~ अब्दुल्लाह मंसूर


आज पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के नाम पर जिस तरह के हिंसक कृत्य देखे जा रहे हैं, वे उनके वास्तविक संदेश और जीवन से बिल्कुल विपरीत हैं। वर्तमान में कुछ लोग उनकी निंदा को बहाना बनाकर एक-दूसरे के खिलाफ हथियार उठाते हैं और समाज में अशांति फैलाते हैं, जबकि पैगंबर का जीवन और आचरण हमें सहिष्णुता, दया, और न्याय का मार्ग दिखाता है। इस लेख में हम यह समझने का प्रयास करेंगे कि पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का वास्तविक संदेश क्या था, और आज के मुसलमानों को उनके आचरण से क्या सीखना चाहिए ताकि समाज में शांति और समरसता कायम हो सके।

इस्लाम का उदय और पैगंबर का आगमन
इस्लाम का उदय 7वीं शताब्दी में हुआ, जब अरब प्रायद्वीप सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक रूप से अत्यंत दयनीय स्थिति में था। अरब समाज में कबीलाई संघर्ष, बहुदेववाद और नैतिक पतन व्याप्त थे। महिलाओं की स्थिति अत्यंत निम्न थी, और कन्या भ्रूण हत्या जैसी कुप्रथाएँ आम थीं। इसी दौर में पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का आगमन हुआ, जिन्होंने समाज में सुधार की नई लहर शुरू की। कुरान कहता है उन्होंने 40 वर्ष की आयु में इस्लाम का संदेश दिया और एकेश्वरवाद, न्याय और समानता के सिद्धांतों का प्रचार किया। उन्होंने मक्का की पृष्ठभूमि में, जहाँ बहुदेववाद और सामाजिक अन्याय ने जड़ें जमा रखी थीं, इस्लाम के रूप में एक नई धार्मिक और सामाजिक व्यवस्था की नींव रखी। उनका उद्देश्य न केवल धार्मिक सुधार था, बल्कि सामाजिक और नैतिक सुधार भी था, जो मानवता के समग्र उत्थान की दिशा में था।


सामाजिक न्याय और समानता
पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने समाज में न्याय और समानता की स्थापना के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनके अनुसार, सभी मनुष्य बराबर हैं और केवल उनके कार्यों से ही उनके बीच भेद किया जा सकता है। इस्लाम की शिक्षा में यह बात स्पष्ट रूप से कही गई है कि धन, जाति, धर्म या रंग के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए।
उन्होंने गरीबों, अनाथों और विधवाओं की सहायता पर जोर दिया और जकात की प्रणाली स्थापित की, जिसके माध्यम से धनी लोग अपनी संपत्ति का एक हिस्सा गरीबों के कल्याण के लिए दान करते थे। पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का यह दृष्टिकोण आज भी उतना ही प्रासंगिक है, जब दुनिया असमानता, गरीबी और शोषण से जूझ रही है। यह हमें यह सिखाता है कि हमें समाज में समानता और न्याय को बढ़ावा देने के लिए कैसे कार्य करना चाहिए।


धार्मिक सहिष्णुता और गैर-मुस्लिमों के प्रति व्यवहार
पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का गैर-मुस्लिमों के प्रति व्यवहार सहिष्णुता, दया और न्याय का प्रतीक था। उन्होंने यहूदियों और ईसाइयों के साथ सम्मानपूर्ण व्यवहार किया और उनके धार्मिक स्थलों की सुरक्षा सुनिश्चित की। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि कोई भी गैर-मुस्लिम नागरिक को कष्ट नहीं पहुँचाएगा, और जो ऐसा करेगा, वह स्वर्ग की सुगंध भी नहीं सूंघ पाएगा।

यह दृष्टिकोण आज के समय में भी उतना ही महत्वपूर्ण है, जब दुनिया धार्मिक असहिष्णुता और हिंसा से ग्रस्त है। पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के जीवन से यह सिखा जा सकता है कि कैसे मुसलमानों को अपने गैर-मुस्लिम भाइयों के साथ दया, सहानुभूति और न्याय का व्यवहार करना चाहिए। धार्मिक सहिष्णुता इस्लाम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और इसे अपने जीवन में उतारना हर मुसलमान का कर्तव्य है।


