- अशराफ दलित हिन्दुओं के साथ उसी तरह व्यवहार करता है जिस तरह सवर्ण हिंदू करता है
- अशराफ, पसमांदा आंदोलन को इग्नोर कर रहा है और उसे हिन्दू प्रोग्रेसिव लोगो का समर्थन मिल रहा है
यह लेख प्रसिद्ध साहित्यकार और पूर्व डीजीपी उत्तर प्रदेश विभूति नारायण राय का पसमांदा डेमोक्रेसी यू ट्यूब चैनल पर डा० फैयाज़ अहमद फैजी द्वारा लिए गए साक्षात्कार का लिखित रूप है।
फ़ैयाज़ अहमद फैज़ी:
जब प्रधानमंत्री ने मुस्लिम समाज में सामाजिक न्याय के प्रश्न को एड्रेस करते हुए पसमांदा को जोड़ने की बात कही तो नेशनल मीडिया में इस पर वाद विवाद होने लगा चर्चा होने लगी, आप तो बहुत पहले से मुस्लिम समाज में सामाजिक न्याय की बात को उठा रहें हैं, कार्यकर्ताओ से बात करते रहें हैं और आपका एक शानदार कैरियर रहा है अल्पसंख्यक से संबंधित मुद्दों को उठाने के लिए और आप बहुत मुखर रहे हैं मैं कहता हूं कि मॉडर्न भारत में सेक्युलरिज्म की परिकल्पना की बात की जाए उसमें आपका एक बड़ा नाम है उसको स्थापित करने में, लेकिन मैंने एक टीवी डिबेट में देखा कि जब आपने मुस्लिम समाज में सामाजिक न्याय के प्रश्न को एड्रेस किया तो आपके सामने ही आपको भाजपा का प्रवक्ता कहा गया सिर्फ यही नहीं सोशल मीडिया पर भी आपको भाजपाई और संघी कहा गया इस बारे में आपकी क्या राय है इस आरोप को आप किस तरह लेते हैं
विभूति नारायण राय:
देखिए यह बड़ा दुर्भाग्यपूर्ण है जो हमारा लेफ्ट या सेकुलर स्पेस है भारत का भारत में जो विमर्श खासतौर से जो लेफ्ट से जुड़ा हुआ स्पेस है वह हिंदू सांप्रदायिकता पर हिंदू कट्टरता पर तो पूरा जम के हमला करता है लेकिन जैसी मुस्लिम कट्टरता की बात आती है वह बगल से पतली गली से निकल जाता है उसे कई बार लगता है कि अगर हम मुस्लिम कट्टरता पर हमला करेंगे तो हमें हिंदुत्ववादी कहा जाएगा या हमारा सेकुलरिज्म खतरे में पड़ जाएगा हम संदिग्ध हो जाएंगे। मैं इस पर विश्वास नहीं करता, मेरा तो विश्वास इस पर है वह सांप्रदायिकता किसी भी क्षेत्र की हो उसका विरोध करना चाहिए मेरा यह मानना जरूर है कि जो बहुसंख्यक समाज की सांप्रदायिकता होती है ज्यादा खतरनाक है भारत के संदर्भ में आप इसे हिंदू सांप्रदायिकता कह सकते हैं पाकिस्तान के संदर्भ में इस्लामिक सकते हैं क्योंकि बहुसंख्यक संप्रदायिकता स्टेट पर कब्ज़ा कर लेती लेकिन माइनॉरिटी कम्युनिटी की सांप्रदायिकता भी उतनी ही खतरनाक है उसकी वजह यह है कि यह दोनों एक दूसरे के लिए खाद का काम करते हैं बल्कि जो माइनॉरिटी की सांप्रदायिकता है वह तो अपने वर्ग के लोगों को ही नुकसान पहुंचाती देखिए मुझे एक बार अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में भाषण देने का मौका मिला वहां चार पांच वक्ता थे वहां पर भी मैंने देखा कि जितने वक्ता थे वो सब लोग हिंदुत्व पर हमला कर रहे थे और खूब तालियां बटोर रहे थे हमारा जो वहां श्रोता वर्ग था मुख्य रूप से मुसलमान बच्चे थे वहां के टीचर थे, इत्तेफाक से वहां सबसे आखिर में बोलने का मौका मिला मैंने कहा कि देखिए मैं भी चाहूं तो आरएसएस हिंदुत्व पर हमला करके तालियां बटोर सकता हूं मुझे पता है कि आर एस एस और हिंदुत्व से तो आप लोग वाकिफ हैं उनके खतरों से और आप