लेखक: अब्दुल्लाह मंसूर
वक़्फ़ बोर्ड धार्मिक और चैरिटेबल संपत्तियों के प्रबंधन के लिए स्थापित किए गए हैं, जिनका उद्देश्य मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय की भलाई करना है। वक़्फ़ संपत्तियाँ धार्मिक उद्देश्यों के लिए दान की जाती हैं, और उनका सही प्रबंधन सुनिश्चित करना आवश्यक है। लेकिन समय के साथ वक़्फ़ बोर्डों के कामकाज में कई समस्याएँ उभर कर सामने आई हैं, जिनमें वक़्फ़ संपत्तियों का दुरुपयोग और पारदर्शिता की कमी प्रमुख हैं। वक़्फ़ बोर्ड संशोधन अधिनियम का प्रस्ताव इन समस्याओं को हल करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है, जो न केवल संपत्तियों के दुरुपयोग को रोकने में मदद करेगा, बल्कि सामाजिक न्याय को भी सुनिश्चित करेगा। इस संदर्भ में, वक़्फ़ बोर्डों का लोकतांत्रिकरण पसमांदा समाज के लिए भी फायदेमंद साबित हो सकता है।
लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में सुधार की कोई पहल या नई नीति का निर्माण आसान नहीं होता। जब 1853 में अंग्रेजों ने भारत में पहली बार रेल चलाई थी, तो इसका यह कहकर विरोध हुआ था कि लोहे पर लोहा चलाना अपशकुन को निमंत्रण देना है। स्वतंत्र भारत में हिंदू कोड बिल का भी विरोध हुआ, जिससे उसके अमल में देरी हुई।वक्फ अधिनियम में बदलाव की पहल का विरोध अंधविरोध की राजनीति का नया उदाहरण है। विरोध करने वाले वही जाने-पहचाने ओवैसी जैसे अशराफ मुस्लिम नेता और नकली सेक्युलर, लिबरल तत्व हैं। विपक्षी दलों ने इसे ‘असंवैधानिक’ और ‘अल्पसंख्यक विरोधी’ बताया है, और इसे संयुक्त संसदीय समिति को भेजा गया है।
वक़्फ़ संपत्ति क्या है?
वक़्फ़ संपत्तियाँ इस्लामी कानून के तहत धार्मिक, परोपकारी या सामाजिक उद्देश्यों के लिए समर्पित होती हैं। ‘वक़्फ़’ का शाब्दिक अर्थ ‘रोकना’ या ‘स्थिर करना’ है। एक बार कोई संपत्ति वक़्फ़ के रूप में दान कर दी जाती है, तो उसे बेचा, स्थानांतरित, या उपहार में नहीं दिया जा सकता। वक़्फ़ संपत्तियों का उपयोग मस्जिदों, स्कूलों, अस्पतालों, और अन्य सामाजिक कल्याण संस्थानों के लिए किया जाता है। इनका मुख्य उद्देश्य समाज के गरीब और जरूरतमंद वर्गों की सहायता करना है।
वक़्फ़ संपत्तियाँ धार्मिक और शैक्षणिक संस्थानों, गरीब छात्रों के लिए छात्रावास, अनाथालय, और अन्य सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों के लिए उपयोग की जाती हैं। इस्लामी परंपरा में, वक़्फ़ संपत्तियाँ अल्लाह के नाम पर समर्पित मानी जाती हैं और इन्हें धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए स्थायी रूप से उपयोग किया जाता है। भारत में, वक़्फ़ बोर्डों के पास लगभग 8 लाख एकड़ भूमि पर फैली हुई अनुमानित 6 लाख वक़्फ़ संपत्तियाँ हैं, जिनका मूल्य लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपये है। हालांकि, कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार के कारण इन संपत्तियों से प्राप्त होने वाली आय का एक बड़ा हिस्सा अप्रयुक्त रहता है।
वक़्फ़ के प्रकार
वक़्फ़ तीन प्रकार के होते हैं:
- वक़्फ़ खैरात (Charitable Waqf): यह धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए होता है।
- वक़्फ़ आला-उल-अलाद (Family Waqf): यह परिवार के लाभ के लिए होता है।
- वक़्फ़ मुअल्ला (Combined Waqf): यह परिवार और धर्मार्थ दोनों उद्देश्यों के लिए होता है।
वक़्फ़ बोर्ड की ऐतिहासिक यात्रा
वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में औपनिवेशिक काल से आधुनिक समय तक कई महत्वपूर्ण बदलाव हुए हैं, जिनका भारतीय समाज और राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा है। ब्रिटिश शासन के दौरान वक्फ संपत्तियों को लेकर कई विवाद उठे। 19वीं शताब्दी के अंत में, इन्हें “सबसे हानिकारक प्रकार की स्थायित्व” मानकर अमान्य घोषित कर दिया गया था, लेकिन 1913 में मोहम्मद अली जिन्ना के प्रयास से वक्फ वैधता अधिनियम ने वक्फ संस्था को बचा लिया। उस समय वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन मुख्य रूप से काजियों द्वारा किया जाता था।