मदीना के संविधान द्वारा स्थापित सामाजिक व्यवस्था
622 ईस्वी में जब पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) और उनके अनुयायियों को मक्का से मदीना हिजरत करनी पड़ी, तो मदीना में एक नई सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था की नींव रखी गई। मदीना का संविधान, जिसे पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने तैयार किया, एक नए राज्य की स्थापना के लिए आदर्श था।
इस संविधान ने विभिन्न धार्मिक समुदायों – मुसलमानों, यहूदियों और बहुदेववादियों – को एक साथ एकजुट किया और सभी समुदायों को अपने-अपने धर्म का पालन करने की स्वतंत्रता दी गई। इसके साथ ही, मदीना की सुरक्षा के लिए सभी समुदायों को जिम्मेदारी दी गई। यह संविधान आज के समय में भी एक मॉडल के रूप में देखा जा सकता है, जहाँ विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक समुदायों के बीच शांति और सहयोग स्थापित किया जा सकता है। उन्होंने इस नए राज्य को धर्मनिरपेक्ष ढांचे में ढालते हुए यहूदियों और अन्य गैर-मुसलमानों को समान अधिकार दिए। यह व्यवस्था उस समय क्रांतिकारी थी, क्योंकि यह न केवल धार्मिक सहिष्णुता को प्रोत्साहित करती थी, बल्कि हर समुदाय को अपने-अपने धार्मिक और सामाजिक मामलों में स्वतंत्रता भी देती थी।


राष्ट्र प्रेम और मक्का की विजय
630 ईस्वी में पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने मक्का पर विजय प्राप्त की, लेकिन इस विजय के बाद भी उन्होंने अपने विरोधियों के प्रति दया और सहिष्णुता का व्यवहार किया। मक्का में प्रवेश करते ही उन्होंने आम माफी की घोषणा की, जिससे उनके महान नेतृत्व और क्षमा भाव का परिचय मिलता है।
यह घटना इस बात का प्रमाण है कि पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कभी भी बदले की भावना से काम नहीं किया। उनके राष्ट्र प्रेम का प्रमाण मदीना के संविधान से भी मिलता है, जहाँ उन्होंने सभी धार्मिक और सामाजिक समूहों को राष्ट्र की सुरक्षा और समृद्धि के लिए एकजुट किया। मदीना के संविधान ने यह सुनिश्चित किया कि सभी धार्मिक और सामाजिक समूह मदीना की सुरक्षा के लिए एकजुट होकर काम करें। चाहे वे यहूदी हों, गैर-मुस्लिम अरब हों या मुसलमान, सभी को मदीना के शत्रुओं से सुरक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी सौंपी गई इसी तरह अगर धार्मिक स्वतंत्रता का पूरा अधिकार हो तो ग़ैर-मुस्लिमों की बहुसंख्यक आबादी वाले देश में नागरिक की हैसियत से और क्षेत्र के आधार पर एक राष्ट्र बन कर भी रह सकते हैं। इन में से कोई बात भी कुरआन और सुन्नत के ख़िलाफ़ नहीं है।कुरान से यह बात पता चलती है कि मुसलमानों का आपसी रिश्ता राष्ट्रीयता (क़ौमियत) का नहीं बल्कि भाईचारे (उख़ूवत) का है। वह राज्यों और बीसों देशों में बंटे रहने बावजूद, ईमान के रिश्ते से एक दूसरे के भाई हैं।


गुलामी प्रथा का उन्मूलन
पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने गुलामी प्रथा के उन्मूलन के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए। हालांकि उस समय गुलामी प्रथा व्यापक थी, उन्होंने गुलामों के साथ दया और सम्मान का व्यवहार किया। उन्होंने कहा कि गुलामों को वही खाना खिलाना चाहिए जो मालिक खाते हैं और उन्हें वही कपड़े पहनाने चाहिए जो मालिक पहनते हैं। उन्होंने गुलामों के साथ विवाह करने को प्रोत्साहित किया, जिससे उनका सामाजिक स्तर ऊपर उठे।उन्होंने कुछ अपराधों के प्रायश्चित के रूप में गुलामों को आजाद करने का प्रावधान किया।उन्होंने युद्ध बंदियों को गुलाम बनाने की प्रथा को सीमित किया और उन्हें मुक्त करने के लिए प्रोत्साहित किया।

