Category: Reviews

समीक्षा: The Terminal List: Dark Wolf

Amazon Prime Video पर 27 अगस्त 2025 को रिलीज़ हुई The Terminal List: Dark Wolf लोकप्रिय सीरीज़ The Terminal List का प्रीक्वल है। यह नेवी सील बेन एडवर्ड्स की कहानी है, जो सीआईए से जुड़कर मिशनों और युद्ध की सच्चाई से जूझता है। आलोचकों के अनुसार, शो हॉलीवुड के पुराने फॉर्मूले पर बना है, जिसमें अमेरिकी सैनिकों को नायक और अरब देशों को खलनायक दिखाया जाता है। इसमें इराक युद्ध, नागरिक मौतों और अमेरिकी हितों पर सवाल नहीं उठते, बल्कि दर्शकों को भावनात्मक हीरोइज़्म में उलझा दिया जाता है। विशेषज्ञ इसे मनोरंजन से अधिक सांस्कृतिक प्रोपेगेंडा और पश्चिमी हस्तक्षेप को नैतिक ठहराने का साधन मानते हैं।

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बुनकर : करघे से संघर्ष तक, ताने-बाने में भविष्य की तलाश

बनारसी साड़ी भारत की शान है, लेकिन इसे बुनने वाले अंसारी बुनकर गरीबी और उपेक्षा में जीते हैं। पीढ़ियों से करघों से जुड़ी यह बिरादरी आर्थिक शोषण, सामाजिक भेदभाव और राजनीतिक उपेक्षा झेल रही है। मेहनत के बावजूद उन्हें उचित दाम नहीं मिलता और अशिक्षा व बेरोज़गारी हालात और कठिन बनाते हैं। व्यापारी मुनाफ़ा कमाते हैं, जबकि बुनकर कर्ज़ और भूख से जूझते हैं। राजनीतिक दलों ने भी इनके मुद्दों को कभी गंभीरता से नहीं उठाया। फिर भी उनकी कला विश्वप्रसिद्ध है। पसमांदा आंदोलन उनके सम्मान, शिक्षा और बराबरी की लड़ाई को मजबूती दे रहा है।

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देश की आज़ादी: भारतीय समाज और सिनेमा में विभाजन के दृश्य

15 अगस्त 1947 को मिली आज़ादी के साथ ही भारत ने विभाजन का ज़हर भी झेला। साहित्य और सिनेमा ने इस त्रासदी को दर्ज किया, लेकिन हिंदी फिल्मों में इसका चित्रण अधूरा रहा। शुरुआती दौर की फिल्में सतही रहीं, जबकि गर्म हवा, तमस, पिंजर और मंटो जैसी कृतियों ने कुछ संवेदनशील दृष्टिकोण दिए। फिर भी पसमांदा मुसलमान—जो सबसे अधिक हिंसा, विस्थापन और भुखमरी के शिकार थे—लगभग ग़ायब रहे। सिनेमा ने उन्हें न पीड़ित, न नायक के रूप में स्थान दिया। यदि सिनेमा को सचमुच ऐतिहासिक दस्तावेज़ बनना है, तो उसे पसमांदा समाज की आवाज़ भी सामने लानी होगी।

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बिहार से भारत तक: अब्दुल क़य्यूम अंसारी को भारत रत्न देने का समय

शहनवाज़ अहमद अंसारी उन्होंने बंटवारे का विरोध सत्ता के लिए नहीं, सिद्धांतों के लिए किया।उन्होंने...

