इस लेख को लिखने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि सर सैयद अहमद ख़ाँ साहब को लेकर भारतीय समाज विशेषकर मुस्लिम समाज में बड़ी ही गलत मान्यता स्थापित है. उन्हें मुस्लिम क़ौम का हमदर्द और न जाने किन-किन अलकाबो से नवाजा गया है जबकि जहाँ तक मैंने जाना है हकीकत इससे बिल्कुल उलट दिखी. सर सैयद को जितना मैंने पढ़ा है उस बुनियाद पर अगर उनकी शख्सियत के लिए कोई एक लफ्ज़ मैं इस्तेमाल करूंगा तो …
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1947 ई० का बटवारा एक ऐसी त्रासदी थी जिसकी भारी कीमत सिर्फ यहाँ के मेहनतकश(महनत करके रोज़ी रोटी कमाने वाले) वर्गों को ही चुकाना पड़ा। काँग्रेस गुप्त रूप से भारत विभाजन को स्वीकार करने का समझौता कर चुकी थी। अशराफ मुस्लिम को पश्चिमी और पूरबी राज्यो की सूरत में सत्ता भोग का परवान मिलने जा रहा था। हिन्दूओ के सत्ताधारी वर्ग(सवर्ण) को एक बड़े अल्पसंख्यक से जान छूटने की नवेद( विवाह में दिया जाने वाला …

समकालीन जनमत के नवंबर 2017 अंक में छपा लेख “सर सैयद और धर्म निरपेक्षता” पढ़ा, पढ़ कर बहुत हैरानी हुई कि जनमत जैसे कम्युनिस्ट विचारधारा की पत्रिका में सर सैयद जैसे सामंतवादी व्यक्ति का महिमा मंडन एक राष्ट्रवादी, देशभक्त, लोकतंत्र की आवाज़, हिन्दू मुस्लिम एकता का प्रतीक, इंसानियत के सच्चे अलंबरदार के रूप में किया गया है, जो बिल्कुल बेबुनियाद और झूठ पर आधारित है। मज़े की बात ये है कि यह सब बातें उनकी …

हम यह जानते हैं कि पसमांदा मुसलमानों का न कोई राज्य रहा है और न कोई राजा। क़ौम के बनाए ढांचें में पसमांदा मुसलमान तब तक फिट नहीं हुए जब तक लोकतंत्र में प्रत्येक वोट का महत्व नहीं बढ़ा। विदेशी नस्ल के मुस्लिम सुल्तानों और बादशाहों ने भारतीय पसमांदा समाज को कभी अपने बराबर नहीं समझा और यही हाल विदेशी नस्ल के उलेमा का भी रहा। कई प्रमुख मध्यकालीन उलेमा न सिर्फ़ भारतीय हिंदुओं के …
पसमांदा विमर्श ने जम्हूरियत के सवाल को मुस्लिम राजनीति का केन्द्रीय प्रश्न बना दिया है और अम्बेडकर की तर्ज़ पर यह ऐलान कर दिया है कि मुसलमानों के अंदर भी जाति का सवाल केवल सामाजिक सुधार के सहारे नहीं बल्कि राजनीतिक आंदोलन के ज़रिये भी हल होगा। पसमांदा का नामकरण हो चुका है और अब यह आंदोलन तेज़ी से फैल रहा है …

सर सैयद के समय शिक्षा को शासन, प्रशासन और सरकारी नौकरी में जाने का साधन समझा जाता था, और उस समय की औरतों में विरले ही इस तरह की नौकरियों के लिए अभिरुचि थी। इसलिए ऐसा माना जाता है कि ऐसी स्तिथि में पुरुष शिक्षा को वरीयता दिये जाने को सर सैयद द्वारा उचित समझना हितकर था, आज उनके द्वारा स्थापित किया गया, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से ना जाने कितने लोग शिक्षा हासिल कर अपनी …
यह 11 जून 2017 को पटना (बिहार) में बागडोर और अन्य संगठनों द्वारा आयोजित एक-दिवसीय कांफ्रेंस ‘बहुजन चौपाल: भारत का भगवाकरण और सामाजिक न्याय की चुनौतियाँ’ में प्रो. खालिद अनीस अंसारी के वक्तव्य की संशोधित प्रतिलिपि है. …

In the midst of India China border dispute a new Pasmanda figure has emerged out in a central position, the spotlighted Galwan valley is named after him. The story is as, once an explorer was entrapped in the Leh region and there seemed to be no way out, in this situation the fourteen year old boy helped the explorer out through a river. The explorer was amazed and influenced by the sense of bravery shown …

इस लेख को लिखने की आवश्यकता इसलिए महसूस हुई क्योंकि पसमांदा आन्दोलन से सम्बन्धित व्यक्तियों, पसमांदा संगठनो के पदाधिकारियों तथा समर्थकों द्वारा इबलीसवाद, इबलीसवादी तथा इबलीसी जैसे शब्दों का प्रयोग अक्सर अपने लेखों, भाषणों, फेसबुक, व्हाट्सअप जैसी सोशल साइटों पर अपनी पोस्टों तथा बहस के दौरान अपनी टिप्पणियों में किया जाता है जिसमें वह सैयदवाद (तथाकथित सैयदवाद) को ही इबलीसवाद कहते है तथा सैयदवाद के समर्थकों को इबलीसीवादी व इबलीसी कहते है। जिसका तथाकथित सैयद …

The purpose of this article is to tell the world, for once and all, that my introduction to the caste system among Muslims is not because of JNU. The silencing, exclusion and discrimination practised against the lower caste for centuries were not taught to me by any scholar of modern English education system. Mohammad Hashim, my abbaji (paternal grandfather), an Islamic scholar, was the person who introduced me to this dark reality where my whole …

संविधान निर्माताओं को शायद इस बात का खूब आभास था कि कुछ लोग भारत को हिन्दुस्तान (हिन्दुओं का स्थान) बनाना चाहते है, सम्भवतः इसीलिए संविधान निर्माताओं ने पूरे संविधान (जो कि अंग्रेज़ी में लिखा गया है) में किसी भी शब्द के स्पष्टीकरण अथवा अनुवाद की आवश्यकता महसूस नहीं की लेकिन जब संविधान में देश का नाम लिखना हुआ तो मात्र “इण्डिया” लिखकर उनको सन्तोष नहीं हुआ क्योंकि उनके सामने इण्डिया को हिन्दुस्तान बनाने की नापाक …

In these constant struggles and travels, he had to face many troubles as well as financial difficulties. Many of the times had to deal with hunger issues too. At the same time, his daughter Baarka was born in the house, but the whole family was drowning in debt and hunger for long. …
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