स्वतंत्रता के बाद वक्फ बोर्डों और भारतीय सरकार के बीच संबंध जटिल और बहुआयामी रहे हैं। वक्फ बोर्डों का गठन मुस्लिम धार्मिक और परोपकारी संपत्तियों के प्रबंधन के लिए किया गया, और इन्हें भारतीय संविधान के तहत विशेष कानूनी अधिकार प्राप्त हैं। वक्फ अधिनियम 1954 और 1995 में संशोधित अधिनियम ने वक्फ बोर्डों को संपत्ति के स्वामित्व और प्रबंधन में महत्वपूर्ण शक्तियाँ प्रदान कीं। सरकार ने वक्फ बोर्डों को समर्थन देने के लिए संपत्तियों की सुरक्षा के लिए कड़े कानून भी बनाए हैं, हालांकि वक्फ बोर्डों के कार्यों पर सरकारी नियंत्रण और निगरानी भी बनी रहती है, खासकर जब संपत्ति के दावे विवादास्पद होते हैं। इसी प्रकार वक्फ बोर्ड एक कानूनी इकाई है जो संपत्ति अर्जित करने, उसे रखने और हस्तांतरित करने में सक्षम है। यह मुकदमा करने और न्यायालय में मुकदमा किये जाने दोनों में सक्षम है।
वक़्फ़ अधिनियम में संशोधन
2013 के वक़्फ़ अधिनियम संशोधनों के तहत, वक़्फ़ संपत्तियों पर अतिक्रमण के लिए सजा का प्रावधान किया गया और वक़्फ़ संपत्तियों की बिक्री, उपहार, विनिमय, बंधक, या हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगाया गया। इन संशोधनों ने वक़्फ़ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन के उपाय पेश किए, और वक़्फ़ बोर्डों में कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार की समस्याओं को हल करने की कोशिश की। इसके अलावा, वक़्फ़ संपत्तियों से जुड़े विवादों को सुलझाने के लिए वक़्फ़ ट्रिब्यूनल की स्थापना की गई, जो संपत्तियों पर दावे, अतिक्रमण, और प्रबंधन से जुड़े मामलों का निपटारा करता है।
सुप्रीम कोर्ट के 2023 के निर्णय के अनुसार, किसी संपत्ति को वक़्फ़ घोषित करने से पहले दो सर्वेक्षण आवश्यक हैं, जो संपत्ति की स्थिति, उपयोग और स्वामित्व की पुष्टि करते हैं। इन प्रक्रियाओं का उद्देश्य वक़्फ़ संपत्तियों की घोषणा में पारदर्शिता और कानूनी शुद्धता सुनिश्चित करना है।
वक़्फ़ बोर्ड में सुधार की आवश्यकता
वक्फ संपत्तियों पर सरकार का ध्यान अचानक क्यों गया?वक्फ बोर्ड देश के तीसरे सबसे बड़े भूस्वामी हैं, जिनके पास लगभग 8.7 लाख संपत्तियाँ हैं। इतनी बड़ी संपत्ति का प्रबंधन एक बड़ी जिम्मेदारी है।कुछ आरोप हैं कि वक्फ संपत्तियों का दुरुपयोग और कुप्रबंधन हो रहा है। इसमें अवैध कब्जे, संपत्तियों की बिक्री, किराए की कम वसूली आदि शामिल हैं।सरकार का कहना है कि वे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाना चाहती है। इसके लिए डिजिटलीकरण, ऑडिट और नियमित निगरानी जरूरी है।कुल मिलाकर देशभर में वक्फ संपत्तियों से संबंधित लगभग 40,000 से अधिक मामले विभिन्न अदालतों में लंबित हैं। इतने मामलों का लंबित होना चिंता का विषय है।
तिरुचेंदुरई गाँव, तमिलनाडु में वक्फ अधिनियम का प्रभाव इस प्रकार है कि गाँके निवासियों को अपनी भूमि बेचने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। दस्तावेज़ के अनुसार, जब गाँव के निवासी अपनी ज़मीन बेचने का प्रयास करते हैं, तो उन्हें पता चलता है कि उनकी ज़मीन तमिलनाडु वक्फ बोर्ड की संपत्ति के रूप में घोषित की गई है। इस कारण, ज़मीन की बिक्री के लिए उन्हें वक्फ बोर्ड से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) प्राप्त करना आवश्यक होता है।
