Category: Political

बिहार 2025: ‘मुस्लिम’ राजनीति से ‘पसमांदा’ दावेदारी तक

**सारांश (100 शब्दों में):**
अब्दुल्लाह मंसूर लिखते हैं कि बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में पसमांदा समाज अब मात्र ‘वोट बैंक’ नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय का ‘गेम चेंजर’ बन चुका है। इस आंदोलन की जड़ें आज़ादी से पहले मोमिन कॉन्फ्रेंस और अब्दुल कय्यूम अंसारी के राष्ट्रवादी संघर्ष में हैं। आज पसमांदा राजनीति रोजगार, शिक्षा और सम्मान की हिस्सेदारी पर केंद्रित है। मंडल युग से उभरी यह चेतना अब भाजपा, जदयू और महागठबंधन सभी को प्रभावित कर रही है। बिहार के 72% मुस्लिम पसमांदा हैं और उनकी नई पीढ़ी अशराफ वर्चस्व को चुनौती देते हुए सामाजिक न्याय और समान प्रतिनिधित्व की राजनीति का नया अध्याय लिख रही है।

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ज़ोहरान ममदानी: समाजवाद की नई व्याख्या

अब्दुल्लाह मंसूर लिखते हैं कि न्यूयॉर्क के नए मेयर ज़ोहरान ममदानी की जीत अमेरिकी राजनीति में समानता और प्रतिस्पर्धा के नए संतुलन का प्रतीक है। उनका “डेमोक्रेटिक सोशलिज़्म” ऐसा मॉडल पेश करता है जो बाजार की दक्षता को बनाए रखते हुए नागरिकों को राहत और समान अवसर देता है। वे किराया नियंत्रण, सार्वजनिक परिवहन और चाइल्डकेयर जैसी नीतियों को तकनीकी सुधारों और जवाबदेही से जोड़ते हैं। प्रवासी अनुभव से उपजे ममदानी का समाजवाद आर्थिक असमानता मिटाकर नस्ल और धर्म के भेद खत्म करने की कोशिश है—एक ऐसा लोकतांत्रिक समाजवाद जो करुणा और कुशलता, दोनों को साथ लेकर चलता है।

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मक्का चार्टर: इस्लाम की असली सोच की ओर वापसी

मक्का चार्टर (2019) इस्लाम के मूल पैगाम—शांति, बराबरी और सह-अस्तित्व—की पुनःस्थापना है, न कि कोई नया सुधार। यह पैगंबर मुहम्मद के मदीना संविधान से प्रेरित है, जिसने विभिन्न धर्मों और कबीलों को ‘उम्मा’ के रूप में एकजुट किया। 139 देशों के 1200 से अधिक विद्वानों द्वारा स्वीकृत इस चार्टर ने धार्मिक स्वतंत्रता, समान नागरिकता, अतिवाद का विरोध, महिलाओं और युवाओं के सशक्तीकरण, और पर्यावरण की रक्षा पर ज़ोर दिया। यह कुरान व इस्लामी शिक्षाओं पर आधारित एक नैतिक संविधान है जो मुस्लिम दुनिया को एकजुट कर मानवाधिकार, न्याय और दया के सिद्धांतों को आधुनिक संदर्भ में पुनःप्रस्तुत करता है।

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सऊदी-पाकिस्तान रक्षा समझौता और भारत का संतुलनकारी रास्ता

पश्चिम एशिया का भू-राजनीतिक परिदृश्य हाल में बड़े बदलाव से गुज़रा है। पहले जहां अरब देशों का सुरक्षा फोकस ईरान पर था, अब इज़राइल की आक्रामक नीतियाँ और गाज़ा संघर्ष चिंता का केंद्र बन गई हैं। दोहा पर इज़राइली हमले और अमेरिकी निष्क्रियता ने खाड़ी देशों को अमेरिका पर अविश्वास की ओर धकेला। इसी पृष्ठभूमि में सऊदी अरब–पाकिस्तान सामरिक रक्षा समझौता (SMDA) हुआ, जिससे पाकिस्तान को आर्थिक-सैन्य सहयोग और सऊदी को सुरक्षा विकल्प मिला। भारत के लिए यह चुनौती और अवसर दोनों है। फिलिस्तीन पर भारत का समर्थन उसे अरब देशों में नैतिक व रणनीतिक बढ़त दिला रहा है।

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यहूदी समाज की तरक्की और हमारी पसमांदगी का सबब

यहूदी समाज ने सदियों तक सताए जाने के बावजूद शिक्षा, तर्क और वैज्ञानिक सोच को अपनाकर खुद को आगे बढ़ाया, जबकि मुस्लिम समाज धीरे-धीरे किस्मत और तक़दीर पर भरोसा, धार्मिक तंगदिली और वैज्ञानिक जिज्ञासा से दूरी के कारण पिछड़ गया। यहूदियों ने किताबें और रिसर्च को हथियार बनाया, जबकि मुस्लिम समाज ने सवालों को “फितना” मानकर दबाया। पसमांदा मुसलमानों के लिए यह लेख एक आईना है—सिर्फ नारे नहीं, बल्कि शिक्षा, विकल्प और बराबरी की लड़ाई ही असली रास्ता है।

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हॉलीवुड, पश्चिमी मीडिया और ईरान: छवि निर्माण की राजनीति

**100 शब्दों में सारांश (हिंदी में):**

आज की दुनिया में युद्ध केवल हथियारों से नहीं, बल्कि छवियों, फिल्मों और मीडिया के ज़रिए भी लड़े जाते हैं। हॉलीवुड और पश्चिमी मीडिया ने एक वैचारिक “छवि युद्ध” छेड़ा है, जिसमें ईरान जैसे देशों को खलनायक, पिछड़ा और असहिष्णु दिखाया जाता है। *Argo*, *Homeland* जैसी फ़िल्में इस छवि को मज़बूत करती हैं। यह सिर्फ़ मनोरंजन नहीं, बल्कि अमेरिकी सॉफ्ट पावर और वैश्विक जनमत निर्माण की रणनीति है। एडवर्ड सईद के “ओरिएंटलिज़्म” सिद्धांत के अनुसार, पश्चिम अक्सर पूर्व को नीचा दिखाता है। इसलिए जरूरी है कि दर्शक फिल्मों और मीडिया को आलोचनात्मक नजरिए से देखें और सच व प्रचार में फर्क करना सीखें।

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