Category: Culture and Heritage

यहूदी समाज की तरक्की और हमारी पसमांदगी का सबब

यहूदी समाज ने सदियों तक सताए जाने के बावजूद शिक्षा, तर्क और वैज्ञानिक सोच को अपनाकर खुद को आगे बढ़ाया, जबकि मुस्लिम समाज धीरे-धीरे किस्मत और तक़दीर पर भरोसा, धार्मिक तंगदिली और वैज्ञानिक जिज्ञासा से दूरी के कारण पिछड़ गया। यहूदियों ने किताबें और रिसर्च को हथियार बनाया, जबकि मुस्लिम समाज ने सवालों को “फितना” मानकर दबाया। पसमांदा मुसलमानों के लिए यह लेख एक आईना है—सिर्फ नारे नहीं, बल्कि शिक्षा, विकल्प और बराबरी की लड़ाई ही असली रास्ता है।

Read More

सवर्ण केंद्रित नारीवाद बनाम बहुजन न्याय का स्त्री विमर्श

भारतीय नारीवाद में अक्सर सवर्ण, शहरी महिलाओं की आवाज़ हावी रहती है, जबकि दलित, आदिवासी और पसमांदा औरतों की हकीकतें हाशिए पर धकेल दी जाती हैं। अब्दुल बिस्मिल्लाह का उपन्यास *‘कुठाँव’* मुस्लिम समाज में जाति, वर्ग और लिंग आधारित भेदभाव को उजागर करता है। बहुजन स्त्रियाँ नारीवाद को अपनी ज़मीनी ज़रूरतों—इज़्ज़त, शिक्षा, सुरक्षा और अस्तित्व—के संघर्ष से परिभाषित करती हैं। पायल तडवी की आत्महत्या जैसी घटनाएँ इस असमानता को उजागर करती हैं। लेख समावेशी और न्यायसंगत स्त्री विमर्श की वकालत करता है, जो हर महिला की पहचान, अनुभव और संघर्ष को जगह देता है—सिर्फ़ “चॉइस” नहीं, “इंसाफ़” की लड़ाई के साथ।

Read More

हज: आस्था, एकता और बराबरी की एक रूहानी यात्रा

**सारांश (100 शब्दों में):**

हज इस्लाम के पाँच स्तंभों में से एक है, लेकिन यह सिर्फ़ धार्मिक यात्रा नहीं, बल्कि इंसानियत, बराबरी और एकता का प्रतीक है। हर साल लाखों मुसलमान एक जैसी पोशाक में, नस्ल, हैसियत और ज़ुबान से ऊपर उठकर इबादत करते हैं। तवाफ़, सई और अराफात जैसे अमल आत्मसमर्पण, इतिहास और आत्ममंथन का संदेश देते हैं। यह सफ़र सब्र, नम्रता और दूसरों की फिक्र सिखाता है। मैल्कम एक्स जैसे लोगों ने हज के ज़रिए नस्लभेद के खिलाफ नई सोच पाई। हज सिखाता है कि असली पहचान किरदार और नियत में है। यह पूरी इंसानियत को बराबरी और भाईचारे का पैग़ाम देता है।

Read More

समीक्षा: “एडोलेसेंस”, किशोरों की ज़िंदगी और उनकी चुनौतियाँ

लेखक: अब्दुल्लाह मंसूर नेटफ्लिक्स की सीरीज “एडोलेसेंस” एक ऐसी कहानी है जो किशोरों की दुनिया की...

Read More
Loading