यह स्थिति तब उत्पन्न हुई जब तिरुचिरापल्ली के उप-पंजीयक को एक प्रमाण पत्र प्राप्त हुआ जिसमें दावा किया गया कि तिरुचेंदुरई गाँव के लगभग 480 एकड़ भूमि तमिलनाडु वक्फ बोर्ड की है। इस दावे ने गाँव में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन को जन्म दिया, क्योंकि यह दावा न केवल निवासियों के लिए, बल्कि गाँव में स्थित 1,500 साल पुराने सुंदरेश्वरर मंदिर के लिए भी चौंकाने वाला था, जिसे भी वक्फ संपत्ति के रूप में घोषित किया गया था। इस स्थिति ने गाँव में बेचैनी का माहौल पैदा कर दिया है, क्योंकि निवासियों को अपनी संपत्ति के अधिकारों को लेकर अनिश्चितता का सामना करना पड़ रहा है। वक्फ अधिनियम के तहत, एक बार संपत्ति वक्फ घोषित हो जाने पर, वह हमेशा वक्फ संपत्ति बनी रहती है और इसे वापस मूल मालिक को नहीं सौंपा जा सकता है। इस प्रकार, वक्फ अधिनियम ने तिरुचेंदुरई गाँव में भूमि बिक्री को जटिल और विवादास्पद बना दिया है।
वक्फ बोर्ड की संपत्तियों पर आमतौर पर सियासी और मजहबी रसूख वाले नेता कब्जा रखते हैं। वे उसकी संपत्तियों का दुरुपयोग ही नहीं करते, बल्कि उन पर कब्जे कराने के साथ उन्हें बेचते भी हैं। प्रयागराज में वक्फ की 50 करोड़ से अधिक की जमीन पर माफिया अतीक अहमद का कब्जा था। दिल्ली की जामा मस्जिद वक़्फ़ की ज़मीन है और उसपर इमाम का कब्ज़ा जग ज़ाहिर है। वक्फ बोर्ड के पास देश भर में सेना और रेलवे के बाद सबसे अधिक संपत्तियां हैं, लेकिन किसी को और कम से कम पसमांदा मुसलमानों को नहीं पता कि उनसे उन्हें क्या लाभ मिल पा रहा है। वक्फ संपत्तियों का पसमांदा मुस्लिम समाज की भलाई के लिए सदुपयोग होना चाहिए।
वक़्फ़ बोर्डों की आलोचना
वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में कई समस्याएं हैं, जिनमें कुप्रबंधन, भ्रष्टाचार, अतिक्रमण, और कानूनी विवाद प्रमुख हैं। वक्फ बोर्डों में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी के कारण संपत्तियों का सही उपयोग नहीं हो रहा, जिससे समुदाय की संभावित आय का नुकसान हो रहा है।
वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और निगरानी पर कई आलोचनाएँ की जाती हैं, जो निम्नलिखित बिंदुओं पर केंद्रित हैं:
कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार: वक्फ बोर्डों के प्रबंधन में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी के कारण कुप्रबंधन और भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। वक्फ संपत्तियों का सही ढंग से उपयोग नहीं हो रहा है, जिससे समुदाय के कल्याण के लिए संभावित आय का नुकसान हो रहा है।
अतिक्रमण और कानूनी विवाद: वक्फ संपत्तियों पर व्यापक अतिक्रमण की समस्या है, और इन संपत्तियों के स्वामित्व को लेकर कई कानूनी विवाद लंबित हैं। यह स्थिति वक्फ बोर्डों की संपत्तियों की सुरक्षा और प्रबंधन में विफलता को दर्शाती है।
सरकारी हस्तक्षेप और स्वायत्तता का ह्रास: वक्फ बोर्डों की स्वायत्तता पर सरकारी हस्तक्षेप की आलोचना की जाती है। सरकार द्वारा प्रस्तावित संशोधनों में वक्फ बोर्डों में गैर-मुसलमानों को शामिल करने और सरकारी संपत्तियों को वक्फ घोषित करने से रोकने के प्रयास शामिल हैं, जिससे वक्फ बोर्डों की स्वतंत्रता कम होती है।
प्रक्रियात्मक जटिलताएँ: वक्फ संपत्तियों की घोषणा और प्रबंधन में कानूनी और प्रशासनिक प्रक्रियाएँ जटिल हैं, जिससे संपत्तियों के सही प्रबंधन में बाधाएँ उत्पन्न होती हैं। यह स्थिति वक्फ बोर्डों के कार्यों को और अधिक जटिल बनाती है।
समुदाय के अधिकारों का उल्लंघन: कुछ आलोचक मानते हैं कि वक्फ अधिनियम और उसके प्रबंधन में किए गए संशोधन मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं और उन्हें हाशिए पर धकेलते हैं।
इन आलोचनाओं से स्पष्ट होता है कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में कई चुनौतियाँ हैं, जिनका समाधान करने के लिए पारदर्शिता, जवाबदेही, और समुदाय की भागीदारी आवश्यक है।
वक्फ अधिनियम (संशोधन विधेयक), 2024 में मुख्य संशोधन क्या हैं?
