Category: Culture and Heritage

शोषक और शोषित में एकता… क्या संभव है?

पसमांदा शब्द के लग्वी माने जो भी हो, इस शब्द का एक पोलिटिकल meaning है. पसमांदा शब्द हमसे यह कहता है कि ‘सभी पिछड़ी जातियों एक हो जाओ और अपने मनुवादी शोषक के खिलाफ मोर्चा ले लो!’. पसमांदा शब्द अपने आप में एक revolution है, जब कि किसी जाति का नाम एक ग़ुलामी का प्रतीक, और गुलाम सभी शोषकों को पसंद हैं. पसमांदा शब्द उस आज़ादी का प्रतीक है जो जाति की बेड़ियों से मुक्त होने पर मिलती है.

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डोंट डाई: द मैन हू वांट्स टू लिव फॉरएवर

नेटफ्लिक्स की डॉक्यूमेंट्री “डोंट डाई: द मैन हू वांट्स टू लिव फॉरएवर” देखने के बाद मुझे एक अजीब सा अनुभव हुआ। यह फिल्म ब्रायन जॉनसन नाम के एक अमीर टेक उद्यमी की कहानी है, जो बुढ़ापे और मौत से लड़ने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा रहा है।
जॉनसन साहब की जिंदगी देखकर मुझे लगा कि वो किसी साइंस फिक्शन फिल्म के किरदार हैं। हर दिन वो सैकड़ों गोलियां खाते हैं, अजीब-अजीब मशीनों में घंटों बिताते हैं, और अपने बेटे का प्लाज़्मा भी ले लेते हैं। लेकिन फिर मैंने सोचा कि शायद जॉनसन साहब कुछ ऐसा कर रहे हैं जो हम सब चाहते हैं – लंबी और स्वस्थ जिंदगी जीना। बस फर्क इतना है कि उनके पास करोड़ों रुपये हैं जो वो इस पर खर्च कर सकते हैं।
फिल्म में दिखाया गया कि जॉनसन साहब पहले मोटे और उदास थे। लेकिन अब वो फिट और खुश नजर आते हैं। शायद उनकी कोशिशों का कुछ फायदा हुआ है।

मगर मुझे लगता है कि वो कुछ जरूरी चीजें भूल गए हैं। जैसे परिवार और दोस्तों के साथ वक्त बिताना, जिंदगी का मजा लेना। फिल्म के आखिर में जब उनका बेटा कॉलेज जाता है तो वो रो पड़ते हैं। तब मुझे लगा कि शायद उन्हें अहसास हुआ कि सिर्फ लंबी उम्र काफी नहीं है।
कुल मिलाकर ये फिल्म दिलचस्प थी। इसने मुझे सोचने पर मजबूर किया कि हम अपनी सेहत का ख्याल कैसे रखें, लेकिन साथ ही जिंदगी का लुत्फ भी उठाएं। मुझे लगता है कि हमें जॉनसन साहब जैसा पागलपन नहीं करना चाहिए, लेकिन उनसे कुछ सीख जरूर ले सकते हैं – जैसे अच्छी नींद लेना, सही खाना खाना और एक्सरसाइज करना।

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Urf: The Intersection of Islam and Indian Culture

Urf, an integral concept in Islamic jurisprudence, represents the collective practices and customs recognized as commendable by a society. The term originates from the Arabic root meaning “to know” and embodies the idea of societal knowledge that is both familiar and good. Within the Islamic legal tradition, ‘urf serves as a secondary source of law, subordinate to the Qur’an and Sunnah, but significant in its role as a mediator between divine principles and human contexts. By incorporating beneficial local practices that align with Islamic values, ‘urf allows Islam to adapt to diverse cultural settings without compromising its core tenets. Understanding ‘urf is essential to appreciating how Islam embraces regional customs, particularly in a multicultural society like India.

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Islamic Parenting: Raising Morally Grounded Children

Developing a strong and confident personality in Muslim teens is crucial for their success in both religious and worldly matters. Confidence helps them resist societal pressures, make informed decisions, and take on leadership roles within their communities. Encouraging spiritual growth alongside personal development equips them to navigate life’s challenges while staying true to their faith.

