लेखक: अब्दुल्लाह मंसूर

नेटफ्लिक्स की सीरीज “एडोलेसेंस” एक ऐसी कहानी है जो किशोरों की दुनिया की सच्चाई और उनके मन की गहराइयों को बहुत ही सच्चाई और सादगी के साथ दिखाती है। यह कहानी 13 साल के जेमी मिलर नाम के लड़के पर आधारित है, जिस पर अपनी ही स्कूल की दोस्त केटी की हत्या का आरोप लगता है। इस सीरीज में यह दिखाने की कोशिश की गई है कि किस तरह किशोरों के दिल और दिमाग में कई तरह के भावनात्मक तूफान चलते हैं और कैसे वे अपनी पहचान, आज़ादी और सही-गलत के बीच रास्ता ढूंढते रहते हैं। जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, हर एपिसोड के ज़रिए जेमी के इर्द-गिर्द घटी घटनाओं के अलग-अलग पहलुओं को दिखाया जाता है। पहला एपिसोड उस वक्त की कहानी है जब जेमी पर हत्या का आरोप लगने के बाद पुलिस उसे गिरफ्तार कर लेती है। उसके माँ-बाप, एडी और मंडा, इस घटना से पूरी तरह टूट जाते हैं। पुलिस स्टेशन की खामोशी, जेमी का डर और परिवार की बेचैनी, सबकुछ बहुत ही सच्चाई के साथ दिखाया गया है। यह सवाल बार-बार सामने आता है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि एक साधारण सा बच्चा इस हद तक पहुँच गया?

दूसरे एपिसोड में पुलिस जांच के दौरान यह कोशिश करती है कि जेमी के इस अपराध के पीछे की सच्चाई को समझ सके। इस एपिसोड में स्कूल की जिंदगी, दोस्तों के बीच की अनबन, सोशल मीडिया का दवाब और बुलिंग यानी बच्चों का एक-दूसरे को डराना-धमकाना साफ नजर आता है। बच्चों के दिमाग पर सोशल मीडिया का कितना असर है, यह बारीकी से दिखाया गया है। एक जगह डिटेक्टिव फ्रैंक कहता है कि अब हमें उस पीढ़ी का सामना करना पड़ रहा है जो इंटरनेट की दुनिया में पैदा हुई है और वहीं बड़ी हो रही है। इसलिए उनके सोचने और समझने का तरीका हमसे बिलकुल अलग है।

तीसरे एपिसोड में कहानी जेमी के मन की गहराई तक पहुँचती है। तीसरा एपिसोड, जो पहले एपिसोड के सात महीने बाद की कहानी दिखाता है, सबसे ज़्यादा असर छोड़ता है। इस समय तक जैमी को किशोर सुधार गृह (जुवेनाइल डिटेंशन सेंटर) में बंद कर दिया गया है और वो कोर्ट में पेश होने का इंतज़ार कर रहा है। यहां एक बाल मनोवैज्ञानिक, ब्रायोनी एरिस्टन, जेमी से मिलती है और यह समझने की कोशिश करती है कि उसके दिमाग में क्या चल रहा है। यह एपिसोड बताता है कि एक मासूम दिखने वाला बच्चा भी क्यों और कैसे इतने खतरनाक अपराध की ओर बढ़ सकता है। ब्रायोनी उसकी बातों और उसके जज़्बातों को समझने की कोशिश करती है और यह बताती है कि बच्चों के मन में छुपे डर, गुस्से और तनाव को पहचानना कितना ज़रूरी है।

चौथा और आखिरी एपिसोड जेमी के माता-पिता और उनके परिवार की कहानी पर रोशनी डालता है। जेमी के माँ-बाप के दिल में बहुत सारे सवाल उठते हैं। एक जगह जेमी के पिता एडी, अपनी पत्नी मंडा से कहते हैं कि शायद उन्होंने जेमी को ठीक से समझा ही नहीं। वे कहते हैं, “हमने उसकी निजता का सम्मान तो किया, लेकिन उसके मन की बात को कभी जानने की कोशिश ही नहीं की। “ यह सच्चाई आज हर परिवार के लिए एक आईना है, जो यह दिखाती है कि कई बार माता-पिता अपने बच्चों की ज़िंदगी की सबसे अहम बातें समझ ही नहीं पाते।

