लेखक: अब्दुल्लाह मंसूर 

न्यूयॉर्क के नए मेयर ज़ोहरान ममदानी की जीत अमेरिका में आइडियोलॉजी और पहचान, दोनों के संतुलन की कहानी है। यह समाजवाद की वापसी नहीं, बल्कि अमेरिकी राजनीति के सामाजिक चरित्र में बदलाव का संकेत है। युगांडा में जन्मे, भारतीय मूल के इस युवा नेता ने न्यूयॉर्क जैसे वैश्विक शहर को यह सोचने पर मजबूर किया कि विकास का अर्थ सिर्फ़ ऊँची इमारतें नहीं, बल्कि किफ़ायती जीवन भी है। वे “डेमोक्रेटिक सोशलिज़्म” के ऐसे मॉडल की बात करते हैं जो बाजार की ऊर्जा को तो बनाए रखे, लेकिन नागरिक के लिए राहत और समान अवसर भी सुनिश्चित करे। 

 समानता और प्रतिस्पर्धा का नया संतुलन 

ममदानी की राजनीति यह बताती है कि समानता और प्रतिस्पर्धा एक दूसरे के विरोधी नहीं, बल्कि साथ-साथ चल सकते हैं। उनका घोषणापत्र किराया नियंत्रण, मुफ्त सार्वजनिक बसों और यूनिवर्सल चाइल्डकेयर—कोई क्रांतिकारी नारा नहीं, बल्कि जीवन की बुनियादी वास्तविकताओं का जवाब है। न्यूयॉर्क में आबादी का बड़ा हिस्सा किराया चुकाने में आधी से ज्यादा आमदनी खर्च कर देता है। सार्वजनिक परिवहन की लागत गरीब तबके पर अलग बोझ डालती है। ममदानी ने इसे “इस शहर को सस्ता बनाना” कहकर एक ऐसी भाषा में पेश किया जो हर नागरिक की ज़िंदगी से जुड़ी है। 

हालांकि उनके मॉडल को लेकर संदेह भी हैं। इतिहास में सरकार द्वारा संचालित बाजार या “सरकारी स्टोर” जैसे प्रयोग भारत सहित कई देशों में असफल रहे हैं। वहाँ उद्देश्य तो था जरूरतमंदों तक सस्ता सामान पहुँचाना, पर नतीजा बना भ्रष्टाचार, लंबी क़तारें और औसत दर्जे की सेवाएँ। लेकिन ममदानी की स्थिति इस अनुभव से भिन्न है। वे तकनीकी और प्रशासनिक सुधारों को सामाजिक सुरक्षा नीति के साथ जोड़ना चाहते हैं। उदाहरण के तौर पर, वे “इनपुट” की बजाय “परिणामों” को सब्सिडी देने की बात करते हैं। इसका मतलब है कि सरकार सेवा मुफ्त न करे, बल्कि उसके प्रदर्शन पर भुगतान करे जैसे बस कंपनियों को “समय पर तय किलोमीटर” या “पीक आवर्स में सीट उपलब्धता” के आधार पर अनुबंधित किया जाए। सिंगापुर और पेरिस जैसे शहर इस नीति से अधिक कुशल सार्वजनिक परिवहन चला रहे हैं। 

इसी तरह, वे किराया नियंत्रण के सख्त आदेश की जगह “ज़रूरत-आधारित वाउचर” देने की बात करते हैं, ताकि राहत उन्हीं तक पहुंचे जिन्हें वाकई जरूरत है। साथ ही, वे आवास निर्माण को आसान बनाने के लिए टैक्स प्रोत्साहनों और ज़ोनिंग सुधारों की वकालत करते हैं। यह मॉडल दो लक्ष्यों को जोड़ता है—सामाजिक सुरक्षा और बाजार दक्षता। ब्राज़ील का “बोल्सा फ़ैमिलिया” कार्यक्रम, जहाँ जरूरतमंदों को सीधे नकद या डिजिटल वाउचर दिए जाते हैं, इसी सोच का उदाहरण है। 

इस रूप में ममदानी की नीतियाँ “डेमोक्रेटिक सोशलिज़्म” की नई व्याख्या हैं। जहाँ समाज कल्याण के उद्देश्य को तकनीकी नवाचार और जवाबदेही के साथ जोड़ा जाता है। वे समाजवाद को एक “कमान्ड इकॉनमी” नहीं, बल्कि “न्यायपूर्ण बाजार” बनाने का औज़ार मानते हैं। उनका जोर इस बात पर है कि राज्य सब कुछ खुद न करे; बल्कि नागरिक, बाजार और सरकार—तीनों मिलकर कामकाजी नागरिकों के लिए सुरक्षा जाल तैयार करें। 

