Author: Abdullah Mansoor

हॉलीवुड, पश्चिमी मीडिया और ईरान: छवि निर्माण की राजनीति

**100 शब्दों में सारांश (हिंदी में):**

आज की दुनिया में युद्ध केवल हथियारों से नहीं, बल्कि छवियों, फिल्मों और मीडिया के ज़रिए भी लड़े जाते हैं। हॉलीवुड और पश्चिमी मीडिया ने एक वैचारिक “छवि युद्ध” छेड़ा है, जिसमें ईरान जैसे देशों को खलनायक, पिछड़ा और असहिष्णु दिखाया जाता है। *Argo*, *Homeland* जैसी फ़िल्में इस छवि को मज़बूत करती हैं। यह सिर्फ़ मनोरंजन नहीं, बल्कि अमेरिकी सॉफ्ट पावर और वैश्विक जनमत निर्माण की रणनीति है। एडवर्ड सईद के “ओरिएंटलिज़्म” सिद्धांत के अनुसार, पश्चिम अक्सर पूर्व को नीचा दिखाता है। इसलिए जरूरी है कि दर्शक फिल्मों और मीडिया को आलोचनात्मक नजरिए से देखें और सच व प्रचार में फर्क करना सीखें।

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टॉर्चेस ऑफ़ फ्रीडम: जब नारीवादी आंदोलन को पूंजीवाद ने अपने लाभ के लिए इस्तेमाल किया

नारीवादी आंदोलन ने महिलाओं की आज़ादी, बराबरी और आत्मनिर्भरता का सपना देखा था, लेकिन पूंजीवाद ने इस आंदोलन की भावनाओं को उत्पाद बेचने के औज़ार में बदल दिया। “टॉर्चेस ऑफ़ फ्रीडम” जैसे उदाहरण दिखाते हैं कि बाज़ार कैसे आज़ादी के प्रतीकों को मुनाफे के लिए इस्तेमाल करता है। महिलाओं को स्वतंत्रता का भ्रम दिया गया, जबकि वे एक नई उपभोक्ता संस्कृति में फंस गईं। यह समस्या केवल नारीवाद तक सीमित नहीं, बल्कि हर सामाजिक आंदोलन अब बाज़ार के हिसाब से ढाला जा रहा है। असली आज़ादी सोचने, असहमति जताने और विकल्प चुनने की शक्ति में है।

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