आडूजीविथम: द गोट लाइफ...
Posted by Abdullah Mansoor | Oct 12, 2024 | Movie Review | 0 |
पैगंबर मोहम्मद का जीवन: मानवता के लिए एक मार्गदर्श...
Posted by Abdullah Mansoor | Oct 8, 2024 | Biography | 0 |
राष्ट्र निर्माण में शिक्षकों की भूमिका: चुनौतियाँ ...
Posted by Abdullah Mansoor | Sep 7, 2024 | Education and Empowerment | 0 |
क्यों आवश्यक है वक़्फ़ बोर्ड में संशोधन ?...
Posted by Abdullah Mansoor | Sep 2, 2024 | Political, Social Justice and Activism | 0 |
Prophet Muhammad: A Life of Leadership and Teachin...
Posted by Azeem Ahmed | Oct 6, 2024 | Biography | 0 |
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Popularपुस्तक समीक्षा: इस्लाम का जन्म और विकास
by Arif Aziz | May 1, 2024 | Book Review | 0 |
मशहूर पाकिस्तानी इतिहासकार मुबारक अली लिखते हैं कि इस्लाम से पहले की तारीख़ दरअसल अरब क़बीलों का इतिहास माना जाता था। इस में हर क़बीले की तारीख़ और इस के रस्म-ओ-रिवाज का बयान किया जाता था। जो व्यक्ति तारीख़ को महफ़ूज़ रखने और फिर इसे बयान करने का काम करते थे उन्हें रावी या अख़बारी कहा जाता था। कुछ इतिहासकार इस्लाम और मुसलमान में फ़र्क़ करते हैं।
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आडूजीविथम: द गोट लाइफ
by Abdullah Mansoor | Oct 12, 2024 | Movie Review | 0 |
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A Feminist Critique of Zakir Naik’s Views on Women Through an Islamic Lens
by Abdullah Mansoor | Oct 22, 2024 | Movie Review | 0 |
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पैगंबर मोहम्मद का जीवन: मानवता के लिए एक मार्गदर्शक
by Abdullah Mansoor | Oct 8, 2024 | Biography | 0 |
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Top Ratedसामाजिक अस्पृश्यता और बहिष्करण से लड़ती मुस्लिम हलालखोर जाति
by Abdullah Mansoor | Jun 14, 2024 | Casteism, Pasmanda Caste, Social Justice and Activism | 0 |
'हलालखोर' यानी हलाल का खाने वाला, यह सिर्फ एक अलंकार नहीं है बल्कि मुस्लिम समाज में मौजूद एक जाति का नाम है। जिनका पेशा नालों, सड़कों की सफाई करना, मल-मूत्र की सफाई करना, बाजा बजाना, और सूप बनाना है। हलालखोर जाति के अधिकतर व्यक्ति मुस्लिम समाज के सुन्नी संप्रदाय के मानने वाले हैं। यह लोग अपनी मेहनत द्वारा कमाई गई रोटी के कारण हलालखोर कहलाए होंगे। वहीं, कुछ बुद्धिजीवियों का कहना है कि धर्म परिवर्तन के बाद जब इस जाति ने सूअर का गोश्त खाना छोड़ दिया तो इस जाति को हलालखोर के नाम से जाना जाने लगा।
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फिल्म जो जो रैबिट: नाज़ी प्रोपेगेंडा की ताकत और बाल मनोविज्ञान
by Abdullah Mansoor | Jul 17, 2024 | Movie Review, Reviews | 0 |
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वक़्फ़-बोर्ड का काला सच
by Abdullah Mansoor | Sep 19, 2024 | Culture and Heritage, Political | 0 |
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Prophet Muhammad: A Life of Leadership and Teaching
by Azeem Ahmed | Oct 6, 2024 | Biography | 0 |
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LatestA Feminist Critique of Zakir Naik’s Views on Women Through an Islamic Lens
by Abdullah Mansoor | Oct 22, 2024 | Movie Review | 0 |
Naik's visit was further marred by additional controversies, including his refusal to present awards to orphaned girls and his demand for VIP treatment regarding luggage allowance. The incident has led to debates about religious interpretation, women's rights, and the appropriateness of hosting controversial figures as state guests in Pakistan.This controversy highlights the ongoing tensions between conservative religious views and more progressive attitudes towards women's rights and social issues in the country. It also underscores the challenges faced by Muslim women, particularly in India, where they often struggle with issues like conservative societal norms, limited access to education, and economic disadvantages.This article provides a feminist critique of Zakir Naik's controversial views on women from an Islamic perspective.The article concludes by calling for constructive dialogue within the Muslim community to challenge regressive interpretations and promote a more inclusive understanding of Islam that upholds women's rights in accordance with Quranic principles
