Category: Social Justice and Activism
ज़ोहरान ममदानी: समाजवाद की नई व्याख्या...
Posted by Arif Aziz | Nov 10, 2025 | Culture and Heritage, Political, Social Justice and Activism | 0 |
गाली और आत्मसम्मान: शब्दों में छिपा अस्तित्व का सं...
Posted by Arif Aziz | Nov 3, 2025 | Casteism, Gender Equality and Women's Rights, Movie Review | 0 |
अशराफ़िया अदब को चुनौती देती ‘तश्तरी’:...
Posted by Arif Aziz | Oct 29, 2025 | Book Review, Casteism, Culture and Heritage, Education and Empowerment | 0 |
मक्का चार्टर: इस्लाम की असली सोच की ओर वापसी...
Posted by Arif Aziz | Oct 22, 2025 | Culture and Heritage, Political, Social Justice and Activism | 0 |
कौन थे श्री नियामतुल्लाह अंसारी और क्या था रज़ालत ...
Posted by Arif Aziz | Sep 30, 2025 | Biography, Culture and Heritage, Education and Empowerment, Pasmanda Caste, Social Justice and Activism | 0 |
बिहार 2025: ‘मुस्लिम’ राजनीति से ‘पसमांदा’ दावेदारी तक
by Arif Aziz | Nov 12, 2025 | Casteism, Pasmanda Caste, Political, Social Justice and Activism | 0 |
**सारांश (100 शब्दों में):**
अब्दुल्लाह मंसूर लिखते हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में पसमांदा समाज अब मात्र ‘वोट बैंक’ नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय का ‘गेम चेंजर’ बन चुका है। इस आंदोलन की जड़ें आज़ादी से पहले मोमिन कॉन्फ्रेंस और अब्दुल कय्यूम अंसारी के राष्ट्रवादी संघर्ष में हैं। आज पसमांदा राजनीति रोजगार, शिक्षा और सम्मान की हिस्सेदारी पर केंद्रित है। मंडल युग से उभरी यह चेतना अब भाजपा, जदयू और महागठबंधन सभी को प्रभावित कर रही है। बिहार के 72% मुस्लिम पसमांदा हैं और उनकी नई पीढ़ी अशराफ वर्चस्व को चुनौती देते हुए सामाजिक न्याय और समान प्रतिनिधित्व की राजनीति का नया अध्याय लिख रही है।
ज़ोहरान ममदानी: समाजवाद की नई व्याख्या
by Arif Aziz | Nov 10, 2025 | Culture and Heritage, Political, Social Justice and Activism | 0 |
अब्दुल्लाह मंसूर लिखते हैं कि न्यूयॉर्क के नए मेयर ज़ोहरान ममदानी की जीत अमेरिकी राजनीति में समानता और प्रतिस्पर्धा के नए संतुलन का प्रतीक है। उनका “डेमोक्रेटिक सोशलिज़्म” ऐसा मॉडल पेश करता है जो बाजार की दक्षता को बनाए रखते हुए नागरिकों को राहत और समान अवसर देता है। वे किराया नियंत्रण, सार्वजनिक परिवहन और चाइल्डकेयर जैसी नीतियों को तकनीकी सुधारों और जवाबदेही से जोड़ते हैं। प्रवासी अनुभव से उपजे ममदानी का समाजवाद आर्थिक असमानता मिटाकर नस्ल और धर्म के भेद खत्म करने की कोशिश है—एक ऐसा लोकतांत्रिक समाजवाद जो करुणा और कुशलता, दोनों को साथ लेकर चलता है।
Read Moreगाली और आत्मसम्मान: शब्दों में छिपा अस्तित्व का संघर्ष
by Arif Aziz | Nov 3, 2025 | Casteism, Gender Equality and Women's Rights, Movie Review | 0 |
~अब्दुल्लाह मंसूर गालियाँ हर समाज और हर ज़ुबान में मिलती हैं। उन्हें केवल गुस्से या अपमान का...
