यह प्रोपेगेंडा ईरान के इर्द-गिर्द गढ़ा जा रहा है। ईरान को बार-बार दुनिया का सबसे बड़ा आतंकवादी देश बताने की कोशिश होती है—जैसे वह पूरी विश्व शांति के लिए ख़तरा हो।

आने वाले वर्षों में भी हॉलीवुड और पश्चिमी मीडिया दर्जनों सीरीज़ और फ़िल्में लाने वाले हैं, जो आपके अचेतन मन में यही संदेश बिठाएंगी। इस छवि निर्माण का मक़सद साफ़ है: ईरान की कट्टर सरकार की आलोचना भले ही जायज़ हो, मगर उसी दौरान अमेरिका के मित्र देशों—सऊदी अरब, क़तर, यूएई—में चल रहे राजशाही और मानवाधिकार हनन पर कोई बात नहीं होगी।

सीरीज़ में ईरान के परमाणु समझौते (JCPOA) को भी ख़तरनाक बताया गया है, ताकि इज़रायल का हमला नैतिक लगे। इज़रायली एजेंसियों को ऐसे पेश किया गया है जैसे वे पूरी दुनिया को बचाने वाले हों, जबकि असलियत यह है कि ग़ाज़ा जैसे इलाक़ों पर इज़रायल की सैन्य कार्रवाई ने हज़ारों नागरिकों की जान ली है। अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं तक इसकी निंदा कर चुकी हैं। लेकिन मुख्यधारा मीडिया और सिनेमा इन त्रासदियों पर चुप्पी साध लेते हैं। इसके उलट, ईरान की हर प्रतिक्रिया को “आतंकी” बता दिया जाता है।

इसीलिए The Terminal List: Dark Wolf को महज़ एक सीरीज़ समझना भूल होगी। यह उस वैश्विक प्रोपेगेंडा का हिस्सा है जो सत्ता को वैध ठहराता है और दूसरों को ग़ैर-जिम्मेदार ठहराता है। दर्शक भावनाओं के जाल में फंसकर असली सवालों को भूल जाता है और अंततः अपने “हीरो” के लिए तालियाँ बजाने लगता है। यही इस शो की असली ताक़त और सबसे बड़ी कमज़ोरी है।