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आडूजीविथम: द गोट लाइफ
by Abdullah Mansoor | Oct 12, 2024 | Movie Review | 0 |
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पैगंबर मोहम्मद का जीवन: मानवता के लिए एक मार्गदर्शक
by Abdullah Mansoor | Oct 8, 2024 | Biography | 0 |
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Prophet Muhammad: A Life of Leadership and Teaching
by Azeem Ahmed | Oct 6, 2024 | Biography | 0 |
A Feminist Critique of Zakir Naik’s Views on Women Through an Islamic Lens
by Abdullah Mansoor | Oct 22, 2024 | Movie Review | 0 |
Naik’s visit was further marred by additional controversies, including his refusal to present awards to orphaned girls and his demand for VIP treatment regarding luggage allowance. The incident has led to debates about religious interpretation, women’s rights, and the appropriateness of hosting controversial figures as state guests in Pakistan.This controversy highlights the ongoing tensions between conservative religious views and more progressive attitudes towards women’s rights and social issues in the country. It also underscores the challenges faced by Muslim women, particularly in India, where they often struggle with issues like conservative societal norms, limited access to education, and economic disadvantages.This article provides a feminist critique of Zakir Naik’s controversial views on women from an Islamic perspective.The article concludes by calling for constructive dialogue within the Muslim community to challenge regressive interpretations and promote a more inclusive understanding of Islam that upholds women’s rights in accordance with Quranic principles
Read Moreआडूजीविथम: द गोट लाइफ
by Abdullah Mansoor | Oct 12, 2024 | Movie Review | 0 |
‘आडूजीविथम’ एक मलयालम फिल्म है, जिसका निर्देशन ब्लेस्सी ने किया है। यह फिल्म 2024 में रिलीज़ हुई और बेन्यामिन के उपन्यास पर आधारित है। मुख्य भूमिका में पृथ्वीराज सुकुमारन हैं, जो नजीब नामक एक गरीब भारतीय मजदूर का किरदार निभा रहे हैं। अन्य कलाकारों में अमाला पॉल और विनीत श्रीनिवासन भी शामिल हैं। फिल्म का निर्माण अरुण कुमार के केवी एंटरप्राइजेज के तहत हुआ है, और संगीत ए.आर. रहमान ने दिया है।
Read Moreपैगंबर मोहम्मद का जीवन: मानवता के लिए एक मार्गदर्शक
by Abdullah Mansoor | Oct 8, 2024 | Biography | 0 |
इस्लाम का उदय 7वीं शताब्दी में हुआ, जब अरब प्रायद्वीप सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक रूप से अत्यंत दयनीय स्थिति में था। अरब समाज में कबीलाई संघर्ष, बहुदेववाद और नैतिक पतन व्याप्त थे। महिलाओं की स्थिति अत्यंत निम्न थी, और कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाएँ आम थीं। इसी दौर में पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का आगमन हुआ, जिन्होंने समाज में सुधार की नई लहर शुरू की। कुरान कहता है उन्होंने 40 वर्ष की आयु में इस्लाम का संदेश दिया और एकेश्वरवाद, न्याय और समानता के सिद्धांतों का प्रचार किया। उन्होंने मक्का की पृष्ठभूमि में, जहाँ बहुदेववाद और सामाजिक अन्याय ने जड़ें जमा रखी थीं, इस्लाम के रूप में एक नई धार्मिक और सामाजिक व्यवस्था की नींव रखी। उनका उद्देश्य न केवल धार्मिक सुधार था, बल्कि सामाजिक और नैतिक सुधार भी था, जो मानवता के समग्र उत्थान की दिशा में था।
Read MoreProphet Muhammad: A Life of Leadership and Teaching
by Azeem Ahmed | Oct 6, 2024 | Biography | 0 |
~ Dr. Uzma KhatoonDepartment of Islamic Study, A.M.U Before the birth of Prophet Muhammad, the...
