~ अब्दुल्लाह मंसूर
जब हमारे सामने कोई मुश्किल आती है या हम किसी काम में असफल हो जाते हैं, तो अक्सर हम बेचैन हो जाते हैं। हमें लगता है कि हम हार गए हैं और अब शायद कोई रास्ता नहीं बचा है। यह हार की भावना हमें अंदर से तोड़ देती है। लेकिन एक बहुत गहरी बात यह है कि मृत्यु तक, कोई भी हार सिर्फ मानसिक या काल्पनिक होती है। इसका मतलब यह है कि जब तक हमारे जीवन में साँसें हैं, तब तक कोई भी असफलता अंतिम नहीं होती। हम जिस हार को इतना बड़ा और अटल मान लेते हैं, वह असल में हमारे मन की एक सोच मात्र है। असली हार उस दिन नहीं होती जब हम गिरते हैं, बल्कि उस दिन होती है जब हम दोबारा उठने की कोशिश करना ही छोड़ देते हैं।
लेकिन सवाल यह है कि हम इतनी आसानी से हार मान ही क्यों लेते हैं? इसकी दो मुख्य वजहें हैं। पहली, मुश्किल को ठीक से ‘न समझ पाना’। जब हमारे सामने कोई चुनौती आती है, तो हम घबरा जाते हैं क्योंकि हमें यह नहीं समझ आता कि यह परेशानी आई क्यों और इसका हल क्या है। असल में, किसी भी बात को न समझ पाना ही सबसे बड़ी दिक्कत होती है। यह अंधेरे में होने जैसा है; हमें डर लगता है क्योंकि हमें पता नहीं होता कि अगला कदम कहाँ पड़ेगा। यह लाचारी हमें या तो घबराहट में गलत फैसले लेने पर मजबूर करती है, या फिर हम बस हाथ पर हाथ धरे बैठे रह जाते हैं।
हिम्मत हार जाने की दूसरी और शायद इससे भी बड़ी वजह है, अपने ‘मकसद’ का स्पष्ट न होना। यानी, हमारे पास उस काम को करने के लिए कोई मज़बूत ‘क्यों’ (Why) नहीं होता। ज़िंदगी में कामयाबी का रास्ता मुश्किल हो सकता है, मगर नामुमकिन नहीं। जब रास्ता मुश्किल होता है, तो सिर्फ वही लोग आगे बढ़ पाते हैं जिनके पास जलने के लिए ‘मकसद’ का ईंधन होता है। तो फिर इसका हल क्या है? हल भी इन्हीं दो चीज़ों में छिपा है: ‘समझ’ और ‘मकसद’।
सबसे पहला कदम है घबराना बंद करना और स्थिति को समझना। समस्याओं से भागने के बजाय उन्हें समझने की कोशिश करनी चाहिए। एक जासूस की तरह उसकी जड़ तक पहुंचना चाहिए। खुद से पूछें: “असल में हुआ क्या है?” “यह क्यों हुआ?” “इसमें से कितना मेरे बस में है और कितना नहीं?” जब तक हम समझते नहीं, तब तक कोई हल भी नहीं निकलता। लेकिन एक बार सही समझ बन गई, तो मुश्किल आसान हो जाती है।
दूसरा और सबसे ज़रूरी कदम है अपने ‘क्यों’ को खोजना। अपने ‘मकसद’ को समझना बहुत ज़रूरी है। यह आपको मुश्किल वक्त में भी हौसला देगा। अपने आप से पूछें: “मैं यह क्यों कर रहा हूँ?” “यह मेरी ज़िंदगी को कैसे बदलेगा?” इन सवालों के जो जवाब मिलेंगे, वे आपको अपने मकसद के लिए और भी मज़बूत बनाएंगे। अपने मकसद को सिर्फ सोचें नहीं, बल्कि उसे एक कागज़ पर लिखकर रखें और अपनी छोटी-छोटी कामयाबियों की खुशी मनाएं। जब भी आप हार मानने लगें, उस कागज़ को दोबारा पढ़ लें। यह आपको हौसला देगा।
याद रखें, हमारी ज़िंदगी हमारे फैसलों का नतीजा है। इसलिए, अपनी ‘समझ’ और अपने ‘मकसद’ के आधार पर सोच-समझकर फैसले लें। दूसरों की सलाह जरूर लें, लेकिन आखिरी फैसला खुद करें। और हाँ, अपने फैसलों के नतीजों को स्वीकार करना सीखें, चाहे वे अच्छे हों या बुरे। यह आपको और भी मज़बूत और ज़िम्मेदार बनाएगा। ज़िंदगी एक सीखने का सफर है। हर तजुर्बे से कुछ न कुछ सीखें, चाहे वह कामयाबी हो या नाकामी।कामयाबी एक रात में नहीं मिलती। यह एक लंबा सफर है जिसमें सब्र (धैर्य) और लगन (निरंतर प्रयास) की ज़रूरत होती है। हार का अहसास बस एक धुंध है, जो आपकी ‘समझ’ की धूप और ‘मकसद’ की हवा से छँट जाएगा।