2024 वक़्फ़ (संशोधन) विधेयक का मुख्य उद्देश्य वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन और सुरक्षा में सुधार करना है। इसमें वक़्फ़ संपत्तियों पर अवैध कब्जे को रोकने और महिलाओं और गैर-मुस्लिमों को वक़्फ़ बोर्ड में शामिल करने जैसे सकारात्मक बदलाव शामिल हैं।
पारदर्शिता: विधेयक में मौजूदा वक्फ अधिनियम में लगभग 40 संशोधनों की रूपरेखा दी गई है, जिसमें पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये वक्फ बोर्डों को सभी संपत्ति दावों हेतु अनिवार्य सत्यापन से गुजरना होगा। वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में अधिक पारदर्शिता लाने की आवश्यकता है। इसके लिए डिजिटलीकरण और जीआईएस मैपिंग जैसे तकनीकी उपायों का उपयोग किया जा सकता है।
सामाजिक न्याय : वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 9 और 14 में संशोधन किया जाएगा ताकि वक्फ बोर्ड की संरचना और कार्यप्रणाली को संशोधित किया जा सके, जिसमें महिला और पसमांदा मुसलमानों का प्रतिनिधियों को शामिल करना भी शामिल है।
गैर-मुसलमानों का समावेश: एक विवादास्पद प्रस्ताव यह है कि वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुसलमानों को शामिल किया जाए। कुछ लोगों ने इसे धार्मिक स्वायत्तता पर अतिक्रमण के रूप में देखा है, लेकिन सरकार का तर्क है कि यह समावेशिता और बेहतर शासन की दिशा में एक कदम है।
संशोधित सत्यापन प्रक्रियाएँ: विवादों को सुलझाने और दुरुपयोग को रोकने के लिये वक्फ संपत्तियों के लिए नई सत्यापन प्रक्रियाएँ शुरू की जाएंगी, तथा ज़िला मजिस्ट्रेट संभवतः इन संपत्तियों की देख-रेख करेंगे। वक्फ संपत्तियों की घोषणा के लिए अधिक कठोर और पारदर्शी प्रक्रियाओं की आवश्यकता है। सुप्रीम कोर्ट के 2023 के निर्णय के अनुसार, केवल अधिसूचना जारी करना पर्याप्त नहीं है।
सीमित शक्ति: ये संशोधन वक्फ बोर्डों (Waqf Boards) की अनियंत्रित शक्तियों के बारे में चिंताओं का जवाब देते हैं, जिसके कारण व्यापक भूमि पर वक्फ का दावा किया जा रहा है, जिससे विवाद और दुरुपयोग के दावे हो रहे हैं। बोर्डों की शक्तियों पर उचित न्यायिक निगरानी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है, ताकि संवैधानिक मूल्यों और व्यक्तिगत अधिकारों का उल्लंघन न हो।
वक्फ संशोधन पर मुस्लिम पक्ष की मुख्य आशंकाएं और उनके समाधान निम्नलिखित हैं:
विपक्षी दलों ने इस संशोधन का विरोध किया है, लेकिन सरकार का दावा है कि यह मुस्लिम समुदाय के हित में है। वक्फ बोर्ड की संपत्तियों का सही प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने जिला मजिस्ट्रेटों को निगरानी में शामिल करने का विचार किया है। प्रस्तावित बिल में वक्फ बोर्ड की शक्तियों को सीमित करने की बात है, जिससे अन्य धर्मों के लोगों को भी बोर्ड में शामिल किया जा सकेगा.इस मुद्दे को dसांप्रदायिक बनाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन सरकार का कहना है कि यह कदम मुस्लिम समुदाय के व्यापक हित में है। यहाँ मुस्लिम समाज की कुछ आशंकाओं को हम देख सकते हैं:-
- वक्फ संपत्ति का निजीकरण: मुसलमानों को यह चिंता है कि संशोधन के बाद वक्फ संपत्तियों का निजीकरण हो सकता है। समाधान के लिए सरकार को स्पष्ट करना चाहिए कि वक्फ संपत्तियों का निजीकरण नहीं होगा और इन्हें धार्मिक और सामुदायिक उद्देश्यों के लिए सुरक्षित रखा जाएगा.
