कर्बला की विरासत: शियाओं ने अपनी पहचान कैसे बनाई?
डॉ. उज्मा खातून कर्बला की जंग का अंत सिर्फ एक दुखद घटना नहीं था, बल्कि इस्लामी इतिहास का एक गहरा,...
Read MorePosted by Arif Aziz | Jul 29, 2025 | Culture and Heritage, Education and Empowerment, Political |
डॉ. उज्मा खातून कर्बला की जंग का अंत सिर्फ एक दुखद घटना नहीं था, बल्कि इस्लामी इतिहास का एक गहरा,...
Read MorePosted by Arif Aziz | Jul 24, 2025 | Culture and Heritage, Miscellaneous, Political |
~ अब्दुल्लाह मंसूर हाल ही में अमेरिका और इज़रायल ने ईरान की परमाणु संवर्धन स्थलों—फोर्डो, नतान्ज़...
Read MorePosted by Arif Aziz | Jul 21, 2025 | Casteism, Culture and Heritage, Education and Empowerment, Social Justice and Activism |
~Dr. Uzma Khatoon The tragedy of Karbala was not the end—it was the beginning of a new journey in...
Read MorePosted by Arif Aziz | Jul 12, 2025 | Movie Review, Reviews |
~ अब्दुल्लाह मंसूर नेटफ्लिक्स की सीरीज़ ‘घोउल’ डरावनी कहानियों की दुनिया में एक अलग और...
Read MorePosted by Arif Aziz | Jul 8, 2025 | Casteism, Culture and Heritage, Education and Empowerment, Gender Equality and Women's Rights, Pasmanda Caste, Social Justice and Activism |
भारतीय नारीवाद में अक्सर सवर्ण, शहरी महिलाओं की आवाज़ हावी रहती है, जबकि दलित, आदिवासी और पसमांदा औरतों की हकीकतें हाशिए पर धकेल दी जाती हैं। अब्दुल बिस्मिल्लाह का उपन्यास *‘कुठाँव’* मुस्लिम समाज में जाति, वर्ग और लिंग आधारित भेदभाव को उजागर करता है। बहुजन स्त्रियाँ नारीवाद को अपनी ज़मीनी ज़रूरतों—इज़्ज़त, शिक्षा, सुरक्षा और अस्तित्व—के संघर्ष से परिभाषित करती हैं। पायल तडवी की आत्महत्या जैसी घटनाएँ इस असमानता को उजागर करती हैं। लेख समावेशी और न्यायसंगत स्त्री विमर्श की वकालत करता है, जो हर महिला की पहचान, अनुभव और संघर्ष को जगह देता है—सिर्फ़ “चॉइस” नहीं, “इंसाफ़” की लड़ाई के साथ।
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