चुकी उस से पीड़ित हैं तो आपसे ज्यादा कौन जानेगा मैं आपको यह बताने आया हूं यहां पर 1994-95 का साल था, मैं यह बताने आया हूं कि 1995 में अब अल्लाह की हुकूमत नहीं कायम होगी, अगर कोई आपको आकर यह बता रहा है की शरिया निज़ाम कायम करें तो वह आपका दुश्मन है वो बहुसंख्यक समाज को इतना नुकसान नहीं पहुंचाएगा जितना वह आप को नुकसान पहुंचाएगा। यह जो धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई है हम सबको मिलजुल के लड़नी चाहिए और पूरे देश में क्या पूरी दुनिया में यह बात कहनी चाहिए।
सेकुलरिज्म सिर्फ भारत में ही जरूरी नहीं है सेक्युलरिज्म सऊदी अरब के लिए भी जरूरी है सेकुलरिज्म ईरान के लिए भी जरूरी है सेकुलरिज्म हमारे पड़ोस में पाकिस्तान है जिस में घटित होने वाली घटना से हम प्रभावित होते हैं हमें यह मांग करनी चाहिए कि वहां भी सेकुलर निजाम होना चाहिए। यह तो मेरा एक कांस्टेंट स्टैंड रहा है और मैं इसी पर कायम रहा हूं।
अब आइए इस पर जो आपने पसमांदा की बात कही देखिए जो हमारा लेफ्ट का स्पेस है जो सेकुलर स्पेस है। खासतौर से जो हमारी कम्युनिस्ट पार्टी या जो अन्य पार्टी है जो थोड़ा बहुत मार्क्सवाद से या वैज्ञानिक चेतना से प्रभावित है सोशलिस्ट पार्टी है जो अलग-अलग धाराओं से प्रभावित थी यह सब के सब जो पिछड़े और दलित हिंदू हैं उनके पक्ष में तो बहुत मजबूती से आवाज उठाते हैं और और हमें इसका समर्थन करना चाहिए खुश होना चाहिए। पिछले और दलितों के मुद्दे पर सबसे ज्यादा मुखर लड़ाई यही लड़ते हैं लेकिन जैसे ही मुसलमानों में जो पसमांदा है दलित या पिछड़े हैं उनका सवाल आता है यह चुप हो जाते हैं। उनको लगता है कि शायद इस पर बात करने से जो उनका सेकुलर छवि है संदिग्ध हो जाएगा मशकूक हो जाएगा। यह अपने आप में देखिए एक दुखद स्थिति है अभी दिल्ली में 2 दिन का एक सेमिनार हुआ प्रगतिशील लेखक संघ ने आयोजित किया था जिसका मैं कार्यवाहक राष्ट्रीय अध्यक्ष हूं, हमारे एक बहुत पुराने और वरिष्ठ लेखक हैं वामपंथी और प्रगतिशील विचारधारा से जुड़े हुए विश्वनाथ त्रिपाठी जी, एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही उन्होंने कहा कि भाई यह जो पसमांदा मुसलमानों का सवाल है इसे हमें उठाना चाहिए था हमने उठाया नहीं हम से उनका मतलब लेफ्ट के लोगो से था। अब जो लोग इस मुद्दे को ले गए हैं बीजेपी के लोग तो आप दुखी हो रहे हैं साहब, कि बीजेपी ने यह एजेंडा हमारा चुरा लिया तो हमने क्यों नहीं उठाया बड़ी सीधी सी बात है ना कि अगर हम उठाते हैं तो दूसरे को मौका नहीं मिलता। हमने इसीलिए नहीं उठाया ना कि हम एंटी मुस्लिम या कम्युनल घोषित हो जाएंगे शायद कारण यह था कि जो अशराफ है मुसलमानों में, अशराफ सबसे वोकल है, और अशरफ सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा है और उसी की राय मुसलमानों की राय मानी जाती है तो वह कभी यह बर्दाश्त नहीं करता कि कोई दूसरा आकर यह कहें कि साहब हमारे यहां भी जात पात है वो तो बाहर यही बात बनाता है कि इस्लाम में तो जात पात है ही नहीं जबकि आप मुझसे बेहतर जानते होंगे कि भारत में ही नहीं बल्कि अरब बैकग्राउंड में भी आप देख ले तो कबीले क्या थे कुरैश अंसार का झगड़ा क्या था?