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हॉलीवुड, पश्चिमी मीडिया और ईरान: छवि निर्माण की राजनीति

**100 शब्दों में सारांश (हिंदी में):**

आज की दुनिया में युद्ध केवल हथियारों से नहीं, बल्कि छवियों, फिल्मों और मीडिया के ज़रिए भी लड़े जाते हैं। हॉलीवुड और पश्चिमी मीडिया ने एक वैचारिक “छवि युद्ध” छेड़ा है, जिसमें ईरान जैसे देशों को खलनायक, पिछड़ा और असहिष्णु दिखाया जाता है। *Argo*, *Homeland* जैसी फ़िल्में इस छवि को मज़बूत करती हैं। यह सिर्फ़ मनोरंजन नहीं, बल्कि अमेरिकी सॉफ्ट पावर और वैश्विक जनमत निर्माण की रणनीति है। एडवर्ड सईद के “ओरिएंटलिज़्म” सिद्धांत के अनुसार, पश्चिम अक्सर पूर्व को नीचा दिखाता है। इसलिए जरूरी है कि दर्शक फिल्मों और मीडिया को आलोचनात्मक नजरिए से देखें और सच व प्रचार में फर्क करना सीखें।

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टॉर्चेस ऑफ़ फ्रीडम: जब नारीवादी आंदोलन को पूंजीवाद ने अपने लाभ के लिए इस्तेमाल किया

नारीवादी आंदोलन ने महिलाओं की आज़ादी, बराबरी और आत्मनिर्भरता का सपना देखा था, लेकिन पूंजीवाद ने इस आंदोलन की भावनाओं को उत्पाद बेचने के औज़ार में बदल दिया। “टॉर्चेस ऑफ़ फ्रीडम” जैसे उदाहरण दिखाते हैं कि बाज़ार कैसे आज़ादी के प्रतीकों को मुनाफे के लिए इस्तेमाल करता है। महिलाओं को स्वतंत्रता का भ्रम दिया गया, जबकि वे एक नई उपभोक्ता संस्कृति में फंस गईं। यह समस्या केवल नारीवाद तक सीमित नहीं, बल्कि हर सामाजिक आंदोलन अब बाज़ार के हिसाब से ढाला जा रहा है। असली आज़ादी सोचने, असहमति जताने और विकल्प चुनने की शक्ति में है।

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American Gods: आस्था, आधुनिकता और पहचान की जंग

**सारांश (100 शब्दों में):**
*American Gods* एक फैंटेसी सीरीज़ है जो आस्था, पहचान, प्रवास और आधुनिकता जैसे गहरे सवालों को छूती है। यह दिखाती है कि देवता विचार हैं—जिनमें लोगों की आस्था उन्हें शक्ति देती है। जब विश्वास बदलता है, तो देवता भी खो जाते हैं। सीरीज़ में पुराने देवता नई तकनीकी और पूंजीवादी ताक़तों से जूझ रहे हैं। Shadow Moon की यात्रा के माध्यम से यह मिथ, प्रवास और मानवीय रिश्तों की कहानी बन जाती है। इसके संवाद, दृश्य, प्रतीक और संगीत मिलकर इसे केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि एक दार्शनिक अनुभव बनाते हैं—जो दर्शक से सवाल करता है, उत्तर नहीं थोपता।

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MindHunter: अपराधी कैसे सोचते हैं?

MindHunter एक गंभीर और शोधपरक क्राइम ड्रामा है, जो FBI की Behavioral Science Unit की शुरुआत और अपराधियों के मनोविज्ञान की पड़ताल करता है। यह दिखाता है कि कैसे समाज, परिवार और बचपन के आघात अपराध की जड़ बनते हैं। सीरीज़ संवादों, मानसिक द्वंद्व और गहरी सिनेमैटोग्राफी के जरिए अपराध के पीछे छिपे कारणों को उजागर करती है। यह क्रिमिनल प्रोफाइलिंग और ‘सीरियल किलर’ जैसी अवधारणाओं की नींव रखती है। MindHunter मनोरंजन नहीं, बल्कि चेतना जगाता है। यह दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है कि अपराध केवल व्यक्ति की नहीं, पूरे समाज की जिम्मेदारी भी हो सकती है।

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समीक्षा: “एडोलेसेंस”, किशोरों की ज़िंदगी और उनकी चुनौतियाँ

लेखक: अब्दुल्लाह मंसूर नेटफ्लिक्स की सीरीज “एडोलेसेंस” एक ऐसी कहानी है जो किशोरों की दुनिया की...

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