लेखक~ अब्दुल्लाह मंसूर

हमारी परवरिश और समाज ने हमें बचपन से एक ही बात सिखाई है “सबका कहा मानो,” “बड़ों को कभी मना मत करो,” और “हर मौके को लपको।” हमें यही पट्टी पढ़ाई जाती है कि एक अच्छा इंसान वही है जो हर किसी के काम आए, जो हर बात पर ‘हाँ’ कहे। मगर जिन्दगी के तजुर्बे ने मुझे एक अलग ही सच सिखाया है। वह सच यह है कि हर जगह “हाँ” कहना न तो मुमकिन है और न ही समझदारी।

अगर हम हर किसी की बात मानते रहेंगे, तो भीड़ में हमारी अपनी पहचान कहीं खो जाएगी। ज़रा रुककर सोचिए, जब आप दूसरों को खुश करने के लिए “हाँ” कहते हैं, तो असल में आप किसे “ना” कह रहे होते हैं? जवाब कड़वा है, लेकिन सच है  आप खुद को “ना” कह रहे होते हैं। जब आप बिना मन के किसी का काम करते हैं, तो दूसरे लोग बड़ी आसानी से आपका कीमती समय और ऊर्जा चुरा ले जाते हैं। नतीजा यह होता है कि आप अपने सपनों, अपने लक्ष्यों और यहाँ तक कि अपने परिवार के लिए भी वक्त नहीं निकाल पाते। जीवन में हर चीज़ का महत्व तभी समझ आता है जब हम गैर-जरूरी चीज़ों को “ना” कहना सीख लेते हैं।

मैंने महसूस किया है कि “ना” कहना कोई नकारात्मकता नहीं है, बल्कि यह खुद को चुनने का एक तरीका है। यह एक ऐसा हुनर है जो हमें बताता है कि हमारी प्राथमिकता क्या है। अक्सर हम डरते हैं कि मना करेंगे तो रिश्ते खराब हो जाएंगे, लेकिन हकीकत यह है कि जो लोग आपकी सीमाओं की इज्जत नहीं करते, वे वैसे भी आपके सच्चे हितैषी नहीं हो सकते।

‘ना’ एक सुरक्षा कवच है

हम अक्सर ‘हाँ’ (Yes) को एक तलवार की तरह देखते हैं, जिससे हम दुनिया जीतना चाहते हैं और नए अवसरों को हासिल करना चाहते हैं। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि ‘ना’ (No) एक ढाल (Shield) की तरह है। एक योद्धा को सिर्फ तलवार चलाना ही नहीं, बल्कि ढाल से खुद को बचाना भी आना चाहिए। हमें ‘हाँ’ की तलवार के साथ-साथ ‘ना’ की ढाल का उपयोग करना भी सीखना चाहिए। ‘ना’ कहने की यह ढाल हमें उन गलत चीजों, बुरी आदतों और फालतू की जिम्मेदारियों से बचाती है जो हमारी ऊर्जा को दीमक की तरह खा जाती हैं।

‘ना’ कहना आपके आत्म-सम्मान (Self-Respect) की निशानी है। यह दुनिया को बताता है कि आप अपनी सीमाओं, अपने वक्त और अपनी ऊर्जा की इज्जत करते हैं। जब आप अपनी कद्र करते हैं, तभी दुनिया भी आपको हल्के में लेना बंद करती है। याद रखिए, हम इंसान हैं, रोबोट नहीं। हम सब कुछ नहीं कर सकते। अपनी सीमाओं को पहचानना और उन बोझों को मना कर देना जो आप नहीं उठा सकते, आपको तनाव और थकान (Burnout) से बचाता है।

अक्सर हमारे मन में यह डर बैठा होता है कि अगर हमने किसी को मना किया, तो लोग हमें ‘स्वार्थी’ या ‘मतलबी’ समझेंगे। लेकिन हकीकत कुछ और है। हवाई जहाज में सफर करते समय एक बहुत पते की बात कही जाती है “आपातकालीन स्थिति में दूसरों की मदद करने से पहले अपना ऑक्सीजन मास्क खुद पहनें।” अगर आप खुद सांस नहीं ले पा रहे हैं, तो आप किसी और की मदद कैसे करेंगे?