भारत में आने के बाद तो जो हिंदू जाति प्रथा थी मुसलमानों ने उसको स्वीकार कर लिया, क्या आप यह मुमकिन समझते हैं कि कोई खान साहब या अशराफ हलालखोर की बेटी से अपने बेटे की शादी करेगा शादी तो छोड़ दीजिए क्या वह किसी जुलाहे को हलालखोर को किसी मेहतर को क्या अपने बगल में बैठा कर खाना खिलाएगा तो यह लगभग उसी तरह से यह नफरत अपने अरजाल और अजलाफ़ से करते हैं, जिस तरह से हिन्दू सवर्ण करता था।
बल्कि मुझे एक बहुत ही महत्वपूर्ण सूत्र दिया आजमगढ़ के एक नेता थे बलिहारी बाबू नाम के, जो आप कह सकते हैं कि कांशीराम के शुरुआती दिनों में कांशीराम के साथ कंधे से कंधा मिलाकर जिन्होंने संगठन खड़ा किया था, उन्होंने एक बार मुझसे कहा कि मुसलमानों के अशराफ के सामने, और वहां कोई दलित हिन्दू रहता है तो तो आर एस एस के जाने की जरूरत ही नहीं क्योंकि जो अशराफ है वह दलित हिंदुओं के साथ उसी तरह व्यवहार करता है जिस तरह सवर्ण हिंदू करता है। या वह जो पिछड़ी जातियां हिंदुओं में जो है जो सवर्णों के अवसर पर आ गई है और वह भी उसी तरह ज्यादतियां करती हैं दलित हिंदुओं के साथ, तो यह एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें लोग सिर्फ इसलिए घुसने से डरते हैं कि ऐसा ना हो कि उनकी जो उनकी समझ या उनकी जो पक्षधरता है, खतरे में पड़ जाए संदिग्ध पड़ जाए, मैं तो देखिए मुझे आप आर एस एस का कहिए बीजेपी का प्रवक्ता कहिए जो चाहे कहिए मैं जो काम करता रहा हूं वह तो सार्वजनिक रहा है हाशिमपुरा के बारे में मेरी किताब है शहर में कर्फ्यू मेरी ही किताब है सांप्रदायिकता पर तो मैं लगातार लड़ता रहा हूं लेकिन मैं सांप्रदायिकता के खिलाफ जब लड़ता हूं तो सिर्फ हिंदू सांप्रदायिकता के खिलाफ नहीं लड़ता मुस्लिम सांप्रदायिकता को भी इतना ही बुरा मानता हूं और जहां मौका मिलता है वैसा ही चोट पहुंचाता हूं जैसी मैं हिंदू सांप्रदायिकता के साथ करता हूं मुझे लगता है शायद मैंने बहुत हद तक जवाब दे दिया है
फ़ैयाज़ अहमद फैज़ी:
हां, बिल्कुल, यह भी बहुत है कि जब आप हिंदू सांप्रदायिकता पर चोट करते हैं बोलते हैं तो सारा अशरफ वर्ग आप को दूल्हा बनाकर सर पर रख कर घुमाता है लेकिन जब आप मुस्लिम समाज में सामाजिक न्याय का प्रश्न उठा रहे हैं तो इस्लामोफोबिक आर एस एस का एजेंट और भाजपा का प्रवक्ता इस तरह की बात कही जाती है अच्छा सर मैं यहां एक महत्वपूर्ण सवाल दर्शकों को भी बताता चलूं कि जो पसमांदा कार्यकर्ता हैं जो लगातार मुस्लिम समाज में सामाजिक न्याय को लेकर आगे चल रहे हैं मुस्लिम सांप्रदायिकता से लड़ रहे हैं उनको भी डिस्क्रेडिट करने के लिए लगातार संघी और भाजपाई का आरोप लगा रहे हैं मेरे ऊपर भी यह आरोप है और भी मेरे जो मेरे बहुत सारे पसमांदा कार्यकर्ता हैं उनके ऊपर आरोप है तो सर क्या यह मान लिया जाए कि यह सिर्फ उस विमर्श को पीछे करने के लिए बहस ना करके उस पर चर्चा ना करके तर्क वितर्क ना करके सिर्फ डिस्क्रेडिट करने के लिए क्या इस तरह की बात की जा रही है?