Read Moreवक़्फ़-बोर्ड का काला सच
by Abdullah Mansoor | Sep 19, 2024 | Culture and Heritage, Political | 0 |
वक्फ बोर्ड भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है, जिसका अंदाजा इसके कुछ भयावह भूमि घोटालों से लगाया जा सकता है, जैसे कि महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड, जिसने मुकेश अंबानी को मुंबई में स्थित उनके 27 माला अपार्टमेंट ‘इंटालिया’ के लिए 4,535 वर्ग मीटर मुफ्त में प्रदान किया था जो मुम्बई के व्यस्त बाज़ार ‘अल्टा माउंट रोड’ पर स्थित है। इसी तरह बेंगलुरु में 600 करोड़ रुपये से ज्यादा मूल्य का ‘विंडसर होटल’ 12,000 रुपये प्रति माह पर लीज पर दिया गया है। अब अंदाजा लगाया जा सकता है कि 600 करोड़ रुपये से ज्यादा की जमीन महज 12000 रुपये प्रति माह में लीज पर दे दी गई। 12000 तो सिर्फ कागजी कार्रवाई में है। जबकि वक्फ बोर्ड के सदस्यों को इसका कई गुना मासिक काला धन या रिश्वत के रूप में मिलता होगा और ये सभी भ्रष्टाचार अल्लाह के नाम पर किए जाते हैं।
Read Moreवक़्फ़ संशोधन बिल और हमारी ज़िम्मेदारी
by Abdullah Mansoor | Sep 9, 2024 | Culture and Heritage, Political | 0 |
वक़्फ़ की ज़मीन पर जो इक्का-दुक्का निर्माण कार्य किए भी गए हैं तो वह या तो मदरसे हैं या फिर मस्जिद, और वह भी सिर्फ़ पसमांदा (ओबीसी) मुसलमानों को भ्रमित करने के लिए। वास्तव में, यह आम मुसलमानों को भावनात्मक रूप से बेवकूफ़ बनाए रखने की पुरानी अशराफ़िया चाल के अलावा और कुछ नहीं है ताकि पसमांदा मुसलमान शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, समान प्रतिनिधित्व और असमानता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर उन से सवाल न कर सकें क्यों कि मुसलमानों के नाम पर जितने भी संगठन बने हैं, चाहे वह वक़्फ़ बोर्ड हो, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड हो, जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद हो या कोई अन्य संगठन हो, उन पर विदेशी मूल के अशराफ़ मुसलमानों का ही नियंत्रण है। यहां तक कि देश के 21 विश्वविद्यालयों के विभिन्न पदों पर 90% से अधिक इन्ही अशराफ़ मुसलमानों का ही क़ब्ज़ा है।
विदेशी मूल के यह अशराफ़ लोग पसमांदा मुसलमानों को फिर से मूर्ख बनाने के लिए वक़्फ़ की ज़मीन को अल्लाह की ज़मीन बतला रहे हैं ताकि वह अल्लाह के नाम पर अपनी दुकान चलाते रहें और आप सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक इन का बचाव करते रहें। भले ही आप उन अशराफ़ के इस दावे को मान भी लें कि वक़्फ़ की ज़मीन अल्लाह की ज़मीन है तो इस संदर्भ में यह भी देखें कि कुरान कहता है कि पूरी धरती ही अल्लाह ने बनाई है। इस नज़रिए के अनुसार, अशराफ़ वर्ग को पूरी पृथ्वी पर हीअपना दावा कर देना चाहिए, लेकिन नहीं…उन को दूसरों से संबंध भी तो निभाने हैं ताकि दोनों हाथों में लड्डू रहे।
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