हालांकि पैगंबर मुहम्मद ने गुलामी प्रथा को पूरी तरह से खत्म नहीं किया, लेकिन उन्होंने इसे मानवीय बनाने और धीरे-धीरे समाप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए। उनके इन प्रयासों ने गुलामी प्रथा को कम करने और गुलामों की स्थिति में सुधार लाने में मदद की। आज, जब मानवाधिकार और समानता की बात की जाती है, पैगंबर मोहम्मद का दृष्टिकोण हमें यह सिखाता है कि कैसे हमें कमजोर और वंचित लोगों के साथ न्याय और सम्मान का व्यवहार करना चाहिए।

गरीबी उन्मूलन और आर्थिक सुधार
पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के मिशन का एक महत्वपूर्ण पहलू समाज से गरीबी को समाप्त करना और एक न्यायसंगत आर्थिक व्यवस्था स्थापित करना था। उन्होंने ज़कात (अनिवार्य दान) और सदक़ा (स्वैच्छिक दान) जैसी व्यवस्थाएँ स्थापित कीं, जिससे धनी और गरीब के बीच आर्थिक असमानता को कम किया जा सके। ज़कात इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है, जो धनी व्यक्तियों को अपनी संपत्ति का एक हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों के लिए दान करने की अनिवार्यता पर जोर देती है, ताकि समाज में धन का सही ढंग से वितरण हो सके।

इसके अलावा, पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने धन संग्रह करने और कमजोरों का शोषण करने की कड़ी निंदा की। उन्होंने कहा कि वास्तविक धन संपत्ति में नहीं, बल्कि संतोष और उदारता में है। यह सोच आज के पूंजीवादी सिस्टम को चुनौती देती है, जहाँ धन केवल कुछ लोगों के पास केंद्रित होता है। पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के धन वितरण के सिद्धांत को अपनाकर समाज में असमानता को कम किया जा सकता है और गरीबी उन्मूलन की दिशा में कदम बढ़ाए जा सकते हैं।

Muslim Prayer
Muslim Prayer


पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने व्यापार और आर्थिक नीतियों में ईमानदारी और निष्पक्षता पर जोर दिया। उन्होंने ब्याज (रिबा) को निषिद्ध कर दिया और व्यापार में शोषण की निंदा की। उन्होंने जकात और सदका की प्रणाली को स्थापित करके समाज में आर्थिक असमानता को कम करने का प्रयास किया।उन्होंने गरीबों, अनाथों, विधवाओं और कमजोर वर्गों की मदद के लिए बैतुल माल (राज्य कोष) की स्थापना की। इस प्रकार उन्होंने एक समतामूलक समाज का निर्माण किया, जहाँ समाज के हर व्यक्ति की भलाई सुनिश्चित की जा सके।

आज जब दुनिया में गरीबी और आर्थिक असमानता का सामना करना पड़ रहा है, पैगंबर मोहम्मद की आर्थिक शिक्षाएँ न केवल प्रासंगिक हैं, बल्कि आवश्यक हैं। एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना, जहाँ कमजोर और वंचित लोगों की देखभाल की जाए, पैगंबर (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) के मिशन का आदर्श है।


शिक्षा और ज्ञान का महत्व
पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने शिक्षा और ज्ञान की खोज पर अत्यधिक महत्व दिया। उन्होंने कहा, “ज्ञान प्राप्त करना हर मुसलमान पर अनिवार्य है।“ उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ज्ञान मानव विकास और समाज की प्रगति की कुंजी है। कुरान, जो पैगंबर पर प्रकट किया गया, उसमें बार-बार चिंतन, शिक्षा और प्राकृतिक दुनिया को समझने के महत्व का जिक्र किया गया है। पैगंबर स्वयं एक आजीवन शिक्षार्थी थे, जो लगातार ईश्वर से मार्गदर्शन और ज्ञान की तलाश में रहते थे।
उनके नेतृत्व में प्रारंभिक मुस्लिम समुदाय एक प्रमुख शिक्षा केंद्र के रूप में विकसित हुआ। शिक्षा पर दिया गया जोर इस्लाम के स्वर्ण युग की नींव बना, जिसके दौरान मुसलमानों ने विज्ञान, चिकित्सा, गणित, दर्शन और साहित्य के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
आज के समय में, जहाँ शिक्षा व्यक्तिगत और सामाजिक विकास का आधार है, पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की शिक्षा यह याद दिलाती है कि ज्ञान प्राप्त करना एक जिम्मेदारी है। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि शिक्षा का संतुलन बनाए रखना आवश्यक है, जो न केवल सांसारिक ज्ञान बल्कि आध्यात्मिक और नैतिक विकास पर भी ध्यान केंद्रित करता है।