विभूति नारायण राय:
सही बात है देखिए वह चाहे हिंदुओं का अशराफ हो, वह बहुत विरोध करता था जबकि राजेंद्र यादव ने हिंदी में हंस पत्रिका जिसको संपादक थे उस के माध्यम से दलित विमर्श को लाया तो बहुत उसका विरोध हुआ और एक वक्त था कि दलित लेखकों को स्पेस अब तक मिलना मुश्किल होता था पत्रिकाएं उन्हें।छपती नहीं थी उस विमर्श के बाद ही उन्होंने अपनी एक मजबूत उपस्थिति बनाई और आज किसी की हिम्मत नहीं है कि किसी दलित लेखक को छापने से मना कर दे अगर वह स्तरीय लिख रहा है सारी पत्रिकाएं छापती हैं प्रकाशक हाथ फैला करके उसका इंतजार करते हैं। यही चीज मुझे लगता है कि मुस्लिम अशराफ कर रहा है, देखिए अभी कुछ दिन पहले मैं एक मित्र के साथ एक्सरसाइज कर रहा था तो मैं जान करके बड़ा चकित रह गया कि जो मुस्लिम ओबीसी है इसे आपने भी एकाद जगह कहा है जहां तक मुझे याद आ रहा है उसे बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में रिजर्वेशन मिल सकता है अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में नहीं मिल सकता है? फिर आप बताइए अब तो एक नई चीज शुरू हो रही है जो मुसलमानों का अशराफ तबका है एक आंदोलन चलाने की कोशिश कर रहा है उनकी जो सबसे निचली जाति है जो हिंदू एससी के बराबर हैं जैसे हिंदू में भंगी है तो वहां भी है तो उन्हें भी रिजर्वेशन दिया जाए लेकिन उनसे जरा पूछा जाए कि वह अपने इंस्टिट्यूशन कम से कम हजार तो एजुकेशनल इंस्टिट्यूशन ऐसे होंगे जो मुस्लिम मैनेजमेंट चलाता है जिसमें अशराफ के लोग मैनेजर आदि होते हैं वह अपने यहां क्यों नहीं जगह देते?
