Tag: feminism
सुन री सखी, मेरी प्यारी सखी!...
Posted by Abdullah Mansoor | May 13, 2025 | Culture and Heritage, Education and Empowerment, Gender Equality and Women's Rights, Movie Review | 0 |
टॉर्चेस ऑफ़ फ्रीडम: जब नारीवादी आंदोलन को पूंजीवाद ने अपने लाभ के लिए इस्तेमाल किया
by Abdullah Mansoor | Jun 17, 2025 | Movie Review, Reviews | 0 |
नारीवादी आंदोलन ने महिलाओं की आज़ादी, बराबरी और आत्मनिर्भरता का सपना देखा था, लेकिन पूंजीवाद ने इस आंदोलन की भावनाओं को उत्पाद बेचने के औज़ार में बदल दिया। “टॉर्चेस ऑफ़ फ्रीडम” जैसे उदाहरण दिखाते हैं कि बाज़ार कैसे आज़ादी के प्रतीकों को मुनाफे के लिए इस्तेमाल करता है। महिलाओं को स्वतंत्रता का भ्रम दिया गया, जबकि वे एक नई उपभोक्ता संस्कृति में फंस गईं। यह समस्या केवल नारीवाद तक सीमित नहीं, बल्कि हर सामाजिक आंदोलन अब बाज़ार के हिसाब से ढाला जा रहा है। असली आज़ादी सोचने, असहमति जताने और विकल्प चुनने की शक्ति में है।
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by Abdullah Mansoor | May 13, 2025 | Culture and Heritage, Education and Empowerment, Gender Equality and Women's Rights, Movie Review | 0 |
लेखिका: पायल …तभी सखी को एहसास होता है कि लड़कियाँ लड़कों से कम थोड़े न हैं। अतः सखी ने अपनी...
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