Category: Casteism
वो नक़्शे-कदम जो तारीख में कभी मद्धम नहीं पड़ते...
Posted by pasmanda_admin | Jan 31, 2025 | Casteism, Culture and Heritage, Education and Empowerment, Pasmanda Caste, Social Justice and Activism | 0 |
शोषक और शोषित में एकता… क्या संभव है?...
Posted by pasmanda_admin | Jan 24, 2025 | Casteism, Culture and Heritage, Education and Empowerment, Pasmanda Caste, Political, Social Justice and Activism | 0 |
पसमांदा : कल, आज और कल...
Posted by Dr. Kahkashan | May 9, 2024 | Casteism, Pasmanda Caste | 0 |
“मसान: वाराणसी की जाति और प्रेम की अनछुई कहा...
Posted by Arif Aziz | May 6, 2024 | Casteism, Movie Review, Reviews, Social Justice and Activism | 0 |
क्या है मुस्लिम तुष्टिकरण का असली सच? एक विचारोत्तेजक पड़ताल
by Abdullah Mansoor | Feb 11, 2025 | Casteism, Culture and Heritage, Pasmanda Caste | 0 |
इस नीति की चपेट में सबसे ज़्यादा वे लोग आये जिन्होंने कालांतर में किन्हीं कारणों से अपना मतांतरण करके मुस्लिम धर्म अपनाया था। जो कभी भी सत्ता और शासन के निकट नहीं रहे या रहने नहीं दिया गया, जिन्हें देशज पसमांदा मुस्लिम के नाम से जानते हैं, जिनकी ज़िन्दगियों में मतांतरण का कोई विशेष लाभ दृष्टिगोचर नहीं होता है और ये अपने पूर्ववर्ती सभ्यता, संस्कृति भाषा एवम् सामाजिक संरचनाओं से जुड़े हुए रहे।
Read Moreवो नक़्शे-कदम जो तारीख में कभी मद्धम नहीं पड़ते
by pasmanda_admin | Jan 31, 2025 | Casteism, Culture and Heritage, Education and Empowerment, Pasmanda Caste, Social Justice and Activism | 0 |
अपने ज़िन्दगी के तमाम उतार-चढाव के बावजूद दलितों पिछड़ों और पसमांदा के संघर्ष से अपना नाता नही तोड़ा. पैसे-रुपयों की कमी या घरेलू हालात अथवा परेशानियाँ भी आप को अपने मकसद से डिगा न सकी. आप ने कांशीराम और उनकी तहरीक (आन्दोलन) को उस समय गले लगाया था जब बड़े से बड़ा सामाजिक कार्यकर्ता भी उधर मुंह करके खड़ा होने से घबराता था कि कहीं अछूत न समझ लिया जाऊं।
Read Moreशोषक और शोषित में एकता… क्या संभव है?
by pasmanda_admin | Jan 24, 2025 | Casteism, Culture and Heritage, Education and Empowerment, Pasmanda Caste, Political, Social Justice and Activism | 0 |
पसमांदा शब्द के लग्वी माने जो भी हो, इस शब्द का एक पोलिटिकल meaning है. पसमांदा शब्द हमसे यह कहता है कि ‘सभी पिछड़ी जातियों एक हो जाओ और अपने मनुवादी शोषक के खिलाफ मोर्चा ले लो!’. पसमांदा शब्द अपने आप में एक revolution है, जब कि किसी जाति का नाम एक ग़ुलामी का प्रतीक, और गुलाम सभी शोषकों को पसंद हैं. पसमांदा शब्द उस आज़ादी का प्रतीक है जो जाति की बेड़ियों से मुक्त होने पर मिलती है.