पैगंबर मोहम्मद के पर्यावरणीय नैतिकता
पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सुधारों के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण पर भी जोर दिया। उन्होंने माना कि मनुष्य धरती के संरक्षक हैं और उन्हें इसकी देखभाल की जिम्मेदारी दी गई है। कई हदीसों में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और जानवरों के प्रति दया के महत्व पर जोर दिया गया है। उदाहरण के तौर पर, उन्होंने युद्ध के समय अनावश्यक रूप से पेड़ों को काटने से मना किया और सभी जीवित प्राणियों के प्रति कोमलता का व्यवहार करने की शिक्षा दी।
पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) ने कहा, “पृथ्वी हरी-भरी और सुंदर है, और अल्लाह ने तुम्हें इसका संरक्षक बनाया है।“ यह कथन इस्लामी दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है कि पर्यावरण का संरक्षण कितना आवश्यक है। उन्होंने पानी के संरक्षण पर भी जोर दिया और यहां तक कि वुज़ू (प्रार्थना के लिए हाथ, चेहरा और पैर धोना) करते समय भी पानी की बर्बादी न करने की सलाह दी।


आज जब पर्यावरणीय क्षरण जीवन के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है, पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की शिक्षाएँ हमें याद दिलाती हैं कि पर्यावरण के प्रति हमारी नैतिक जिम्मेदारी है। उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि मनुष्य कैसे पर्यावरण के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन जी सकते हैं, जबकि अपनी आध्यात्मिक और सांसारिक जिम्मेदारियों को पूरा कर सकते हैं।

पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का जीवन नैतिक नेतृत्व की परिवर्तनकारी शक्ति का प्रमाण है। उन्होंने एक ऐसे समाज की नींव रखी जो न्याय, समानता, करुणा और सभी व्यक्तियों के सम्मान पर आधारित था, चाहे उनकी सामाजिक या आर्थिक स्थिति कुछ भी हो। उनके सामाजिक न्याय, राजनीतिक शासन, धार्मिक सहिष्णुता और पर्यावरणीय संरक्षण पर दिए गए उपदेश आज भी महत्वपूर्ण हैं।

जब दुनिया असमानता, गरीबी, धार्मिक असहिष्णुता और पर्यावरणीय संकटों से जूझ रही है, पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) का संदेश पहले से भी अधिक प्रासंगिक है। उनके द्वारा सामुदायिक कल्याण, शिक्षा और न्याय पर दिया गया जोर एक बेहतर, अधिक न्यायपूर्ण दुनिया के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करता है। उनका जीवन लाखों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत बना हुआ है, यह दिखाता है कि विश्वास और कर्म के माध्यम से कैसे सकारात्मक परिवर्तन लाए जा सकते हैं।

मुसलमानों और गैर-मुसलमानों दोनों को पैगंबर मोहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) द्वारा प्रचारित मूल्यों से सीख लेनी चाहिए। उनके सिद्धांतों को अपने व्यक्तिगत और सामाजिक ढांचे में शामिल करके हम एक ऐसा समाज बना सकते हैं जहाँ शांति, न्याय और समानता का शासन हो। उनके दिखाए गए मार्ग पर चलकर हम न केवल अपने समाज को बेहतर बना सकते हैं, बल्कि एक ऐसे विश्व की कल्पना भी कर सकते हैं, जहाँ शांति, न्याय और समानता का माहौल हो।

अब्दुल्लाह मंसूर लेखक, पसमांदा एक्विस्ट तथा पेशे से शिक्षक हैं। Youtube चैनल Pasmanda DEMOcracy के संचालक भी हैं।

लेखक पेशे से शिक्षक है और Youtube के चैनल Pasmanda DEMOcracy के संचालक भी हैं