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उर्दू ज़ुबान में पसमांदा अदब क्यों नहीं है ?

उर्दू साहित्य में ऐतिहासिक रूप से अशराफ (उच्च वर्ग) का प्रभुत्व रहा है। अशराफ वर्ग ने पसमांदा समाज को मुख्यधारा में शामिल नहीं किया, जिससे उर्दू अदब में पसमांदा समुदाय की आवाज़ें कमज़ोर रही हैं। उर्दू साहित्य में पसमांदा समुदाय की समस्याओं और उनके जीवन के पहलुओं को अक्सर नजरअंदाज किया गया है। उदाहरण के लिए, उर्दू गज़लों में दलित मुस्लिम समाज की महिलाओं को शायद ही कभी चित्रित किया गया है, जो समाज में व्याप्त रंगभेद को दर्शाता है। आज भी उर्दू साहित्य में पसमांदा समुदाय की समस्याओं को प्रमुखता नहीं मिलती। हालांकि, कुछ लेखकों और कवियों ने इस दिशा में काम किया है, लेकिन उन्हें व्यापक पहचान नहीं मिली है। इसके अलावा, पसमांदा समुदाय की ओर से भी साहित्यिक योगदान की कमी रही है, जिससे उनकी आवाज़ें साहित्यिक मंच पर कम सुनाई देती हैं।

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