Read Moreअशराफ़िया अदब को चुनौती देती ‘तश्तरी’: पसमांदा यथार्थ की कहानियाँ
by Arif Aziz | Oct 29, 2025 | Book Review, Casteism, Culture and Heritage, Education and Empowerment | 0 |
सुहैल वहीद द्वारा संपादित ‘तश्तरी’ उर्दू साहित्य में पसमांदा समाज की आवाज़ को सामने लाने वाला ऐतिहासिक संग्रह है। यह पुस्तक मुस्लिम समाज में सदियों से चले आ रहे जातिगत भेदभाव और उर्दू साहित्य की चुप्पी को चुनौती देती है। अब्दुल्लाह मंसूर बताते हैं कि प्रगतिशील और अशराफ़ लेखक अपने वर्गीय हितों के कारण इस अन्याय पर मौन रहे। ‘तश्तरी’ उन कहानियों का संग्रह है जो इस मौन को तोड़ती हैं, मुस्लिम समाज के भीतर छुआछूत और सामाजिक पाखंड को उजागर करती हैं। यह किताब पसमांदा साहित्यिक आंदोलन की शुरुआत और आत्मसम्मान की लड़ाई का प्रतीक बनती है।
Read Moreमक्का चार्टर: इस्लाम की असली सोच की ओर वापसी
by Arif Aziz | Oct 22, 2025 | Culture and Heritage, Political, Social Justice and Activism | 0 |
मक्का चार्टर (2019) इस्लाम के मूल पैगाम—शांति, बराबरी और सह-अस्तित्व—की पुनःस्थापना है, न कि कोई नया सुधार। यह पैगंबर मुहम्मद के मदीना संविधान से प्रेरित है, जिसने विभिन्न धर्मों और कबीलों को ‘उम्मा’ के रूप में एकजुट किया। 139 देशों के 1200 से अधिक विद्वानों द्वारा स्वीकृत इस चार्टर ने धार्मिक स्वतंत्रता, समान नागरिकता, अतिवाद का विरोध, महिलाओं और युवाओं के सशक्तीकरण, और पर्यावरण की रक्षा पर ज़ोर दिया। यह कुरान व इस्लामी शिक्षाओं पर आधारित एक नैतिक संविधान है जो मुस्लिम दुनिया को एकजुट कर मानवाधिकार, न्याय और दया के सिद्धांतों को आधुनिक संदर्भ में पुनःप्रस्तुत करता है।
Read Moreकौन थे श्री नियामतुल्लाह अंसारी और क्या था रज़ालत टैक्स?
by Arif Aziz | Sep 30, 2025 | Biography, Culture and Heritage, Education and Empowerment, Pasmanda Caste, Social Justice and Activism | 0 |
श्री नियामतुल्लाह अंसारी (1903–1970) स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक न्याय के योद्धा थे। गोरखपुर में जन्मे, उन्होंने गांधीजी के असहयोग आंदोलन से जुड़कर आज़ादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई। वे कांग्रेस और मोमिन कॉन्फ्रेंस के माध्यम से मुस्लिम लीग की विभाजनकारी राजनीति का विरोध करते रहे। उनका सबसे बड़ा योगदान “रज़ालत टैक्स” के खिलाफ़ कानूनी लड़ाई थी, जो पसमांदा मुसलमानों पर थोपे गए अपमानजनक कर का अंत कर गई। 1939 में अदालत ने उनके पक्ष में ऐतिहासिक फ़ैसला दिया। अंसारी ने दबे-कुचले समाज को सम्मान दिलाया और समानता की मशाल जलाकर सामाजिक क्रांति की राह प्रशस्त की।
Read Moreक्या मौलिकता की दुश्मन है हमारी स्कूल व्यवस्था?