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Blasphemy Laws in Islam: Balancing Faith, Freedom, and Justice

Historically, the concept of blasphemy in Islam is linked to the consolidation of political power. Blasphemy, defined broadly as any action or speech that offends Islamic beliefs, was viewed as a serious offense because it was seen as a threat to the stability of the early Islamic empires. Instances of severe punishments were often tied to cases where political rebellion was involved, as in the Ridda Wars (Wars of Apostasy) following the Prophet Muhammad’s death. This association between blasphemy and rebellion is further supported by the writings of influential scholars like Ibn Taymiyya, who argued that insults against the Prophet Muhammad were destabilizing, warranting harsh penalties to preserve the unity of the Islamic state.

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वक़्फ़-बोर्ड का काला सच

वक्फ बोर्ड भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है, जिसका अंदाजा इसके कुछ भयावह भूमि घोटालों से लगाया जा सकता है, जैसे कि महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड, जिसने मुकेश अंबानी को मुंबई में स्थित उनके 27 माला अपार्टमेंट ‘इंटालिया’ के लिए 4,535 वर्ग मीटर मुफ्त में प्रदान किया था जो मुम्बई के व्यस्त बाज़ार ‘अल्टा माउंट रोड’ पर स्थित है। इसी तरह बेंगलुरु में 600 करोड़ रुपये से ज्यादा मूल्य का ‘विंडसर होटल’ 12,000 रुपये प्रति माह पर लीज पर दिया गया है। अब अंदाजा लगाया जा सकता है कि 600 करोड़ रुपये से ज्यादा की जमीन महज 12000 रुपये प्रति माह में लीज पर दे दी गई। 12000 तो सिर्फ कागजी कार्रवाई में है। जबकि वक्फ बोर्ड के सदस्यों को इसका कई गुना मासिक काला धन या रिश्वत के रूप में मिलता होगा और ये सभी भ्रष्टाचार अल्लाह के नाम पर किए जाते हैं।

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वक़्फ़ संशोधन बिल और हमारी ज़िम्मेदारी

वक़्फ़ की ज़मीन पर जो इक्का-दुक्का निर्माण कार्य किए भी गए हैं तो वह या तो मदरसे हैं या फिर मस्जिद, और वह भी सिर्फ़ पसमांदा (ओबीसी) मुसलमानों को भ्रमित करने के लिए। वास्तव में, यह आम मुसलमानों को भावनात्मक रूप से बेवकूफ़ बनाए रखने की पुरानी अशराफ़िया चाल के अलावा और कुछ नहीं है ताकि पसमांदा मुसलमान शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, समान प्रतिनिधित्व और असमानता जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर उन से सवाल न कर सकें क्यों कि मुसलमानों के नाम पर जितने भी संगठन बने हैं, चाहे वह वक़्फ़ बोर्ड हो, मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड हो, जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद हो या कोई अन्य संगठन हो, उन पर विदेशी मूल के अशराफ़ मुसलमानों का ही नियंत्रण है। यहां तक कि देश के 21 विश्वविद्यालयों के विभिन्न पदों पर 90% से अधिक इन्ही अशराफ़ मुसलमानों का ही क़ब्ज़ा है।

विदेशी मूल के यह अशराफ़ लोग पसमांदा मुसलमानों को फिर से मूर्ख बनाने के लिए वक़्फ़ की ज़मीन को अल्लाह की ज़मीन बतला रहे हैं ताकि वह अल्लाह के नाम पर अपनी दुकान चलाते रहें और आप सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक इन का बचाव करते रहें। भले ही आप उन अशराफ़ के इस दावे को मान भी लें कि वक़्फ़ की ज़मीन अल्लाह की ज़मीन है तो इस संदर्भ में यह भी देखें कि कुरान कहता है कि पूरी धरती ही अल्लाह ने बनाई है। इस नज़रिए के अनुसार, अशराफ़ वर्ग को पूरी पृथ्वी पर हीअपना दावा कर देना चाहिए, लेकिन नहीं…उन को दूसरों से संबंध भी तो निभाने हैं ताकि दोनों हाथों में लड्डू रहे।

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इज़राइल-फिलिस्तीन विवाद: फिलिस्तीन के खिलाफ नरसंहार का आरोप

अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के अध्यक्ष जोन ई. डोनॉग्यू ने कहा, “अदालत इस क्षेत्र में सामने आ रही मानवीय त्रासदी की सीमा से भली-भांति परिचित है और जीवन की निरंतर हानि और मानवीय पीड़ा के बारे में गहराई से चिंतित है।” दक्षिण अफ्रीका ने अदालत से कहा था कि वह इज़राइल से “गाजा में और उसके खिलाफ अपने सैन्य अभियानों को तुरंत निलंबित करने के लिए कहे।” हालांकि, अदालत ने दक्षिण अफ्रीका की याचिका को अस्वीकार कर दिया और युद्धविराम को लेकर कोई आदेश नहीं दिया। दक्षिण अफ्रीका ने ICJ से मांगा है कि ‘अनंतिम उपायों’ (provisional measures) का इस्तेमाल करके इज़राइल को गाज़ा पट्टी में अपराध से रोकने के लिए तत्काल कदम उठाए जाएं। उनका तर्क है कि ‘जेनोसाइड कन्वेंशन’ के तहत फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए अनंतिम उपाय आवश्यक है।

यहां यह समझना महत्वपूर्ण है कि यहूदी विशेषकर इज़रायल राष्ट्र खुद को जनसंहार का विक्टिम बताते आया है, लेकिन अब उस पर जनसंहार करने का आरोप लगा है। भले ही इज़रायल अमेरिकी और अन्य यूरोपीय दोस्तों द्वारा बचा लिया जाए, फिर भी यह उसकी विक्टिमहुड की छवि को पूरी तरह बदल देगा।

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पसमांदा आंदोलन का संक्षिप्त इतिहास

बहुत सालों बाद बाबा कबीर की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए  मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी (1890-1953) ने बाजाब्ता सांगठनिक रूप में एकअंतरराष्ट्रीय संगठन (जमीयतुल मोमिनीन/ मोमिन कांफ्रेंस) की स्थापना किया जो भारत के अलावा नेपाल, श्रीलंका और वर्मा तक फैला हुआ था।

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शहर छोड़ने वाले मजदूरों को पीसने के लिए तैयार है गांव की जातिवादी चक्की

किताब में गाँव को पढ़ने और जानने वालों के लिए गाँव एक ‘स्वर्ग’ है। यह ‘इंद्रलोक’ के सामान है। यह “सद्भाव” और “सहयोग” का संगम है। यह भारत की “आत्मा” है। यह “पश्चिमी सभ्यता” और “मैटेरियलिज़म” का सही विकल्प है। फिर गाँव को “शांति” और “सुख” का पर्यायवाची कहा गया। यह ग़लतफ़ह़मी दरअसल उपनिवेशवादी इतिहासकारों ने फ़ैलाया। लंदन में पढ़े और फिर धोती-धारण करने वाले एक ‘फक़ीर’ ने इसे क़ौमी तह़रीक में सच बताकर प्रचारित किया। इसका इस्तेमाल देशी बनाम विदेशी और राष्ट्रीयता बनाम साम्राज्यवाद की राजनीति के तहत किया गया।

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हर सवाल का सवाल ही जवाब हो

अशराफ अक्सर पसमांदा आंदोलन पर मुस्लिम समाज को बांटने का आरोप लगाकर पसमंदा आंदोलन को कमज़ोर करने की कोशिश करता है। जिसके भ्रम में अक्सर पसमांदा आ भी जाते हैं। जबकि पसमांदा आंदोलन वंचित समाज को मुख्यधारा में लाने की चेष्टा, सामाजिक न्याय का संघर्ष, हक़ अधिकार की प्राप्ती का प्रयत्न है। जिसका किसी भी धर्म से कोई सीधा टकराव नही है। इतिहास साक्षी है कि अशराफ, हमेशा से धर्म का इस्तेमाल अपनी सत्ता और वर्चस्व के लिए करता आ रहा है, और इसमें सफल भी रहा है। अतः उसके लिए यह आरोप लगाना बहुत आसान है। पसमांदा की तरक़्क़ी में सबसे बड़ी बाधा अशराफ ही बना हुआ है जो पसमांदा को धार्मिक और भावनात्मक बातो में उलझा कर उसको उसकी असल समस्यों, रोज़ी रोटी, समाजी बराबरी और सत्ता में हिस्सेदारी से दूर रखते हुए स्वयं को सत्ता के निकट रखना सुनिश्चित किये हुए है। इसलिए पसमांदा को इस धोखे से बाहर निकल कर सामाजिक न्याय की इस लड़ाई में अशराफ के विरुद्ध कमर कसकर खड़ा होना होगा।

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