ठीक यही नियम जिंदगी पर लागू होता है। खुद की देखभाल (Self-care) स्वार्थ नहीं, बल्कि आवश्यकता है। अगर आपको सेहतमंद जीवन जीना है, तो देर रात की पार्टियों और अनियमित खानपान को ‘ना’ कहना ही होगा। अगर आप अपने परिवार को अहमियत देते हैं, तो आपको बाहर की कुछ मौज-मस्ती छोड़नी होगी। अगर आप एक सच्ची और गहरी दोस्ती चाहते हैं, तो आपको उन लोगों से दूर रहना होगा जो पीठ पीछे बुराई करते हैं। अपनी बैटरी चार्ज करना बहुत जरूरी है। अगर आप खुद खाली होंगे, तो दुनिया को क्या देंगे? इसलिए, यह गिल्ट या दोष भावना अपने मन से निकाल दें कि मना करना बुरी बात है।

हम मना क्यों नहीं कर पाते? मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि इसके पीछे सबसे बड़ा कारण है ‘पसंद किए जाने की चाहत’। हमें लगता है कि मना करते ही हम बुरे बन जाएंगे। दूसरा कारण है ‘छूट जाने का डर’ (FOMO)। हमें लगता है कि अगर हमने मना किया, तो शायद कोई बड़ा मौका हाथ से निकल जाएगा। लेकिन ‘ना’ कहने की क्षमता हमें छोटे-छोटे प्रलोभनों से बचाती है ताकि हम भविष्य के बड़े लक्ष्यों पर ध्यान दे सकें।

 मना कैसे करें?

अब सवाल आता है कि मना कैसे करें ताकि रिश्ते भी बने रहें और आपका काम भी न रुके? ‘ना’ कहना भी एक कला है और इसे सीखा जा सकता है। इसके लिए आपको कठोर होने की जरूरत नहीं है, बस समझदार होने की जरूरत है। सबसे पहले, सीधे और स्पष्ट रहें। बातों को गोल-मोल घुमाने से कोई फायदा नहीं है। अगर आपके पास वक्त नहीं है, तो विनम्रता से कहिए, “माफ़ करना, मैं अभी बहुत व्यस्त हूँ।” झूठे बहाने बनाने से बचें। अक्सर हम सोचते हैं कि एक छोटा सा झूठ बोलकर बच जाएंगे, लेकिन अगर आप झूठ बोलते हैं और पकड़े जाते हैं, तो विश्वास हमेशा के लिए टूट जाता है। ईमानदारी हमेशा सबसे अच्छी नीति होती है। एक सच्चा कारण देना हमेशा झूठे बहाने से बेहतर होता है।

दूसरा तरीका है  समय न मांगें। अगर आपको पता है कि आप वह काम नहीं कर पाएंगे, तो यह कहकर बात को न टालें कि “मैं बाद में बताऊँगा।” इससे सामने वाला उम्मीद लगा लेता है और बाद में जब आप मना करते हैं, तो उसे ज्यादा दुख होता है। उसे अधर में लटकाने से बेहतर है कि आप उसे तुरंत बता दें ताकि वह कोई और इंतजाम कर सके।

तीसरा और सबसे कारगर तरीका है  ‘ना’ शब्द को बदल दें। खासकर जब आप बड़ों से बात कर रहे हों या किसी संवेदनशील व्यक्ति से। सीधे मुंह पर ‘ना’ मारने के बजाय, आप कोई दूसरा विकल्प सुझा सकते हैं। जैसे, “मैं आपके साथ नहीं जा सकता, लेकिन मैं आपके लिए कैब बुक कर सकता हूँ।” या “मैं अभी यह काम नहीं कर सकता, लेकिन शाम को मैं इसे देख सकता हूँ।” इससे सामने वाले को यह महसूस नहीं होता कि आपने उसे पूरी तरह नकार दिया है, बल्कि उसे लगता है कि आपने उसकी मदद करने की कोशिश की।

एक और महत्वपूर्ण बदलाव जो आपको अपने अंदर लाना है, वह है फैसले की जिम्मेदारी लेना। अक्सर हम कहते हैं “मैं यह नहीं कर सकता” (जैसे कि हम मजबूर हों), इसके बजाय विनम्रता से यह भाव रखें कि “मैं यह नहीं करना चाहता” (क्योंकि यह आपकी प्राथमिकता नहीं है)। जब आप कहते हैं कि यह आपकी चॉइस है, मजबूरी नहीं, तो आपको अपने अंदर एक अलग ताकत महसूस होगी।

जिंदगी विकल्पों का ही दूसरा नाम है। मेरा अनुभव कहता है कि जब हम अपने लिए कुछ तय करते हैं, तो उसके लिए कई दूसरी चीजों को नकारना ही पड़ता है। हर एक ‘हाँ’ के पीछे अनगिनत ‘ना’ छिपे होते हैं। अगर आप सोच-समझकर ‘ना’ कहते हैं, तो आपकी ‘हाँ’ की कीमत बढ़ जाती है। लोगों को पता होता है कि अगर आपने किसी काम के लिए हामी भरी है, तो आप उसे पूरे दिल से करेंगे। इसलिए, आज से ही अपनी प्राथमिकताएँ तय करें। उन चीजों की लिस्ट बनाएँ जो आपके दिल को सुकून देती हैं और आपके लक्ष्य के करीब ले जाती हैं। अपने जीवन का रिमोट कंट्रोल किसी और के हाथ में न दें।