प्रवासी अनुभव से उपजा न्यायपूर्ण समाजवाद 

इस आर्थिक सोच के पीछे उनका व्यक्तिगत अनुभव भी है। ममदानी उस प्रवासी पीढ़ी से हैं जिसने डोनाल्ड ट्रंप के शासनकाल में नस्लवाद और अप्रवासी-विरोधी माहौल को झेला। उस समय “H-1B वीज़ा समाप्त करने” की बातें की गईं, दक्षिण एशियाई लोगों पर “अमेरिकी नौकरियाँ छीनने” का आरोप लगाया गया। सोशल मीडिया पर उनके लहज़े का मज़ाक उड़ाया गया, मंदिरों पर टिप्पणियाँ हुईं, और उनकी निष्ठा पर सवाल उठे। संदेश साफ़ था, चाहे हम कितना भी योगदान दें, हमें हमेशा बाहरी ही समझा जाएगा। 

ऐसे में ममदानी का संदेश दोहरा है। एक तरफ वे उस व्यवस्था का हिस्सा हैं जिसने प्रवासियों को अवसर दिया, दूसरी तरफ वे उसी व्यवस्था के असमान चेहरों से जूझते हैं। ममदानी जानते हैं कि अप्रवासी “समाजवाद की तलाश में” अमेरिका नहीं आए थे; बल्कि उनमें से कई “समाजवाद से भागकर” आए थे। ममदानी लिए समाजवाद कोई विचारधारा नहीं, बल्कि बराबरी और सम्मान की खोज है। वे मानते हैं कि नस्ल या धर्म का भेद मिटाने के लिए आर्थिक असमानता मिटानी होगी। जब हर नागरिक को रहने, आने-जाने, और बच्चों की शिक्षा की समान सुविधा मिलेगी, तब पहचान की दीवारें अपने आप कमजोर पड़ेंगी। 

लेकिन ममदानी यह भी जानते हैं कि भावनात्मकता से नीति नहीं बनती। उन्होंने बार-बार कहा है कि सामाजिक न्याय के लिए दक्षता को त्यागा नहीं जा सकता। इसलिए वे नीतियों में पारदर्शी परिणामों और तकनीकी समाधान पर जोर देते हैं। उनका लोकतांत्रिक समाजवाद सरकारी नियंत्रण नहीं, सरकारी जवाबदेही चाहता है। उनके आलोचक कहते हैं कि यह मॉडल बहुत आदर्शवादी है, जबकि समर्थक मानते हैं कि यही अमेरिकी लोकतंत्र का अगला चरण है। जहाँ सरकार सिर्फ़ “सहायता देने वाली संस्था” नहीं, बल्कि “समान अवसरों की सुविधा” बने। ममदानी का दृष्टिकोण पूंजीवाद के खिलाफ नहीं है, बल्कि उसके भीतर न्याय का तत्व जोड़ने की कोशिश है। वे बाजार को खत्म करना नहीं चाहते, बस यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि बाजार सभी के लिए समान अवसर बनाए रखे। 

इस संदर्भ में उनका समाजवाद किसी पुराने ढांचे की पुनरावृत्ति नहीं, बल्कि एक मिश्रित मॉडल का संकेत है। जहाँ समाजवाद की संवेदना और पूंजीवाद की गति दोनों साथ चलें। ज़ोहरान ममदानी की राजनीति हमें दिखाती है कि “डेमोक्रेटिक सोशलिज़्म” को अगर पारदर्शिता और तकनीकी दक्षता के साथ जोड़ा जाए, तो वह भावनात्मक नारा नहीं बल्कि व्यवहारिक नीति बन सकता है। वे अपने मतदाताओं को यह एहसास दिला रहे हैं कि समाज सुधार सत्ता के खिलाफ आंदोलन नहीं, बल्कि जिम्मेदार सरकार के भीतर भी संभव है। यही उनके समाजवाद का असली यथार्थ है—एक ऐसा लोकतंत्र जो करुणा और कुशलता, दोनों को साथ लेकर चले। 

अब्दुल्लाह मंसूर, एक लेखक और पसमांदा बुद्धिजीवी हैं। वे ‘पसमांदा दृष्टिकोण’ से लिखते हुए, मुस्लिम समाज में जाति के प्रश्न और सामाजिक न्याय पर केंद्रित हैं।