“एडोलेसेंस” की सबसे बड़ी ताकत यह है कि यह किशोरों के मानसिक संघर्षों और उनके इमोशनल हालात को बेहद सच्चाई से दिखाती है। तीसरे एपिसोड में जेमी और मनोवैज्ञानिक ब्रायोनी के बीच का सीन बेहद असरदार है, जहां जेमी जब अपनी भावनाओं के बारे में बोलता है और जब उसकी यौनिकता, दोस्ती और मर्दानगी से जुड़े सवालों पर बात होती है, तो वह गुस्से और बेचैनी से भर जाता है। यह सीन यह बताता है कि किशोरों के लिए अपने मन की बात को समझाना और दूसरों तक पहुँचाना कितना मुश्किल और दर्दभरा होता है।किशोरों (टीनएजर्स) से बड़े लोगों का ठीक से बात न कर पाना कोई चौंकाने वाली बात नहीं है। अक्सर यह मान लिया जाता है कि लड़के ज़्यादा बात नहीं करते या उनके पास कोई भावनाएँ नहीं होतीं। यह सोच मर्दानगी से जुड़ी जानी-पहचानी धारणाएँ हैं। मगर वेब सीरीज़ Adolescence में जो बात चौंकाती है, वो है लड़कों की वह असली और खुली भाषा, जिसमें वे गुस्से, आक्रोश, बेपरवाही और बचाव के तौर पर बात करते हैं।

एक सीन में, जैमी नाम का लड़का अपने काउंसलर पर चिल्लाता है — “तुम ये तय नहीं कर सकते कि मैं क्या करूँगा! देखो, मैं अब क्या कर रहा हूँ!” जेमी (मनोचिकित्सक से) आगे कहता है: “आप मुझे समझ नहीं सकतीं। आप वयस्क हैं, आपको नहीं पता कि हमारी दुनिया कैसी है। हर कोई हमें जज करता है, हर कोई हमसे उम्मीदें रखता है। लेकिन कोई हमें सुनता नहीं है। मैं बस फिट होना चाहता था, लेकिन कोई मुझे मौका नहीं देता। क्या आप जानती हैं कि ऑनलाइन दुनिया में कैसा होता है? वहां हर कोई सुंदर है, सफल है। और अगर आप वैसे नहीं हैं, तो आप कुछ नहीं हैं। मैं बस चाहता था कि कोई मुझे देखे, मुझे समझे। क्या यह इतना ज्यादा मांगना था?”

सीरीज बार-बार यह सवाल उठाती है कि बच्चों के भीतर जो दुख, डर और तनाव है उसका जिम्मेदार कौन है? क्या यह माता-पिता हैं, स्कूल है या समाज? साथ ही यह भी दिखाया गया है कि सोशल मीडिया और इंटरनेट के ज़रिए बच्चों का दिमाग कैसे बदलता जा रहा है। इंटरनेट पर मौजूद कुछ ऐसे लोग, जैसे एंड्रयू टेट, जो महिलाओं के खिलाफ ज़हर फैलाते हैं, बच्चों के सोचने का तरीका बहुत ही खतरनाक ढंग से प्रभावित कर रहे हैं। ऐसे लोग अपने वीडियो में यह कहते हैं कि औरतें मर्दों की जायदाद होती हैं, और ये बातें किशोरों के दिमाग में गहराई से घर कर जाती हैं। सीरीज यह भी समझाने की कोशिश करती है कि सोशल मीडिया बच्चों की ज़िंदगी पर बहुत गहरा असर डाल रहा है। बच्चे अपने दोस्तों से मुकाबला करते हैं, एक-दूसरे से तुलना करते हैं और अक्सर अपने शरीर, रंग-रूप और कपड़ों को लेकर हीनभावना का शिकार हो जाते हैं। यह धीरे-धीरे आत्मविश्वास की कमी, मानसिक तनाव और डिप्रेशन जैसी बीमारियों में बदल सकता है।स्कूल प्रिंसिपल (स्टाफ मीटिंग में):