- वक्फ बोर्डों की स्वायत्तता की कमी: वक्फ बोर्डों की स्वायत्तता में कमी की आशंका है। इस समस्या का समाधान यह हो सकता है कि सरकार वक्फ बोर्डों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए स्पष्ट नियम बनाए और राजनीतिक हस्तक्षेप को कम करे.
- वक्फ संपत्ति का दुरुपयोग: वक्फ संपत्तियों के दुरुपयोग की आशंका को दूर करने के लिए सरकार को सख्त निगरानी और पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए, जिससे संपत्तियों का उपयोग सही उद्देश्यों के लिए हो.
- पसमांदा प्रतिनिधित्व की अनिवार्यता: वक़्फ़ बोर्ड में पसमांदा मुसलमानों का अनिवार्य प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो, विशेष रूप से उन राज्यों में जहां उनकी जनसंख्या अधिक है।: पसमांदा समुदाय, जो मुस्लिम समाज के पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व करता है, वक्फ बोर्ड में अधिक समावेशिता और सामाजिक न्याय की मांग कर रहा है। इस विधेयक का उद्देश्य मुस्लिम समाज के अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के साथ-साथ अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के सदस्यों को भी वक्फ बोर्ड का सदस्य बनाने की अनिवार्यता तय करना है, जिससे समाज में व्यापक सामाजिक न्याय सुनिश्चित हो केंद्रीय और राज्य वक़्फ़ बोर्ड में पसमांदा मुसलमानों के लिए आरक्षित सीटें सुनिश्चित की जाएं, ताकि वे निर्णय लेने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग ले सकें।
- वक्फ संपत्ति का सर्वेक्षण और पंजीकरण: वक्फ संपत्तियों के सर्वेक्षण और पंजीकरण की प्रक्रिया को पारदर्शी और निष्पक्ष बनाना चाहिए ताकि उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके.
- प्रशासनिक भूमिकाओं में शामिल करना: वक़्फ़ संपत्तियों के प्रशासन और निगरानी में पसमांदा मुसलमानों को भी शामिल किया जाए, पसमांदा समुदाय के प्रतिनिधियों को प्रशासनिक समितियों में शामिल किया जाए।ताकि उनकी भागीदारी और नियंत्रण सुनिश्चित हो सके।
- पसमांदा-विशिष्ट आर्थिक और सामाजिक परियोजनाएं: वक़्फ़ संपत्तियों से उत्पन्न आय का एक हिस्सा पसमांदा मुसलमानों के विकास, जैसे छात्रवृत्ति, स्वास्थ्य सेवाएं, और आवास योजनाओं पर खर्च हो।
- पसमांदा मुतवल्ली की नियुक्ति: वक़्फ़ संपत्तियों के प्रबंधन के लिए पसमांदा समुदाय के व्यक्तियों को मुतवल्ली नियुक्त किया जाए, ताकि उनके नेतृत्व में भी भूमिका सुनिश्चित हो सके
इन समाधानों के माध्यम से वक्फ संशोधन पर मुस्लिम समुदाय की आशंकाओं को कम किया जा सकता है।
वक़्फ़ बोर्ड में सुधार सामाजिक न्याय और समावेशिता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इन सुधारों के माध्यम से पारदर्शिता, जवाबदेही, और समुदाय की भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा, जिससे समाज के कमजोर वर्गों को वास्तविक लाभ प्राप्त होगा। वक़्फ़ संपत्तियों का सही ढंग से उपयोग कर, धार्मिक, परोपकारी, और सामाजिक कार्यों को और अधिक प्रभावी ढंग से पूरा किया जा सकेगा।