by Arif Aziz | Sep 9, 2025 | Education and Empowerment, Social Justice and Activism | 0 |
अब्दुल्लाह मंसूर अपने लेख में स्कूल व्यवस्था की आलोचना करते हैं कि यह बच्चों की मौलिकता और जिज्ञासा को दबा देती है, उन्हें मशीन जैसा बना देती है और औद्योगिक क्रांति के फैक्ट्री मॉडल पर आधारित है। परीक्षा, ग्रेड और अनुशासन के दबाव में बच्चे सोचने और सवाल पूछने की क्षमता खो देते हैं, बस रटंत शिक्षा रह जाती है। वह पाउलो फ्रेरे के “बैंकिंग मॉडल” के विरोध में संवाद आधारित, सोचने-समझने वाली शिक्षा की बात करते हैं। नई शिक्षा नीति (NEP 2020) का समर्थन करते हुए वे कहते हैं कि असली शिक्षा आत्म-खोज, रचनात्मकता, आलोचनात्मक दृष्टि और मानवता के विकास के लिए है, न कि केवल अंकों और नौकरी तक सीमित।[1]
Read Moreदेश की आज़ादी: भारतीय समाज और सिनेमा में विभाजन के दृश्य
by Arif Aziz | Aug 26, 2025 | Movie Review, Reviews, Social Justice and Activism | 0 |
15 अगस्त 1947 को मिली आज़ादी के साथ ही भारत ने विभाजन का ज़हर भी झेला। साहित्य और सिनेमा ने इस त्रासदी को दर्ज किया, लेकिन हिंदी फिल्मों में इसका चित्रण अधूरा रहा। शुरुआती दौर की फिल्में सतही रहीं, जबकि गर्म हवा, तमस, पिंजर और मंटो जैसी कृतियों ने कुछ संवेदनशील दृष्टिकोण दिए। फिर भी पसमांदा मुसलमान—जो सबसे अधिक हिंसा, विस्थापन और भुखमरी के शिकार थे—लगभग ग़ायब रहे। सिनेमा ने उन्हें न पीड़ित, न नायक के रूप में स्थान दिया। यदि सिनेमा को सचमुच ऐतिहासिक दस्तावेज़ बनना है, तो उसे पसमांदा समाज की आवाज़ भी सामने लानी होगी।
Read Moreयहूदी समाज की तरक्की और हमारी पसमांदगी का सबब
by Arif Aziz | Aug 19, 2025 | Culture and Heritage, Education and Empowerment, Political, Social Justice and Activism | 0 |
यहूदी समाज ने सदियों तक सताए जाने के बावजूद शिक्षा, तर्क और वैज्ञानिक सोच को अपनाकर खुद को आगे बढ़ाया, जबकि मुस्लिम समाज धीरे-धीरे किस्मत और तक़दीर पर भरोसा, धार्मिक तंगदिली और वैज्ञानिक जिज्ञासा से दूरी के कारण पिछड़ गया। यहूदियों ने किताबें और रिसर्च को हथियार बनाया, जबकि मुस्लिम समाज ने सवालों को “फितना” मानकर दबाया। पसमांदा मुसलमानों के लिए यह लेख एक आईना है—सिर्फ नारे नहीं, बल्कि शिक्षा, विकल्प और बराबरी की लड़ाई ही असली रास्ता है।
Read MoreThe Journey After Karbala: From Mourning to a Movement
by Arif Aziz | Jul 21, 2025 | Casteism, Culture and Heritage, Education and Empowerment, Social Justice and Activism | 0 |
~Dr. Uzma Khatoon The tragedy of Karbala was not the end—it was the beginning of a new journey in...
Read Moreसवर्ण केंद्रित नारीवाद बनाम बहुजन न्याय का स्त्री विमर्श
by Arif Aziz | Jul 8, 2025 | Casteism, Culture and Heritage, Education and Empowerment, Gender Equality and Women's Rights, Pasmanda Caste, Social Justice and Activism | 0 |
भारतीय नारीवाद में अक्सर सवर्ण, शहरी महिलाओं की आवाज़ हावी रहती है, जबकि दलित, आदिवासी और पसमांदा औरतों की हकीकतें हाशिए पर धकेल दी जाती हैं। अब्दुल बिस्मिल्लाह का उपन्यास *‘कुठाँव’* मुस्लिम समाज में जाति, वर्ग और लिंग आधारित भेदभाव को उजागर करता है। बहुजन स्त्रियाँ नारीवाद को अपनी ज़मीनी ज़रूरतों—इज़्ज़त, शिक्षा, सुरक्षा और अस्तित्व—के संघर्ष से परिभाषित करती हैं। पायल तडवी की आत्महत्या जैसी घटनाएँ इस असमानता को उजागर करती हैं। लेख समावेशी और न्यायसंगत स्त्री विमर्श की वकालत करता है, जो हर महिला की पहचान, अनुभव और संघर्ष को जगह देता है—सिर्फ़ “चॉइस” नहीं, “इंसाफ़” की लड़ाई के साथ।
Read Moreबिहार से भारत तक: अब्दुल क़य्यूम अंसारी को भारत रत्न देने का समय
by Arif Aziz | Jul 1, 2025 | Biography, Movie Review, Pasmanda Caste, Social Justice and Activism | 0 |
शहनवाज़ अहमद अंसारी उन्होंने बंटवारे का विरोध सत्ता के लिए नहीं, सिद्धांतों के लिए किया।उन्होंने...
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