“हमें अपने छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी, लेकिन हमारे पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। हम एक ऐसी दुनिया में रह रहे हैं जहां बच्चे 24/7 ऑनलाइन हैं। हम उन्हें स्कूल में तो नियंत्रित कर सकते हैं, लेकिन घर पर क्या होता है? हमें माता-पिता और समुदाय के साथ मिलकर काम करना होगा। यह एक बड़ी चुनौती है, लेकिन हमें इसे स्वीकार करना होगा।“

“एडोलेसेंस” में ऐसे कई मुद्दों पर बात की गई है जिन पर अक्सर लोग चुप रहते हैं। जैसे यौन शिक्षा, जबरदस्ती सेक्स, बच्चों के बीच बिना इजाजत यौन सामग्री का शेयर होना और इन सब चीजों के चलते बच्चों के दिमाग में पैदा होता डर और शर्म। यह सीरीज बताती है कि बच्चों को सही समय पर सही जानकारी देना कितना जरूरी है, ताकि वे खुद को सुरक्षित रख सकें और सही फैसले ले सकें। सीरीज में बच्चों और उनके माता-पिता के रिश्ते को भी बहुत गहराई से दिखाया गया है। यह बताया गया है कि माता-पिता अक्सर यह सोचते हैं कि उन्होंने अपने बच्चों के लिए सबकुछ किया है — अच्छा खाना, अच्छी पढ़ाई, अच्छे कपड़े — लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि बच्चों को इन सबसे ज्यादा एक सुरक्षित, समझदार और प्यार भरा माहौल चाहिए। अगर माता-पिता अपने बच्चों से खुलकर और बिना डांट-डपट के बात करें तो बच्चों की परेशानियाँ बहुत हद तक कम हो सकती हैं। कई माता-पिता, चाहे वे बच्चों की भलाई के लिए कितनी भी कोशिश क्यों न करें, अपने बच्चों की मानसिक परेशानियों और भावनात्मक तकलीफों के संकेतों को पहचान नहीं पाते।

“एडोलेसेंस” का सबसे गहरा संदेश यही है कि बच्चों की परवरिश सिर्फ एक घर का काम नहीं है, बल्कि पूरे समाज, स्कूल और इंटरनेट की दुनिया की भी जिम्मेदारी है। अगर हम सभी मिलकर बच्चों को समझने और उन्हें सही रास्ता दिखाने की कोशिश करें, तो हम उनके लिए एक बेहतर और सुरक्षित भविष्य तैयार कर सकते हैं। यह सीरीज हमें यह याद दिलाती है कि किशोरों का यह दौर बहुत ही संवेदनशील और मुश्किल भरा होता है। इस वक्त उन्हें सबसे ज्यादा समझ, प्यार और सहारे की जरूरत होती है। अगर हम बच्चों की दुनिया में झांकें, उनके सवालों के जवाब दें और उनकी परेशानियों को हल्के में ना लें, तो शायद हम कई बच्चों को उन रास्तों पर भटकने से बचा सकते हैं, जहां से लौटना बहुत मुश्किल होता है।

इस कहानी के ज़रिए यह बात और भी पक्की हो जाती है कि बच्चों की परवरिश में सिर्फ माता-पिता नहीं, बल्कि स्कूल, समाज और सोशल मीडिया की दुनिया भी बराबर का रोल निभाती है। बच्चों के साथ खुलकर, ईमानदारी से और बिना किसी जजमेंट के बातचीत करना ही वह रास्ता है जिससे हम उनके डर, तनाव और गुस्से को समझ सकते हैं। अगर हम यह करने में कामयाब हो जाएं तो यकीनन हम उन्हें एक अच्छा इंसान बनने में मदद कर सकते हैं और एक खुशहाल जिंदगी की ओर बढ़ने का रास्ता दिखा सकते हैं।

लेखक यूट्यूब के पसमांदा डेमोक्रेसी चैनल के संचालक हैं