Read Moreक्या है सैयदवाद ?
by Abdullah Mansoor | Jun 21, 2024 | Casteism, Social Justice and Activism | 0 |
अशराफ उलेमाओं ने भी खुद को नबी (स.अ.) के खानदान से जोड़ कर झूठी हदीसें गढ़ीं। उन्होंने भी सैयद की सेवा करने के नाम पर मिलने वाली जन्नत के किस्से गढ़े, अगर सैयद गरीब है तो यह उस सैयद का इम्तिहान नहीं है बल्कि हमारा इम्तिहान है कि हम उस सैयद की कितनी सेवा कर पाते हैं। यह भी ज्ञात रहे कि हदीसों का संकलन नबी (स.अ.) की वफात के 100 साल बाद शुरू हुआ है।
यह वही वक्त था जब सत्ता के लिए शिया और सुन्नियों के बीच जंग हो रही थी। जब यह बताया जाता है कि खलीफा सिर्फ कुरैश बन सकते हैं तब दरअसल यह बताया जा रहा होता है कि खिलाफत पर सिर्फ एक कबीले/जाति का दैवीय अधिकार है। राज्य ईश्वर ने बनाया इसलिए राजा ईश्वर का दूत है, ‘ज़िल्ले इलाही’ है। कोई भी उसकी सत्ता के विरुद्ध विद्रोह नहीं कर सकता। अगर यह साबित कर दिया जाए कि नबी (स.अ.) ने किसी खास खानदान या कबीले को सत्ता सौंपी थी तो उसकी दावेदारी ईश्वरीय हो जाएगी क्योंकि नबी (स.अ.) ईश्वर के दूत थे।
Read Moreसामाजिक अस्पृश्यता और बहिष्करण से लड़ती मुस्लिम हलालखोर जाति
by Abdullah Mansoor | Jun 14, 2024 | Casteism, Pasmanda Caste, Social Justice and Activism | 0 |
‘हलालखोर’ यानी हलाल का खाने वाला, यह सिर्फ एक अलंकार नहीं है बल्कि मुस्लिम समाज में मौजूद एक जाति का नाम है। जिनका पेशा नालों, सड़कों की सफाई करना, मल-मूत्र की सफाई करना, बाजा बजाना, और सूप बनाना है। हलालखोर जाति के अधिकतर व्यक्ति मुस्लिम समाज के सुन्नी संप्रदाय के मानने वाले हैं। यह लोग अपनी मेहनत द्वारा कमाई गई रोटी के कारण हलालखोर कहलाए होंगे। वहीं, कुछ बुद्धिजीवियों का कहना है कि धर्म परिवर्तन के बाद जब इस जाति ने सूअर का गोश्त खाना छोड़ दिया तो इस जाति को हलालखोर के नाम से जाना जाने लगा।
Read Moreपसमांदा : कल, आज और कल
by Dr. Kahkashan | May 9, 2024 | Casteism, Pasmanda Caste | 0 |
सामाजिक बराबरी के लिए आज़ाद भारत में जो भी नीतियाँ बनी हैं, उनका लाभ बहुत कम तबकों को मिल सका है। उसका कारण ज़रूरतमंद लोगों के सही आंकड़ों का उपलब्ध ना होना भी है। इस्लाम को मानने वाले समाज में यह आंकड़े इसलिए नहीं जुट सके कि वहां व्यावहारिक और सैद्धांतिक बातों में अंतर है। इस आलेख में इसी की पड़ताल करने का प्रयास है। आमतौर पर यही माना जाता है कि इस्लाम बराबरी और समानता का धर्म है जहां कोई ऊंच-नीच नहीं है। पर ज़मीनी हकीकत बिल्कुल अलग है।
Read More“मसान: वाराणसी की जाति और प्रेम की अनछुई कहानियाँ”
by Arif Aziz | May 6, 2024 | Casteism, Movie Review, Reviews, Social Justice and Activism | 0 |
~ अब्दुल्लाह मंसूर सुबह सुबह माँ की आवाज़ बेटे के कानो में पड़ती है। “दीपक आ गए क्या? चुलाह बारना...
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