फ़ैयाज़ अहमद फैज़ी:
बिल्कुल मैं आपकी बात में एक बात जोड़ दूं कि किसी मदरसा का दरबान तक ये लोग पसमांदा दलित को नहीं बनाते हैं मैं आरक्षण पर बात साफ कर दूं कि जो पसमांदा दलित है उनको आरक्षण मिलता है ऐसी बात नहीं है यह एक झूठ फैलाया जा रहा है अशराफ की तरफ से, वह ओबीसी के आरक्षण में आते हैं पसमांदा आंदोलन की मांग सिर्फ यह है कि उनकी कैटेगरी बदली जाए उनको शेड्यूल कास्ट कैटेगरी में शामिल किया जाए ऐसा नहीं कि उनको आरक्षण नहीं मिल रहा है उनको ओबीसी का आरक्षण मिल रहा है। जी सर आप आगे बोलिए।
विभूति नारायण राय:
जी, वह तो मैं कई बार अपने मित्रों से जो मैनेजमेंट में है उनसे पूछा कि आप अपने यहां क्यों नहीं करते, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी अपनी कुछ सीटें रिजर्व करें एडमिशन में जो हलालखोर या नट या भंगी मेहतर इन जातियों के बच्चों के लिए हो, ऐसा तो करेंगे नहीं वह चाहेंगे कि उनको पहले रिजर्वेशन में एससी का रिजर्वेशन दिलाएं फिर उसका एक पोलिटिकल फायदा उठाएं और आईडेंटिटी पॉलिटिक्स वहां भी शुरू कर दें, दोहरा मापदंड नहीं चलेगा अगर भारत सरकार नहीं दे रही है तो वह भी गलत कर रही है मैं तो उसका भी समर्थन करता हूं कि उनको मिलना चाहिए लेकिन अगर भारत सरकार नहीं दे रही है तो आप कम से कम अपने घर से शुरुआत क्यों नहीं करते जहां आप के ऊपर कोई पाबंदी नहीं कोई बंदिश नहीं।
मुझे लगता है अब यह जैसे हिंदुओं में जो पिछड़ों का आंदोलन था या पिछड़ों के तीन चार पांच दशक पहले जो दलितों का आंदोलन था उसे दबाया नहीं जा सका जो उनकी वाजिब जगह थी वह हासिल कर ली उसी तरह अब यह मुसलमानों में भी पसमांदा आंदोलन को दबा नहीं पाएंगे।
यह उसे इग्नोर कर रहे हैं और दुर्भाग्य से जो अशराफ उसे इग्नोर कर रहे हैं उनको समर्थन जो हिंदू प्रोग्रेसिव हैं उनसे मिल रहा है। प्रोग्रेसिव को तो आगे आकर कहना चाहिए था कि जो पसमांदा है उसको स्पेस मिलना चाहिए पॉलिटिकल स्पेस मिलना चाहिए, किसी को एक बार देख ले मुझे लगता है कि यह एक दिलचस्प स्टडी होगी कि अलग-अलग पार्टी है सोशलिस्ट पार्टी है कांग्रेस पार्टी है सामाजिक न्याय की पार्टियां हैं यह कितने पर्सेंट टिकट पसमांदा को देती हैं? ये पसमांदा से वोट लेने तो जाते हैं लेकिन टिकट नहीं देते।
फ़ैयाज़ अहमद फैज़ी:
जी अगर उत्तर प्रदेश विधानसभा की बात की जाए तो यादव वर्ग से दुगना वोट पसमांदा ने समाजवादी पार्टी को दिया है लेकिन उसके संगठन में कभी समाजवादी पार्टी उस तरह से जगह नहीं देती है। आप बिल्कुल सही कह रहे हैं।
विभूति नारायण राय:
तो फिर अगर बीजेपी पसमांदा को आगे बढ़ा रही है, जाहिर है कि बीजेपी एक पॉलीटिकल पार्टी है किसी भी पॉलीटिकल पार्टी का यह काम है कि वह पॉलिटिक्स करें वह पॉलिटिकल कारणों से कुछ मुद्दे उठाए, तो अगर बीजेपी उठा रही है तो फिर इसमें हमें परेशान होने की क्या जरूरत है?
फ़ैयाज़ अहमद फैज़ी:
जी, मेरा अगला सवाल यही था कि भाजपा की यह जो पसमांदा जोड़ने की नीति है इसे आप कैसे देखते हैं?
विभूति नारायण राय:
मैं तो हमेशा यह कहता हूं देखिए मेरे कई मित्र यह कहने की कोशिश करते हैं कि साहब की भाजपा तो राजनीति कर रही है, एक राजनीतिक दल अगर राजनीति नहीं करेगा तो कौन राजनीति करेगा? आपको किसने रोका है आप भी राजनीति करिए यह तो एक अच्छी राजनीति है आप पिछड़ों को दलितों को दबे कुछ लोग को जो हाशिए पर पहुंचे वर्ग हैं उनको सामने लाएं यह तो एक अच्छी राजनीति है।